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सोमवार, अक्टूबर 7, 2024

कौन थे हूण, भारत क्यों आए, कैसे खत्म हुआ हूणों का राज?

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कौन थे हूण?

श्रीनगर में पीर पंजाब माउंटेन रेंज को पार करने के बाद एक खड़ी चट्टान पड़ती है, जिसे स्थानीय लोग हस्तिवंज या हस्ती वातार के नाम से जानते हैं। हस्ती वंश यानी जहाँ हाथी मारे गए किस्सा यूं है कि 1500 साल पहले एक राजा अपने विशाल फौज लेकर पीर पंजाब को पार कर रहा था एक रोज उसने एक हाथी की भयानक चीखें सुनी हाथी एक ऊंची चट्टान से गिर गया था। अब ये राजा बड़ा ही क्रूर था। हाथी की चीख सुनकर उसे इतना आनंद आया की उसने 100 हाथी चट्टान से धकेलने का हुक्म दे दिया। इस किस्से का जिक्र कश्मीरी इतिहासकार कलहण ने राज़ तरंगिनी में किया है। राज़ तरंगिनी बारहवीं सदी में लिखी गई थी। इसके अलावा इसके किस्से का जिक्र आई ने अकबरी में भी मिलता है। ये दोनों ग्रंथ जीस राजा का जिक्र करते हैं। उसका नाम था मिहिर कुल मिहिर कुल एक हूँन शासक था जिसके बारे में कल हम लिखते हैं मिर्कुल के आने की खबर मिलती थी गद्दू और कौओं से जो उसकी फौज के आगे आगे उठते थे ताकि उसके द्वारा मारे गए लोगों के शवों को खा सके। भारत पर विदेशी आक्रमण के मामले में हमारे मेंबरी काफी पीछे जाकर भी बहुत पास छूट जाती है, जबकि भारत पर दसियों 12 विदेशी आक्रमण हुआ और हमेशा एक ही तरह का नहीं हुआ से पहले से विदेशी आक्रमण हो रहा है। सिकंदर का हमला भी एक विदेशी हमला ही था। सिकंदर के बाद और ग्रीक्स भी आए, फिर शक आए उसके पीछे कुशाण और फिर हूणों के भारत पर आक्रमण का काल था। दूसरी से छठी शताब्दी के बिच अब यह पहला सवाल तो यही उठता है की थे कोन शक? ये सब मध्य एशिया के मैदानों में रहने वाले कबीले हुवा करते थे मतलब जो आपका अभी का मॉडर्न सेंट्रल एशिया है वहां के जो लंबे चौड़े मैदान हैं वहां रहने वाली ट्राइब्स इन्हें चीन के लोग बर्बेरिस जंगली कह दिया करते थे ये लोग मैदानों का इस्तेमाल चारागाह की तरह करते थे लेकिन फिर जैसे-जैसे इनकी संख्या बढ़ी जमीन कम पड़ने लगी लिहाज ये कबीले समय-समय पर या तो यूरोप की तरफ गए या फिर इधर पूरब की तरफ आ गए यानी चीन और हिंदुस्तान भारत की तरफ ये लोग पहले तारिंग घाटी जो कि आज शिजांग प्रांत का इलाका है आगे गांधार होते हुए पीर पंजाल के रास्ते भारत में दाखिल होते थे भारत क्यों आते थे इसका जवाब बड़ा सिंपल है कि यहां नदियां थी जमीन थी जंगल थे अच्छ मौसम था पुराणिक भारतीय ग्रंथों में हूणों का जिक्र अलग-अलग तरीकों से है छठी शताब्दी में बृहत संहिता में श्वेत हूणों का भी जिक्र करते हैं।

इसी प्रकार उन्होंने उत्तर भारत में हरा हूणों का भी जिक्र किया जिससे पता चलता है कि एक ही समय में हूणों के अलग-अलग कबीले भारत में रहे यहां तक कि हूणों का जिक्र महाभारत में भी मिलता है दुर्योधन पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ से लौटते हुए जिक्र करता है कि युधिष्ठिर के द्वार पर हूण और बाकी कबीले के लोग खड़े थे जो अंदर नहीं जाने दे रहे थे नकुल द्वारा एक राज्य को जीतने का भी जिक्र महाभारत में है । इसके अलावा रघुवंश नाम के महाकाव्य में में कालिदास जब भगवान राम के पूर्वजों का जिक्र कर रहे हैं तो लिखते हैं कि कैसे राजा रघु ने वंशु नदी के किनारे बसे हूण राज्य पर जीत हासिल की थी।

हूणों का उत्पत्ति और इतिहास

हूणों का उदय लगभग चौथी शताब्दी ईस्वी के दौरान हुआ था। उनका मूल क्षेत्र यूराल पर्वतों के पश्चिमी छोर और कजाखस्तान के मैदानों के बीच माना जाता है। उन्होंने शुरुआती काल में कई खानाबदोश जनजातियों को हराया और पश्चिम की ओर फैलना शुरू किया। इस समय के दौरान हूणों ने एक बेहद ताकतवर सेना तैयार की, जिसने यूरोप और एशिया के कई क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया।

हूणों का उदय और विस्तार

हूणों का उदय उनकी घुड़सवारी और आक्रामक सैन्य रणनीतियों के कारण हुआ। उन्होंने यूरोप और एशिया के कई हिस्सों में तेजी से विस्तार किया। हूणों की ताकत इस बात में थी कि वे बेहद कुशल योद्धा थे और उनकी सेना अत्यधिक तेजी से स्थानांतरित होती थी, जिससे दुश्मनों को उन पर हमला करने का मौका नहीं मिलता था।

हूणों का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन

हालांकि हूणों को मुख्य रूप से एक आक्रमणकारी जनजाति के रूप में जाना जाता है, उनका अपना एक समृद्ध सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन भी था। उनके धार्मिक और सामाजिक जीवन में घोड़ों का महत्वपूर्ण स्थान था, और उनके समाज में युद्ध कौशल को सर्वोच्च माना जाता था।

हूण भारत क्यों आए?

हूणों के भारत आने का मुख्य कारण उनकी आक्रमणकारी प्रवृत्ति और भू-राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव था। चौथी और पांचवीं शताब्दी में भारत में कई आंतरिक संघर्ष चल रहे थे, जो हूणों के आक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थिति थी।

भारत में हूणों के आक्रमण के कारण

हूण भारत क्यों आए? इसका उत्तर उनकी विस्तारवादी नीति में छिपा है। हूणों की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति और भारतीय उपमहाद्वीप की संपन्नता उन्हें भारत की ओर आकर्षित करती थी। भारत एक समृद्ध और उपजाऊ क्षेत्र था, और हूण इसे अपने अधीन करना चाहते थे। सबसे पहले आए किदा राइट ह इन्हें य नाम मिला था उनके राजा किदार से यह कबीला साइबेरिया से गांधार होते हुए भारत पहुंचा इसका जिक्र चीन की किताब द बुक ऑफ वू में मिलता है इसके अनुसार एक दूसरे कबीले के साथ तनातनी के चलते की द राइट अफगानिस्तान की तरफ आए यहां उनके राजा किदार ने अपनी फौज खड़ी की और हिंदू कुश को पार कर उत्तर भारत पर आक्रमण कर दिया किदार के पास गांधार समेत उत्तर भारत के पांच राज्यों पर कब्जा था। अब आप कहेंगे कि हमको कैसे पता उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में मिले एक स्तंभ पर हूणों के पहले आक्रमण का जिक्र है ।

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ये स्तंभ गुप्त काल का है जिसे सम्राट स्कंदगुप्त के समय में लगाया गया यानी कि 455 ईसवी से 467 ईसवी के बीच की बात है इसके अलावा गुजरात के जूनागढ़ में मिला एक शिलालेख इस बार बात की तस्दीक करता है कि स्कंदगुप्त ने हूणों के साथ लड़ाई की थी बहरहाल कि द राइट ों के बाद भारत में जो अगले ण आए वो थे एल्कन होण कश्मीरी इतिहासकार कलहन ने राजतरंगिणी में जिक्र किया है कि एल्कन हूणों का तुं जिना नाम का एक राजा होता था कलन ने तुं जिना को एक और नाम से बुलाया है श्रेष्ठ सेन तुं जिना इसी श्रेष्ठ सेन तुं जिना ने उत्तर भारत में एल्कन का साम्राज्य खड़ा किया तुं जिना के बाद एल्कन के अगले राजा का नाम था तोर माण तोर माण के समय में यानी कि पांचवीं सदी में उन्होंने भारत के एक बड़े भूभाग पर अपना शासन भी जमा लिया था और इसका सबूत मिलता है मध्य प्रदेश के विदिशा में मिले एक शिलालेख से जिसमें तोर माण को महाराजाधिराज की उपाधि दी गई है।

इससे पता चलता है कि उन भारत में कितना अंदर तक विदिशा भोपाल के पास है साल 1974 में गुजरात के दाहो जिले में मिली तांबे की कुछ प्लेट्स में लिखा है कि तोर मांड ने गुजरात और मालवा को कैसे जीता था तोर माण के बाद हूणों का राजा बना मेहर कुल जिसका जिक्र हमने बिल्कुल शुरू में किया जिसने हाथी मरवाएगी बारे में ही लिखा गया कि उसने बौद्धों का दमन किया और भयंकर लूट मचाई चीनी यात्री सं युन ने मेहर कुल के दरबार में विजिट किया था गया था वो संग युन के लिखे अनुसार मेहर कुल के पास हाथियों की फौज थी उसके पास 700 हाथी थे हर हाथी पर 10 आदमी बैठते थे जिनके पास भाले और तलवार होती थी यहां तक कि हाथियों के सूर्ण में भी एक किस्म की तलवार फिट की जाती थी ताकि वो दुश्मनों को मार सके ट्रेनिंग होती थी हाथी बड़ा इंटेलिजेंट जानवर है कलन ने राष् तरंगिणी में लिखा है कि मेहर कुल ने श्रीलंका कोल यानी तमिलनाडु कर्नाटक यानी कर्नाटका इन सभी को जीता था हालांकि अधिकतर इतिहासकार इससे सहमत नहीं है।

आधिकारिक इतिहास के अनुसार मेहर कुल का राज केवल उत्तर भारत तक सीमित था बहरहाल कहानी के इस पड़ाव में एक और सवाल उठता है व लाजमी है कि भारतीय राजाओं ने नों को रोकने की कोशिश क्यों नहीं की.? की तो क्या किया इसका जवाब है कोशिश की थी।

हूण जब हिंदुस्तान आए तो यहां गुप्त वंश के राजाओं का शासन था सबसे बड़ी ताकत वो थे गुप्त काल आक्रमण के चलते गुप्त साम्राज्य सीमित होने लगा बाकायदा एक वक्त में गुप्त राजा ों को टैक्स देने लगे लेकिन फिर छठी शताब्दी में नों को पहली बार हार का भी सामना करना पड़ा छठी शताब्दी में मालवा के इलाके में लकारा नाम के एक वंश का राज था इनके राजा प्रकाश धर्मन ने तोर माण को एक युद्ध में हराया और और नों को पंजाब के इलाके में समेट दिया हालांकि तोर माण का बेटा मेहर कुल एक बार फिर सेना के साथ लौटा मेहर कुल का सामना हुआ प्रकाश धर्मन के बेटे यशोधर्मन से और इस युद्ध में उसका साथ दिया गुप्त वंश के शासक नरसिंह गुप्त ने नरसिंह गुप्त और यशोधर्मन के हाथों मेहर कुल की हार का जिक्र नसांग ने भी किया है चीनी यात्री नसांग ने लिखा है कि मेरकुरी कोशिश की लेकिन फिर उसका पतन होता गया 528 ईसवी के आसपास अभी से 1500 साल पहले की बात है इसके आसपास नों और भारतीय राजाओं के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ जिसे सोदी का युद्ध कहा जाता है।

इस युद्ध में मेहर कुल की हार हो गई और वो पीछे हटा वन सां के अनुसार इसके आगे मेहर कुल ने कश्मीर पर राज किया लेकिन यहां भी ज्यादा समय तक राज नहीं कर पाया कश्मीरी इतिहासकार कलहन लिखते हैं कि जिसके आने से धरती कांप उड़ती थी उस मेहर कुल का शरीर अनेक रोगों से ग्रस्त होता गया और उसने स्वयं को आग की लपटों में भस्म कर लिया मेर कुल के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि वो था चाहे हो लेकिन उसने खुद को भारतीय परंपरा में रचा बसा भी लिया था उसने शैव परंपरा को बढ़ावा दिया कलन के अनुसार उसने श्रीनगर में मिहिरेश्वर नाम का एक शिव मंदिर भी बनवाया शिव के प्रति मिहिरकुल की निष्ठा इससे भी पता चलती है कि इसके द्वारा जारी किए गए सिक्कों में नंदी बना होता था मेहर कुल ने शिव परंपरा को बढ़ावा दिया।

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इमेज source wikipidia

भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और हूण आक्रमण

भारत की उस समय की राजनीतिक स्थिति भी हूणों के आक्रमण को सरल बनाती थी। भारतीय राजवंश आपसी संघर्षों में व्यस्त थे, जिससे एक विदेशी आक्रमण के लिए यह समय सबसे उपयुक्त था।

कैसे खत्म हुआ हूणों का राज?

हूणों का भारतीय उपमहाद्वीप पर लगभग एक सदी तक दबदबा रहा, लेकिन अंततः उनके साम्राज्य का पतन हो गया। हूणों की गिरावट कई आंतरिक और बाहरी कारकों के कारण हुई, जिसमें सैन्य कमजोरियां, आंतरिक विभाजन, और भारतीय शासकों का विरोध शामिल था। बौद्ध ग्रंथ मेरक को बहुत कोसते हैं जिनके अनुसार उसने बौद्धों का दमन किया था उनके मठ तोड़े बहरहाल आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि मेहर कुल के बाद नों का क्या हुआ कलन के अनुसार मेहर कुल के बाद राजा बना प्रवर सेन जो मेहर कुल का छोटा भाई था कहानी वैसे ये भी कहती है कि मेहर कुल के जीते जी ही उसके डर से माने मेहर कुल के डर से प्रवर सेन की मां अंजना ने प्रवर सेन को एक कुम्हार के घर में छिपा के रखा था कि अगर देख लेगा तो मार देगा मीर सेन की मौत के बाद प्रवर सेन लाइम लाइट में आए बाहर आए कुमार के घर से और तख्त पर कब्जा किया प्रवर सेन के बारे में कलन ने लिखा कि वो मेहर कुल की भाती क्रूर नहीं था उसने लोगों के भले के लिए कुछ निर्माण भी करवाया और प्रवर सेन आपु नाम का एक शहर भी बसाया कई इतिहासकार मानते हैं कि प्रवर सेन आपु ही आज का श्रीनगर हो सकता है प्रवर सेन के बाद हूणों का क्या हुआ लंबे समय तक इतिहासकार मानते रहे कि प्रवर सेन हूणों का अंतिम राजा था।

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लेकिन फिर 1956 में हुई एक खोज से एक नई कहानी सामने आने लगी साल 1956 में भारतीय पुरातत्त्व विभाग का एक प्रतिनिधि मंडल गया काबुल अफगानिस्तान यहां पी रतन नाथ दरगाह के पास उन्हें भगवान गणेश की एक मूर्ति मिल गई मूर्ति काबुल से 70 किलोमीटर दूर रदेश नाम की जगह से लाई गई थी जिसके नीचे एक अभिलेख था इस अभिलेख के अनुसार महाविनायक की ये मूर्ति महाराजाधिराज शाही खिा ने बनाई थी थोड़ा और रिसर्च से बात सामने आई कि खिानों का राजा था और प्रवर सेन का पोता था हालांकि खिा के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है लेकिन इतिहासकारों के अनुसार खंगाला ने अफगानिस्तान में बामियान तक अपना साम्राज्य फैलाया उसका बेटा युधिष्ठिर को हराने उसके बाद राजा बना और हूणों का आखिरी राजा हुआ युधिष्ठिर को वाले शख्स का नाम था प्रताप दित्य जिसने कारकोटा वंश की नीव रखी युधिष्ठिर की हार के साथ ही हूणों का शासन पूरी तरह खत्म हुआ इस तरह भारत में हूणों की कहानी जो लगभग दूसरी सदी में शुरू हुई थी वह 670 ईसवी में आकर खत्म हो जाती है।

हर्षवर्धन के नेतृत्व में हूणों की हार और पतन

हर्षवर्धन के नेतृत्व में भारतीय सेनाओं ने हूणों को निर्णायक रूप से पराजित किया, जिससे हूणों का भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन समाप्त हो गया। इस युद्ध के बाद हूण साम्राज्य का पतन हो गया, और भारत में शांति की स्थापना हुई।

FAQs

हूण कौन थे?

हूण एक खानाबदोश आक्रमणकारी जनजाति थी जो मध्य एशिया से उत्पन्न हुई थी।

हूण भारत क्यों आए?

हूण भारत की संपन्नता और राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाते हुए यहां आक्रमण करने आए थे।

हूणों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

हूणों के आक्रमण से भारत की राजनीतिक स्थिति प्रभावित हुई, लेकिन उनका स्थायी शासन स्थापित नहीं हो सका।

हूणों का अंत कैसे हुआ?

हर्षवर्धन के नेतृत्व में भारतीय सेनाओं ने हूणों को पराजित किया और उनका शासन समाप्त कर दिया।

हूणों की सेना कैसी थी?

हूणों की सेना बेहद कुशल घुड़सवारों की थी, जो तेजी से आक्रमण करने में सक्षम थी।

हूणों की विरासत क्या है?

हूणों की विरासत इतिहास में आक्रमणकारी जनजातियों के रूप में दर्ज है, जिन्होंने यूरोप और एशिया के कई हिस्सों पर प्रभाव डाला।

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