Vishwakarma Suktam in Hindi
विश्वकर्म सूक्तम्(Vishwakarma Suktam) ऋग्वेद में उल्लिखित एक महत्वपूर्ण सूक्त है, जो सृजन, निर्माण, और सृष्टि के दिव्य शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की स्तुति करता है। यह सूक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति, उसकी संरचना और नियमन से संबंधित गूढ़ रहस्यों को प्रकट करता है। विश्वकर्मा को सृष्टि का महान वास्तुकार माना जाता है, जो सभी देवताओं, मनुष्यों और प्राणियों के लिए भवनों, अस्त्र-शस्त्रों एवं यंत्रों का निर्माण करते हैं। विश्वकर्मा सूक्तम् मुख्य रूप से ऋग्वेद (10.81, 10.82) में मिलता है। इसके अतिरिक्त, यजुर्वेद, अथर्ववेद, एवं अन्य वैदिक ग्रंथों में भी विश्वकर्मा का उल्लेख विभिन्न रूपों में किया गया है।
विश्वकर्मा सूक्तम् में भगवान विश्वकर्मा की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि उन्होंने इस ब्रह्मांड की संरचना की, दिशाओं को निर्धारित किया, और सृष्टि को संतुलित करने के लिए समुचित व्यवस्था की। इस सूक्त में वे प्रथम सृष्टिकर्ता, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी एवं सर्वशक्तिमान के रूप में चित्रित किए गए हैं।
विश्वकर्म सूक्तम् – Vishwakarma Suktam In Sanskrit
(तै. सं. १.४.६)
य इ॒मा विश्वा॒ भुव॑नानि॒ जुह्व॒दृषि॒र्होता॑ निष॒सादा॑ पि॒ता नः॑ ।
स आ॒शिषा॒ द्रवि॑णमि॒च्छमा॑नः परम॒च्छदो॒ वर॒ आ वि॑वेश ॥ १
वि॒श्वक॑र्मा॒ मन॑सा॒ यद्विहा॑या धा॒ता वि॑धा॒ता प॑र॒मोत स॒न्दृक् ।
तेषा॑मि॒ष्टानि॒ समि॒षा म॑दन्ति॒ यत्र॑ सप्त॒र्षीन्प॒र एक॑मा॒हुः ॥ २
यो नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता यो वि॑धा॒ता यो नः॑ स॒तो अ॒भ्या सज्ज॒जान॑ ।
यो दे॒वाना॑-न्नाम॒धा एक॑ ए॒व तग्ं स॑म्प्र॒श्नम्भुव॑ना यन्त्य॒न्या ॥ ३
त आय॑जन्त॒ द्रवि॑ण॒ग्ं सम॑स्मा॒ ऋष॑यः॒ पूर्वे॑ जरि॒तारो॒ न भू॒ना ।
अ॒सूर्ता॒ सूर्ता॒ रज॑सो वि॒माने॒ ये भू॒तानि॑ स॒मकृ॑ण्वन्नि॒मानि॑ ॥ ४
न तं-विँ॑दाथ॒ य इ॒द-ञ्ज॒जाना॒न्यद्यु॒ष्माक॒मन्त॑रम्भवाति ।
नी॒हा॒रेण॒ प्रावृ॑ता जल्प्या॑ चासु॒तृप॑ उक्थ॒शास॑श्चरन्ति ॥ ५
प॒रो दि॒वा प॒र ए॒ना पृ॑थि॒व्या प॒रो दे॒वेभि॒रसु॑रै॒र्गुहा॒ यत् ।
कग्ं स्वि॒द्गर्भ॑-म्प्रथ॒म-न्द॑ध्र॒ आपो॒ यत्र॑ दे॒वा-स्स॒मग॑च्छन्त॒ विश्वे ॥ ६
तमिद्गर्भ॑म्प्रथ॒म-न्द॑ध्र॒ आपो॒ यत्र॑ दे॒वा-स्स॒मग॑च्छन्त॒ विश्वे॑ ।
अ॒जस्य॒ नाभा॒वध्येक॒मर्पि॑तं॒-यँस्मि॑न्नि॒दं-विँश्व॒म्भुवन॒मधि॑ श्रि॒तम् ॥ ७
वि॒श्वक॑र्मा॒ ह्यज॑निष्ट दे॒व आदिद्ग॑न्ध॒र्वो अ॑भवद्द्वि॒तीयः॑ ।
तृ॒तीयः॑ पि॒ता ज॑नि॒तौष॑धीनाम॒पा-ङ्गर्भं॒-व्यँ॑दधात्पुरु॒त्रा ॥ ८
चक्षु॑षः पि॒ता मन॑सा॒ हि धीरो॑ घृ॒तमे॑ने अजन॒न्नन्न॑माने ।
य॒देदन्ता॒ अद॑दृग्ंहन्त॒ पूर्व॒ आदिद्द्यावा॑पृथि॒वी अ॑प्रथेताम् ॥ ९
वि॒श्वत॑श्चक्षुरु॒त वि॒श्वतो॑मुखो वि॒श्वतो॑हस्त उ॒त वि॒श्वत॑स्पात् ।
सम्बा॒हुभ्या॒-न्नम॑ति॒ सम्पत॑त्रै॒र्द्यावा॑पृथि॒वी ज॒नय॑न्दे॒व एकः॑ ॥ १०
किग्ं स्वि॑दासीदधि॒ष्ठान॑मा॒रम्भ॑ण-ङ्कत॒मत्स्वि॒त्किमा॑सीत् ।
यदी॒ भूमि॑-ञ्ज॒नय॑न्वि॒श्वक॑र्मा॒ वि द्यामौर्णो॑न्महि॒ना वि॒श्वच॑क्षाः ॥ ११
किग्ं स्वि॒द्वन॒-ङ्क उ॒ स वृ॒क्ष आ॑सी॒द्यतो॒ द्यावा॑पृथि॒वी नि॑ष्टत॒क्षुः ।
मनी॑षिणो॒ मन॑सा पृ॒च्छतेदु॒ तद्यद॒ध्यति॑ष्ठ॒द्भुव॑नानि धा॒रयन्॑ ॥ १२
या ते॒ धामा॑नि पर॒माणि॒ याव॒मा या म॑ध्य॒मा वि॑श्वकर्मन्नु॒तेमा ।
शिक्षा॒ सखि॑भ्यो ह॒विषि॑ स्वधाव-स्स्व॒यं-यँ॑जस्व त॒नुव॑-ञ्जुषा॒णः ॥ १३
वा॒चस्पतिं॑-विँ॒श्वक॑र्माणमू॒तये॑ मनो॒युजं॒-वाँजे॑ अ॒द्या हु॑वेम ।
स नो॒ नेदि॑ष्ठा॒ हव॑नानि जोषते वि॒श्वश॑म्भू॒रव॑से सा॒धुक॑र्मा ॥ १४
विश्व॑कर्मन्ह॒विषा॑ वावृधा॒न-स्स्व॒यं-यँ॑जस्व त॒नुव॑-ञ्जुषा॒णः ।
मुह्य॑न्त्व॒न्ये अ॒भितः॑ स॒पत्ना॑ इ॒हास्माक॑म्म॒घवा॑ सू॒रिर॑स्तु ॥ १५
विश्व॑कर्मन्ह॒विषा वर्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम् ।
तस्मै॒ विश॒-स्सम॑नमन्त पू॒र्वीर॒यमु॒ग्रो वि॑ह॒व्यो॑ यथास॑त् ॥ १६
स॒मु॒द्राय॑ व॒युना॑य॒ सिन्धू॑ना॒म्पत॑ये॒ नमः॑ ।
न॒दीना॒ग्ं सर्वा॑साम्पि॒त्रे जु॑हु॒ता
वि॒श्वक॑र्मणे॒ विश्वाहाम॑र्त्यग्ं ह॒विः ।
दर्शन एवं महत्व
- सृष्टि का रहस्य: यह सूक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति एवं उसके विस्तार को दर्शाता है।
- वास्तुशास्त्र का आधार: विश्वकर्मा को निर्माण का अधिष्ठाता देवता माना गया है, और वास्तुशास्त्र में इनकी पूजा महत्वपूर्ण होती है।
- शिल्प एवं विज्ञान: इस सूक्त में वर्णित विचार आधुनिक विज्ञान और इंजीनियरिंग से भी मेल खाते हैं।
- यांत्रिकी एवं शस्त्र निर्माण: महाभारत एवं अन्य ग्रंथों में विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य अस्त्र-शस्त्रों एवं भवनों का उल्लेख मिलता है।
उपासना एवं पूजा
- विश्वकर्मा जयंती (भाद्रपद मास में) विशेष रूप से उनकी पूजा का पर्व होता है।
- इस दिन कारीगर, इंजीनियर, शिल्पकार, एवं तकनीकी क्षेत्रों से जुड़े लोग विश्वकर्मा सूक्तम् का पाठ करते हैं।
- औद्योगिक प्रतिष्ठानों में इस दिन विशेष पूजा आयोजित की जाती है।
विश्वकर्मा सूक्तम् न केवल वेदों की आध्यात्मिक धरोहर है, बल्कि यह विज्ञान, स्थापत्य, और निर्माण कला का भी प्रतीक है। यह सूक्त हमें बताता है कि समर्पण, बुद्धि, एवं परिश्रम से सृजन और निर्माण संभव है, जो समस्त सृष्टि के विकास का आधार है।