Brahmanda Purana
ब्रह्माण्ड पुराण हिन्दू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, जो अपनी व्यापकता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आध्यात्मिक गहराई के लिए प्रसिद्ध है। इसे मध्यकालीन भारतीय साहित्य में ‘वायवीय पुराण’ या ‘वायवीय ब्रह्माण्ड’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें वायु देवता द्वारा वेदव्यास को दिए गए ज्ञान का वर्णन है। विद्वानों का मानना है कि इसका मूल भाग चौथी शताब्दी ईस्वी के आसपास रचा गया, जिसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन और विस्तार हुए। इस पुराण में लगभग 12,000 श्लोक और 156 अध्याय हैं, जो इसे एक विशाल और समृद्ध ग्रन्थ बनाते हैं। यह संस्कृत में रचित है, लेकिन इसके कई हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद उपलब्ध हैं।
ब्रह्माण्ड पुराण का उपदेष्टा प्रजापति ब्रह्मा को माना जाता है। परम्परा के अनुसार, ब्रह्मा ने यह ज्ञान वशिष्ठ को दिया, जिन्होंने इसे अपने पौत्र पराशर को सौंपा। पराशर से यह ज्ञान जातुकर्ण्य, फिर द्वैपायन (वेदव्यास) और उनके शिष्यों तक पहुँचा। अन्ततः लोमहर्षण सूत ने नैमिषारण्य में एकत्रित ऋषियों को इस पुराण की कथा सुनाई।
संरचना और विभाजन
ब्रह्माण्ड पुराण को चार प्रमुख भागों (पादों) में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं:
- प्रक्रिया पाद (पूर्व भाग):
- यह भाग विश्व की सृष्टि, हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति, लोक-रचना और कर्तव्यों के उपदेश से शुरू होता है।
- इसमें नैमिषारण्य आख्यान, कल्प और मन्वन्तरों का वर्णन है।
- पृथ्वी का भौगोलिक वर्णन, भारतवर्ष, जम्बू द्वीप, अन्य द्वीपों और पाताल लोकों का विवरण इस भाग में मिलता है।
- अनुषंग पाद (पूर्व भाग):
- इस भाग में रुद्र सृष्टि, महादेव की विभूति, अग्नि विजय, प्रियव्रत वंश, ग्रहों की गति और आदित्य व्यूह का वर्णन है।
- पृथ्वी का दैर्घ्य और विस्तार, युगों का निरूपण, वेदव्यास और मनवन्तरों का कथन भी शामिल है।
- उपोद्घात पाद (मध्य भाग):
- यह भाग सप्तऋषियों, प्रजापति वंश, देवताओं और मरुद्गणों की उत्पत्ति का वर्णन करता है।
- कश्यप की संतानों, इक्ष्वाकु वंश, परशुराम चरित्र, सगर की उत्पत्ति, और शुक्राचार्य द्वारा रचित इन्द्र स्तोत्र का उल्लेख है।
- इसमें वैवस्वत मनु और उनके वंश का विस्तृत वर्णन भी है।
- उपसंहार पाद (उत्तर भाग):
- यह भाग भविष्य के मनवन्तरों, नरकों के विवरण, शिवधाम और परब्रह्म के स्वरूप का वर्णन करता है।
- इसमें सत्व, रजस और तमस गुणों के आधार पर जीवों की त्रिविध गति का निरूपण है।
- वैवस्वत मनवन्तर की कथा को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
ये चारों पाद मिलकर पुराण के पांच लक्षणों—सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित—को पूर्ण करते हैं।
ब्रम्हांड पुराण प्रमुख कथाएँ
- विश्व की सृष्टि और खगोल:
- पुराण में विश्व को एक अण्डाकार संरचना (ब्रह्माण्ड) के रूप में वर्णित किया गया है, जो जल, अग्नि, वायु, आकाश और तामस अंधकार से घिरा है। यह अवधारणा आधुनिक ब्रह्माण्ड विज्ञान से आश्चर्यजनक रूप से मेल खाती है।
- ग्रहों की गति, आदित्य व्यूह और भूगोल का वर्णन वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- ऋषियों और राजवंशों का चरित्र:
- कश्यप, पुलस्त्य, अत्रि, पराशर, विश्वामित्र और वशिष्ठ जैसे ऋषियों की कथाएँ शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक हैं।
- इक्ष्वाकु, सूर्यवंश, चन्द्रवंश और अन्य राजवंशों का वर्णन ऐतिहासिक महत्व रखता है।
- ध्रुव का चरित्र दृढ़ संकल्प और परिश्रम का प्रतीक है, जबकि गंगावतरण की कथा श्रम और विजय की गाथा है।
- धार्मिक और नैतिक शिक्षाएँ:
- चोरी को महापाप बताते हुए, विशेष रूप से देवताओं और ब्राह्मणों की सम्पत्ति की चोरी के लिए कठोर दण्ड का उल्लेख है।
- धर्म, सदाचार, नीति, पूजा-उपासना और ध्यान की विधियों का वर्णन है।
- यज्ञ, युगों के लक्षण और वैदिक कर्मकाण्डों का महत्व बताया गया है।
- आध्यात्मिक दर्शन:
- परब्रह्म के अनिर्देश्य और अतर्क्य स्वरूप का वर्णन इस पुराण को दार्शनिक गहराई प्रदान करता है।
- सत्व, रजस और तमस गुणों के आधार पर जीवों की गति और मोक्ष के मार्ग का उल्लेख है।
- परशुराम और अन्य अवतार:
- परशुराम के अवतार और उनके चरित्र का विस्तृत वर्णन इस पुराण में मिलता है।
- विष्णु माहात्म्य और देवासुर संग्राम की कथाएँ भी शामिल हैं।
ब्रह्माण्ड पुराण एक ऐसा ग्रन्थ है, जो धर्म, विज्ञान, दर्शन और संस्कृति का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। यह न केवल हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र ग्रन्थ है, बल्कि विश्व के सभी जिज्ञासुओं के लिए एक ज्ञान का भण्डार है। इसके अध्ययन से हमें न केवल प्राचीन भारतीय सभ्यता की गहराई का पता चलता है, बल्कि यह हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझने की दिशा में भी प्रेरित करता है।