Shraddha Suktam In Hindi
श्रद्धा सूक्तम्(Shraddha Suktam) एक प्राचीन वैदिक स्तोत्र है, जो श्रद्धा (आस्था, विश्वास और भक्ति) के महत्व को दर्शाता है। यह सूक्त तैत्तिरीय ब्राह्मण (2.8.8.6) में पाया जाता है। श्रद्धा को वैदिक परंपरा में सभी धार्मिक कर्मों और यज्ञों का मूल माना गया है। यह स्तोत्र श्रद्धा की महिमा और उसके महत्व को विस्तार से बताता है। नीचे दिए गए मंत्रों का विस्तृत अर्थ और व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है
मंत्र 1:
श्र॒द्धाया॒-ऽग्नि-स्समि॑ध्यते ।
श्र॒द्धया॑ विन्दते ह॒विः ।
श्र॒द्धा-म्भग॑स्य मू॒र्धनि॑ ।
वच॒सा-ऽऽवे॑दयामसि ॥
अर्थ:
- “श्रद्धाया अग्निः समिध्यते”: श्रद्धा से अग्नि (यज्ञ की अग्नि) प्रज्वलित होती है।
- “श्रद्धया विन्दते हविः”: श्रद्धा से हविष्य (यज्ञ के लिए आहुति) प्राप्त होता है।
- “श्रद्धा भगस्य मूर्धनि”: श्रद्धा भग (समृद्धि और ऐश्वर्य) के शीर्ष पर विराजमान है।
- “वचसा आवेदयामसि”: हम श्रद्धा को अपने वचनों (मंत्रों) के माध्यम से प्रकट करते हैं।
मंत्र 2:
प्रि॒यग्ग् श्र॑द्धे॒ दद॑तः ।
प्रि॒यग्ग् श्र॑द्धे॒ दिदा॑सतः ।
प्रि॒य-म्भो॒जेषु॒ यज्व॑सु ॥
अर्थ:
- “प्रियं श्रद्धे ददतः”: हे श्रद्धे, जो दान देते हैं, उनके लिए तुम प्रिय हो।
- “प्रियं श्रद्धे दिदासतः”: हे श्रद्धे, जो दान करने की इच्छा रखते हैं, उनके लिए भी तुम प्रिय हो।
- “प्रियं भोजेषु यज्वसु”: हे श्रद्धे, यज्ञ करने वालों के भोजन में भी तुम प्रिय हो।
मंत्र 3:
इ॒द-म्म॑ उदि॒त-ङ्कृ॑धि ।
यथा॑ दे॒वा असु॑रेषु ।
श्र॒द्धामु॒ग्रेषु॑ चक्रि॒रे ।
ए॒व-म्भो॒जेषु॒ यज्व॑सु ॥
अर्थ:
- “इदं म उदितं कृधि”: हे श्रद्धे, मेरे लिए इसे (यज्ञ को) सफल बनाओ।
- “यथा देवा असुरेषु”: जैसे देवताओं ने असुरों के बीच श्रद्धा को स्थापित किया।
- “श्रद्धामुग्रेषु चक्रिरे”: उन्होंने श्रद्धा को कठिन परिस्थितियों में भी स्थापित किया।
- “एवं भोजेषु यज्वसु”: उसी प्रकार यज्ञ करने वालों के भोजन में भी श्रद्धा को स्थापित करो।
मंत्र 4:
अ॒स्माक॑मुदि॒त-ङ्कृ॑धि ।
श्र॒द्धा-न्दे॑वा॒ यज॑मानाः ।
वा॒युगो॑पा॒ उपा॑सते ।
श्र॒द्धाग्ं हृ॑द॒य्य॑या-ऽऽकू᳚त्या ।
श्र॒द्धया॑ हूयते ह॒विः ।
श्र॒द्धा-म्प्रा॒तर्ह॑वामहे ॥
अर्थ:
- “अस्माकमुदितं कृधि”: हे श्रद्धे, हमारे लिए इसे (यज्ञ को) सफल बनाओ।
- “श्रद्धां देवा यजमानाः”: देवता और यज्ञ करने वाले श्रद्धा को प्राप्त करते हैं।
- “वायुगोपा उपासते”: वायु (हवा) रक्षक के रूप में श्रद्धा की उपासना करता है।
- “श्रद्धां हृदय्यया आकूत्या”: श्रद्धा हृदय की गहरी इच्छा से प्रकट होती है।
- “श्रद्धया हूयते हविः”: श्रद्धा से हविष्य (आहुति) अर्पित की जाती है।
- “श्रद्धां प्रातर्हवामहे”: हम प्रातःकाल में श्रद्धा का आह्वान करते हैं।
मंत्र 5:
श्र॒द्धा-म्म॒ध्यन्दि॑न॒-म्परि॑ ।
श्र॒द्धाग्ं सूर्य॑स्य नि॒मृचि॑ ।
श्रद्धे॒ श्रद्धा॑पये॒ह मा᳚ ।
श्र॒द्धा दे॒वानधि॑वस्ते ।
श्र॒द्धा विश्व॑मि॒द-ञ्जग॑त् ।
श्र॒द्धा-ङ्काम॑स्य मा॒तरम्᳚ ।
ह॒विषा॑ वर्धयामसि ॥
अर्थ:
- “श्रद्धां मध्यंदिनं परि”: हम दोपहर में श्रद्धा का आह्वान करते हैं।
- “श्रद्धां सूर्यस्य निमृचि”: सूर्य के अस्त होते समय भी श्रद्धा का आह्वान करते हैं।
- “श्रद्धे श्रद्धापयेह मा”: हे श्रद्धे, मुझमें श्रद्धा को स्थापित करो।
- “श्रद्धा देवानधिवस्ते”: श्रद्धा देवताओं को आच्छादित करती है।
- “श्रद्धा विश्वमिदं जगत्”: श्रद्धा इस समस्त जगत को धारण करती है।
- “श्रद्धां कामस्य मातरम्”: श्रद्धा कामना (इच्छा) की माता है।
- “हविषा वर्धयामसि”: हम हविष्य (आहुति) से श्रद्धा को बढ़ाते हैं।
श्रद्धा सूक्तम् – Shraddha Suktam
(तै. ब्रा. 2.8.8.6)
श्र॒द्धाया॒-ऽग्नि-स्समि॑ध्यते ।
श्र॒द्धया॑ विन्दते ह॒विः ।
श्र॒द्धा-म्भग॑स्य मू॒र्धनि॑ ।
वच॒सा-ऽऽवे॑दयामसि ।
प्रि॒यग्ग् श्र॑द्धे॒ दद॑तः ।
प्रि॒यग्ग् श्र॑द्धे॒ दिदा॑सतः ।
प्रि॒य-म्भो॒जेषु॒ यज्व॑सु ॥
इ॒द-म्म॑ उदि॒त-ङ्कृ॑धि ।
यथा॑ दे॒वा असु॑रेषु ।
श्र॒द्धामु॒ग्रेषु॑ चक्रि॒रे ।
ए॒व-म्भो॒जेषु॒ यज्व॑सु ।
अ॒स्माक॑मुदि॒त-ङ्कृ॑धि ।
श्र॒द्धा-न्दे॑वा॒ यज॑मानाः ।
वा॒युगो॑पा॒ उपा॑सते ।
श्र॒द्धाग्ं हृ॑द॒य्य॑या-ऽऽकू᳚त्या ।
श्र॒द्धया॑ हूयते ह॒विः ।
श्र॒द्धा-म्प्रा॒तर्ह॑वामहे ॥
श्र॒द्धा-म्म॒ध्यन्दि॑न॒-म्परि॑ ।
श्र॒द्धाग्ं सूर्य॑स्य नि॒मृचि॑ ।
श्रद्धे॒ श्रद्धा॑पये॒ह मा᳚ ।
श्र॒द्धा दे॒वानधि॑वस्ते ।
श्र॒द्धा विश्व॑मि॒द-ञ्जग॑त् ।
श्र॒द्धा-ङ्काम॑स्य मा॒तरम्᳚ ।
ह॒विषा॑ वर्धयामसि ।
श्रद्धा सूक्तम् का महत्व
- श्रद्धा का महत्व: यह स्तोत्र श्रद्धा को सभी धार्मिक कर्मों और यज्ञों का मूल बताता है।
- यज्ञ और आहुति: श्रद्धा के बिना यज्ञ और आहुति सफल नहीं होती।
- आध्यात्मिक उन्नति: श्रद्धा से मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- देवताओं की कृपा: श्रद्धा से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
श्रद्धा सूक्तम् श्रद्धा के महत्व को समझाता है और बताता है कि श्रद्धा के बिना कोई भी धार्मिक कर्म सफल नहीं हो सकता। यह स्तोत्र हमें श्रद्धा के माध्यम से देवताओं की कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होने का मार्ग दिखाता है।