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मंगलवार, मार्च 25, 2025

सिद्धि विनायक स्तोत्रम्

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सिद्धि विनायक स्तोत्रम् Siddhi Vinayaka Stotram

 

विघ्रेश विघ्रचयखण्डननामघेय शीशड्करात्मज सुराधिपवन्द्यपाद ।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमड्र्लात्मन् विघ्रं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥१॥

सत्पद्‍मरागमणिवर्णशरीरकान्ति: श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुड्‍कुमश्री: ।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो विघ्रं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥२॥

पाशाड्‍कुशाब्जपरशूंश्च दधच्चतुर्भिर्दोर्भिश्च शोणकुसुमस्त्रगुमाड्रजात: ।
सिन्दूरशोभितल्लाटविधुप्रकाशो विघ्रं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥३॥

कार्येषु विघ्रचयभीतविरञ्चिमुख्यै: सम्पूजित: सुरवरैरपि मोदकाद्यै: ।
सर्वैषुव च प्रथममेच सुरेषु पूज्यो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥४॥

शीघ्राञ्चनस्खलन- तुड्ररवोर्धकण्ठस्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसड्‍घ: ।
सृर्पश्रुतिश्च पृथवर्तुलतुड्रतुन्दो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक तवम् ॥५॥

यज्ञोपवीतपदलम्बितनागराजो मासा दिपुण्यददृशीकृतऋक्षराज: ।
भक्ताभयपद दयालय विघ्रराज विघ्नं ममापहार सिद्धिविनायक त्वम् ॥६॥

सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीट: कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्री: ।
सर्वत्रमड्रलकरस्मरणप्रतापो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥७॥

देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता विज्ञानबोधनवरेण तमोऽपहर्ता ।
आनन्दितत्रिभुवनेश कुमारबन्धो विध्नं मामापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥८॥

इति श्रीमुद्रलपुराणे विघ्रनिवारकं श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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