श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् Vishnu Bhujangam Prayat Stotram
श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् आदिशंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु की महिमा का गान करता है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की स्तुति के रूप में गाया जाता है, जिसमें भगवान विष्णु के अद्वितीय स्वरूप, उनके गुणों और उनके द्वारा किए गए अद्भुत कार्यों का वर्णन मिलता है।
यह स्तोत्र भुजंग प्रयात छंद में रचित है, जिसे गाने पर सांप के चलने की गति के समान एक लय का अनुभव होता है। इस छंद की विशेषता यह है कि इसके पाठ में एक अद्भुत प्रवाह और लय होती है, जो स्तोत्र के उच्चारण को सुगम और मधुर बनाती है।
श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु के भक्तों को उनके प्रति भक्ति और समर्पण की भावना को गहरा करना है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा, प्रेम और समर्पण प्रकट करते हैं, और भगवान विष्णु की कृपा पाने की कामना करते हैं।
श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- भगवान विष्णु की महिमा: यह स्तोत्र भगवान विष्णु के विविध रूपों, जैसे कि उनके चतुर्भुज रूप, उनके शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाले स्वरूप का वर्णन करता है।
- अवतारों का उल्लेख: इस स्तोत्र में विष्णु के विभिन्न अवतारों, जैसे मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह आदि की महिमा का वर्णन किया गया है।
- भक्तों की रक्षा: भगवान विष्णु को संसार के पालनहार और भक्तों की रक्षा करने वाले के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वे समस्त जगत का पालन-पोषण करते हैं और समय-समय पर धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं।
- स्तुति का महत्व: श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् के पाठ और लाभ:
यह स्तोत्र विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है, जो भगवान विष्णु के अनन्य भक्त हैं और जो उनकी कृपा से अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति पाना चाहते हैं। इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ पढ़ने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है, और भक्त का जीवन सुखमय और समृद्ध हो जाता है।
कुल मिलाकर, श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् भगवान विष्णु की स्तुति और आराधना का एक अत्यंत शक्तिशाली और मधुर स्तोत्र है, जो भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है।
श्री विष्णु भुजंग प्रयात स्तोत्रम् (श्री शंकराचार्यकृतम्) Sri Vishnu Bhujanga Prayata Stotram Lyrics
चिदंशं विभुं निर्मलं निर्विकल्पम्
निरीहं निराकारमोङ्कारवेद्यम् ।
गुणातीतमव्यक्तमेकं तुरीयम्
परं ब्रह्म यं वेद तस्मै नमस्ते ॥१॥
विशुद्धं शिवं शान्तमाद्यन्तशून्यम्
जगज्जीवनं ज्यॊतिरानन्दरूपम् ।
अदिग्देशकालव्यवच्छेदनीयम्
त्रयी वक्ति यं वेद तस्मै नमस्ते ॥२॥
महायोगपीठे परिभ्राजमाने
धरण्यादितत्वात्मके शक्तियुक्ते ।
गुणाहस्करे वह्निबिम्बार्कमध्ये
समासीनमोकर्णिकेऽष्टाक्षराब्जे ॥३॥
समानोदितानेकसूर्येन्दुकोटि-
प्रभापूरतुल्यद्युतिं दुर्निरीक्ष्यम् ।
न शीतं न चोष्णं सुवर्णावभातम्
प्रसन्नं सदानन्दसंवित्स्वरूपम् ॥४॥
सुनासापुटं सुन्दरभ्रूललाटम्
किरीटोचिताकुञ्चितस्निग्धकेशम् ।
स्फुरत्पुण्डरीकाभिरामायताक्षम्
समुत्फुल्लरत्नप्रसूनावतंसम् ॥५॥
स्फुरत्कुण्डलामृष्टगण्डस्थलान्तम्
जपारागचोराधरं चारुहासम् ।
कलिव्याकुलामोदिमन्दारमालम्
महोरस्फुरत्कौस्तुभोदारहारम् ॥६॥
सुरत्नाङ्गदैरन्वितं बाहुदण्डैः
चतुर्भिश्चलत्कङ्कणालंकृताग्रैः ।
उदारोदरालंकृतं पीतवस्त्रम्
पदद्वन्द्वनिर्धूतपद्माभिरामम् ॥७॥
स्वभक्तेषु सन्दर्शिताकारमेवम्
सदा भावयन् सन्निरुद्धेन्द्रियाश्वः ।
दुरापं नरो याति संसारपारम्
परस्मै तमोभ्योऽपि तस्मै नमस्ते ॥८॥
श्रिया शातकुंभद्युतिस्निग्धकान्त्या
धरण्या च दूर्वादलश्यामलाङ्ग्या ।
कलत्रद्वयेनामुना तोषिताय
त्रिलॊकीगृहस्थाय विष्णो नमस्ते ॥९॥
शरीरं कलत्रं सुतं बन्धुवर्गम्
वयस्यं धनं सद्म भृत्यं भुवं च ।
समस्तं परित्यज्य हा कष्टमेको
गमिष्यामि दुःखेन दूरं किलाहम् ॥१०॥
जरेयं पिशाचीव हा जीवितो मे
मृजामस्थिरक्तं च मांसं बलं च ।
अहो देव सीदामि दीनानुकम्पिन्
किमद्धापि हन्त त्वयोद्भासितव्यम् ॥११॥
कफव्याहतोष्णोल्बणश्वासवेग-
व्यथाविस्फुरत्सर्वमर्मास्थिबन्धाम् ।
विचिन्त्याहमन्त्यामसह्यामवस्थाम्
बिभेमि प्रबो किं करोमि प्रसीद ॥१२॥
लपन्नच्युतानन्त गोविन्द विष्णो
मुरारे हरे नाथ नारायणेति ।
यथाऽनुस्मरिष्यामि भक्त्या भवन्तम्
तथा मे दयाशील देव प्रसीद ॥१३॥
नमो विष्णवे वासुदेवाय तुभ्यम्
न,ओ नारसिंहस्वरूपाय तुभ्यम् ।
नमः कालरूपाय संहारकर्त्र्यै
नमस्ते वराहाय भूयॊ नमस्ते ॥१४॥
नमस्ते जगन्नाथ विष्णो नमस्ते
नमस्ते गदाचक्रपाणॆ नमस्ते ।
नमस्ते प्रपन्नार्तिहारिन् नमस्ते
समस्तापराधं क्षमस्वाखिलेश ॥१५॥
मुखे मन्दहासं नखे चन्द्रभासम्
करॆ चारुचक्रं सुरेशादिवन्द्यम् ।
भुजङ्गे शयानं भजे पद्मनाभम्
हरेरन्यदैवं न मन्ये न मन्ये ॥१६॥
भुजन्ङ्गप्रयातं पठॆद्यस्तु भक्त्या
समाधाय चित्ते भवन्तं मुरारे ।
स मोहं विहायाशु युष्मत्प्रसादात्
समाश्रित्य यॊगं व्रजत्यच्युतं त्वाम् ॥१७॥