हिरण्मयी स्तोत्रम्
हिरण्मयी स्तोत्रम् (Hiranmayee Stotram) एक अत्यंत प्रभावशाली एवं भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जो देवी लक्ष्मी के “हिरण्मयी” स्वरूप की स्तुति करता है। “हिरण्मयी” का शाब्दिक अर्थ है – सुवर्णमयी, अर्थात् स्वर्ण के समान प्रकाशमान और तेजस्वी। यह स्तोत्र लक्ष्मी जी की दिव्यता, वैभव, और उनकी आध्यात्मिक महत्ता को विशेष रूप से उजागर करता है।
ह स्तोत्र देवी लक्ष्मी के उन गुणों का वर्णन करता है जो उन्हें ब्रह्मांडीय शक्ति बनाते हैं। वे केवल धन की देवी नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी, पालनकर्ता और रक्षणकर्ता हैं। इस स्तोत्र में उन्हें सर्वज्ञा, सर्वशक्तिमान, विशुद्ध प्रकाशमयी और ब्रह्मस्वरूपा के रूप में वर्णित किया गया है।
Hiranmayee Stotram
क्षीरसिन्धुसुतां देवीं कोट्यादित्यसमप्रभाम्|
हिरण्मयीं नमस्यामि लक्ष्मीं मन्मातरं श्रियम्|
वरदां धनदां नन्द्यां प्रकाशत्कनकस्रजाम्|
हिरण्मयीं नमस्यामि लक्ष्मीं मन्मातरं श्रियम्|
आद्यन्तरहितां नित्यां श्रीहरेरुरसि स्थिताम्|
हिरण्मयीं नमस्यामि लक्ष्मीं मन्मातरं श्रियम्|
पद्मासनसमासीनां पद्मनाभसधर्मिणीम्|
हिरण्मयीं नमस्यामि लक्ष्मीं मन्मातरं श्रियम्|
देविदानवगन्धर्वसेवितां सेवकाश्रयाम्|
हिरण्मयीं नमस्यामि लक्ष्मीं मन्मातरं श्रियम्|
हिरण्मय्या नुतिं नित्यं यः पठत्यथ यत्नतः|
प्राप्नोति प्रभुतां प्रीतिं धनं मानं जनो ध्रुवम्|
पाठ विधि
- सुबह स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें।
- देवी लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक, धूप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।
- “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” इस मंत्र से स्तुति प्रारंभ करें।
- हिरण्मयी स्तोत्रम् का पाठ करें या उसका ध्यान करें।
- शुक्रवार, पूर्णिमा, या दीपावली के दिन विशेष फलदायी माना गया है।