सप्तश्लोकी गीता
सप्तश्लोकी गीता का अर्थ है गीता के सात श्लोक। यह भगवद्गीता के विशेष सात श्लोकों का संग्रह है, जिन्हें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते समय गीता के सार के रूप में प्रस्तुत किया। यह सात श्लोक पूरे गीता के मुख्य संदेश को संक्षेप में समझाने का प्रयास करते हैं। इन श्लोकों का अध्ययन और पाठ करने से जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में सहायता मिलती है और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है।
Saptashloki Gita Sloksa
1.ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13।।
ओंकार का उच्चार करते हुए और मेरा स्मरण करते हुए जो अपने देह का त्याग करेगा, वह सर्वोच्च सद्गति को पाएगा।
2.स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।11.36।।
भगवान श्रीकृष्ण का कीर्तन जगत में आनंद फैलानेवाला और दुष्ट शक्तियों को भगानेवाला है।
3.सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।।13.14।।
भगवान के हर तरफ हाथ, पैर, मुख, नेत्र, और कान होते है। वे सर्वत्र व्याप्त हैं।
4.कविं पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।8.9।।
मैं उन भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करता हूं जो सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियन्ता, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, सबके आधार, सबके पोषक, सूर्य के समान कान्तिवाले और अज्ञान से परे हैं।
5.ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।
जिसने उस पीपल के वृक्ष को जाना है जिसके मूल ऊपर की ओर (परमात्मा) हैंं और शाखाएं यह संसार है, वेद मंत्र जिसके पत्ते हैं, वह परमार्थ को जान लिया है।
6.सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।15.15।।
सबके हृदय में अन्तर्यामी बनकर मैं ही निवास करता हूं। ज्ञान, स्मरण शक्ति, और चिंतन शक्ति मैं ही हूं। वेदों द्वारा मैं ही जाना जाता हूं। वेदों के ज्ञाता और वेदान्त का प्रतिपादक मैं ही हूं।
7.मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे।।18.65।।
मेरा अटल स्मरण करनेवाले, पूजन करनेवाले, नमस्कार करनेवाले मेरे प्रिय भक्त मुझे ही पाएंगे।
सप्तश्लोकी गीता का महत्व
- आध्यात्मिक मार्गदर्शन: यह सात श्लोक जीवन की जटिलताओं में सही दिशा दिखाते हैं।
- संक्षिप्त सार: गीता के 700 श्लोकों का यह सार समय की कमी वाले व्यक्तियों के लिए आदर्श है।
- भक्ति और शांति: इसका नियमित पाठ करने से मन को शांति और भक्ति का अनुभव होता है।
- कर्म और धर्म का ज्ञान: यह व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का सही अर्थ समझाने में सहायक है।
सप्तश्लोकी गीता का पाठ नियमित रूप से सुबह या शाम को शुद्ध मन और स्थान पर करना चाहिए। इसे पढ़ते समय अर्थ को समझने और उसे जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।
सप्तश्लोकी गीता का अध्ययन व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचाता है, बल्कि उसे अपने जीवन में सही निर्णय लेने और धर्म का पालन करने में सहायता करता है।
सप्तश्लोकी गीता पर पूछे जाने वाले प्रश्न
सप्तश्लोकी गीता क्या है?
सप्तश्लोकी गीता भगवद्गीता के सात विशेष श्लोकों का संकलन है, जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए ज्ञान का सार प्रस्तुत करते हैं। ये सात श्लोक गीता के मुख्य उपदेशों को संक्षेप में समझने और अनुसरण करने में मदद करते हैं।
सप्तश्लोकी गीता के श्लोक कौन-कौन से हैं?
सप्तश्लोकी गीता में निम्नलिखित सात श्लोक शामिल हैं:
गीता अध्याय 2, श्लोक 47
गीता अध्याय 4, श्लोक 7-8
गीता अध्याय 9, श्लोक 22
गीता अध्याय 18, श्लोक 65-66
ये श्लोक कर्म, भक्ति, ज्ञान, और मोक्ष के मार्ग को समझाते हैं।सप्तश्लोकी गीता का अध्ययन क्यों करना चाहिए?
सप्तश्लोकी गीता का अध्ययन करने से व्यक्ति गीता के मुख्य सिद्धांतों को सरल और संक्षेप में समझ सकता है। यह आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करती है और जीवन की समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करती है।
सप्तश्लोकी गीता का पाठ कैसे और कब करना चाहिए?
सप्तश्लोकी गीता का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सुबह या शाम के समय शांत मन से इसका अध्ययन और पाठ करना अधिक लाभकारी होता है। इसे श्रद्धा और ध्यान के साथ पढ़ा जाना चाहिए।
क्या सप्तश्लोकी गीता केवल हिंदू धर्म के लोगों के लिए है?
नहीं, सप्तश्लोकी गीता का संदेश सार्वभौमिक है और यह किसी भी धर्म, जाति, या पंथ के व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकता है। इसके उपदेश मानवता के कल्याण और आत्मज्ञान पर आधारित हैं।