Mrittika Suktam in Hindi
मृत्तिका सूक्तम्(Mrittika Suktam) महानारायण उपनिषद् का एक महत्वपूर्ण अंश है, जो मृत्तिका (मिट्टी) की महिमा और उसके दिव्य स्वरूप का वर्णन करता है। यह सूक्त मिट्टी के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करता है, क्योंकि मिट्टी हमारे जीवन का आधार है और इसी से समस्त प्राणियों का निर्माण हुआ है। यह सूक्त मिट्टी को देवी के रूप में देखता है और उसकी पूजा करने का संदेश देता है। मृत्तिका सूक्तम् में मिट्टी को सृष्टि की मूल तत्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह सूक्त मिट्टी की शुद्धता, पवित्रता और उसके दिव्य गुणों का गुणगान करता है। मिट्टी को सभी प्राणियों की जननी माना गया है, क्योंकि यही वह तत्व है जिससे हमारा शरीर बनता है और अंत में इसी में विलीन हो जाता है। इस सूक्त में मिट्टी को देवी के रूप में पूजने और उसके प्रति सम्मान प्रकट करने का आह्वान किया गया है।
मृत्तिका सूक्तम् का महत्व
- प्रकृति के प्रति सम्मान: यह सूक्त प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव जगाता है। मिट्टी को देवी मानकर उसकी पूजा करने का संदेश दिया गया है।
- जीवन का आधार: मिट्टी हमारे जीवन का आधार है। यह सूक्त हमें याद दिलाता है कि हमारा शरीर मिट्टी से बना है और अंत में मिट्टी में ही मिल जाएगा।
- पर्यावरण संरक्षण: मृत्तिका सूक्तम् का संदेश आधुनिक पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों से मेल खाता है। यह हमें प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव सिखाता है।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण: यह सूक्त मिट्टी को केवल भौतिक तत्व नहीं, बल्कि दिव्य शक्ति के रूप में देखता है। यह हमें प्रकृति के प्रति आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देता है।
मृत्तिका सूक्तम् – Mrittika Suktam
भूमि-र्धेनु-र्धरणी लो॑कधा॒रिणी । उ॒धृता॑-ऽसि व॑राहे॒ण॒ कृ॒ष्णे॒न श॑त बा॒हुना । मृ॒त्तिके॑ हन॑ मे पा॒पं॒-यँ॒न्म॒या दु॑ष्कृत॒-ङ्कृतम् । मृ॒त्तिके᳚ ब्रह्म॑दत्ता॒-ऽसि॒ का॒श्यपे॑नाभि॒मन्त्रि॑ता । मृ॒त्तिके॑ देहि॑ मे पु॒ष्टि॒-न्त्व॒यि स॑र्व-म्प्र॒तिष्ठि॑तम् ॥ 1.39
मृ॒त्तिके᳚ प्रतिष्ठि॑ते स॒र्व॒-न्त॒न्मे नि॑र्णुद॒ मृत्ति॑के । तया॑ ह॒तेन॑ पापे॒न॒ ग॒च्छा॒मि प॑रमा॒-ङ्गतिम् ॥ 1.40 (तै. अर. 6.1.9)