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गुरूवार, फ़रवरी 13, 2025

आयुष्य सूक्तम्

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Ayushya Suktam In Hindi

आयुष्य सूक्तम्(Ayushya Suktam) एक प्राचीन वैदिक स्तोत्र है, जो दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए पाठ किया जाता है। यह सूक्त ऋग्वेद से संबंधित है और इसमें विभिन्न देवताओं की स्तुति की गई है, जो मनुष्य को दीर्घायु, शक्ति और सुख प्रदान करते हैं। यह स्तोत्र घृत (घी) के साथ हवन करने और देवताओं को अर्पित करने का महत्व बताता है। नीचे दिए गए मंत्रों का विस्तृत अर्थ और व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है:

आयुष्य सूक्तम् अर्थ के साथ

मंत्र 1:

यो ब्रह्मा ब्रह्मण उ॑ज्जहा॒र प्रा॒णै-श्शि॒रः कृत्तिवासाः᳚ पिना॒की ।
ईशानो देव-स्स न आयु॑र्दधा॒तु॒ तस्मै जुहोमि हविषा॑ घृते॒न ॥ 1 ॥

अर्थ:

  • “यो ब्रह्मा ब्रह्मण उज्जहार”: जो ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) ने ब्रह्म (वेद) को प्रकट किया।
  • “प्राणैः शिरः कृत्तिवासाः पिनाकी”: जो प्राणों के स्वामी हैं, जिन्होंने शिर (सिर) को धारण किया है, और जो पिनाक (शिव का धनुष) धारण करते हैं।
  • “ईशानो देवः स न आयुर्दधातु”: हे ईशान (शिव), वह देव हमें दीर्घायु प्रदान करें।
  • “तस्मै जुहोमि हविषा घृतेन”: हम उन्हें घृत (घी) से यज्ञ करते हैं।

मंत्र 2:

विभ्राजमान-स्सरिर॑स्य म॒ध्या॒-द्रो॒च॒मा॒नो घर्मरुचि॑र्य आ॒गात् ।
स मृत्युपाशानपनु॑द्य घो॒रा॒नि॒हा॒यु॒षे॒णो घृतम॑त्तु दे॒वः ॥ 2 ॥

अर्थ:

  • “विभ्राजमानः शरीरस्य मध्यात्”: जो शरीर के मध्य से प्रकाशमान होता है।
  • “रोचमानो घर्मरुचिर्य आगात्”: जो तेजस्वी और उष्णता (ऊर्जा) से युक्त है।
  • “स मृत्युपाशानपनुद्य घोरान्”: वह देव हमें मृत्यु के बंधनों और भयानक संकटों से मुक्त करें।
  • “इहायुषेण घृतमत्तु देवः”: वह देव हमें दीर्घायु के लिए घृत (घी) का भोग लगाएं।

मंत्र 3:

ब्रह्मज्योति-र्ब्रह्म-पत्नी॑षु ग॒र्भं॒-यँ॒मा॒द॒धा-त्पुरुरूप॑-ञ्जय॒न्तम् ।
सुवर्णरम्भग्रह-म॑र्कम॒र्च्य॒-न्त॒मा॒यु॒षे वर्धयामो॑ घृते॒न ॥ 3 ॥

अर्थ:

  • “ब्रह्मज्योतिः ब्रह्मपत्नीषु गर्भम्”: ब्रह्म के प्रकाश ने ब्रह्मपत्नियों (सरस्वती आदि) के गर्भ में प्रवेश किया।
  • “यमादधात् पुरुरूपं जयन्तम्”: जो विविध रूपों में प्रकट होकर विजयी है।
  • “सुवर्णरम्भग्रहमर्कमर्च्यम्”: सोने के समान दिव्य और पूजनीय।
  • “तमायुषे वर्धयामो घृतेन”: हम उन्हें घृत (घी) से यज्ञ करके अपने आयुष्य को बढ़ाएं।

मंत्र 4:

श्रियं-लँक्ष्मी-मौबला-मम्बिका॒-ङ्गां॒ ष॒ष्ठी-ञ्च या॒मिन्द्रसेने᳚त्युदा॒हुः ।
तां-विँद्या-म्ब्रह्मयोनिग्ं॑ सरू॒पा॒मि॒हा॒यु॒षे तर्पयामो॑ घृते॒न ॥ 4 ॥

अर्थ:

  • “श्रियं लक्ष्मीमौबलामम्बिकाङ्गाम्”: श्री (समृद्धि), लक्ष्मी (धन), औबला (शक्ति), और अम्बिका (दुर्गा) की स्तुति करते हैं।
  • “षष्ठीं च यामिन्द्रसेनेत्युदाहुः”: षष्ठी देवी और इंद्राणी (इंद्र की पत्नी) की भी स्तुति की जाती है।
  • “तां विद्याम्ब्रह्मयोनिं सरूपाम्”: उन देवियों को ब्रह्म की उत्पत्ति का स्रोत और साक्षात् ब्रह्मस्वरूप माना जाता है।
  • “इहायुषे तर्पयामो घृतेन”: हम उन्हें घृत (घी) से तृप्त करके अपने आयुष्य को बढ़ाएं।

मंत्र 5:

दाक्षायण्य-स्सर्वयोन्यः॑ स यो॒न्य॒-स्स॒ह॒स्र॒शो विश्वरूपा॑ विरू॒पाः ।
ससूनव-स्सपतयः॑ सयू॒थ्या॒ आ॒यु॒षे॒णो घृतमिद॑-ञ्जुष॒न्ताम् ॥ 5 ॥

अर्थ:

  • “दाक्षायण्यः सर्वयोन्यः”: दक्ष की पुत्रियां (देवियां) सभी योनियों (जीवों) की उत्पत्ति का कारण हैं।
  • “सहस्रशो विश्वरूपा विरूपाः”: वे हजारों रूपों में विश्व में व्याप्त हैं।
  • “ससूनवः सपतयः सयूथ्याः”: वे अपने पुत्रों, पतियों और साथियों के साथ हैं।
  • “आयुषेणो घृतमिदं जुषन्ताम्”: वे हमारे द्वारा अर्पित घृत (घी) को स्वीकार करें और हमें दीर्घायु प्रदान करें।

मंत्र 6:

दिव्या गणा बहुरूपाः᳚ पुरा॒णा॒ आयुश्छिदो नः प्रमथ्न॑न्तु वी॒रान् ।
तेभ्यो जुहोमि बहुधा॑ घृते॒न॒ मा॒ नः॒ प्र॒जाग्ं रीरिषो मो॑त वी॒रान् ॥ 6 ॥

अर्थ:

  • “दिव्या गणा बहुरूपाः पुराणाः”: दिव्य गण (देवताओं के समूह) अनेक रूपों में प्राचीन काल से विद्यमान हैं।
  • “आयुश्छिदो नः प्रमथ्नन्तु वीरान्”: वे हमारे आयु को काटने वाले शत्रुओं को नष्ट करें।
  • “तेभ्यो जुहोमि बहुधा घृतेन”: हम उन्हें विभिन्न प्रकार से घृत (घी) अर्पित करते हैं।
  • “मा नः प्रजां रीरिषो मोत वीरान्”: वे हमारी संतान और वीरों की रक्षा करें।

मंत्र 7:

ए॒कः॒ पु॒र॒स्तात् य इद॑-म्बभू॒व॒ यतो बभूव भुवन॑स्य गो॒पाः ।
यमप्येति भुवनग्ं सा᳚म्परा॒ये॒ स नो हविर्घृत-मिहायुषे᳚त्तु दे॒वः ॥ 7 ॥

अर्थ:

  • “एकः पुरस्तात् य इदं बभूव”: जो एकमात्र प्रभु सृष्टि के आदि में विद्यमान था।
  • “यतो बभूव भुवनस्य गोपाः”: जिससे यह समस्त ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ और जो इसका रक्षक है।
  • “यमप्येति भुवनं साम्पराये”: जो संसार के अंत में भी विद्यमान रहता है।
  • “स नो हविर्घृतमिहायुषेत्तु देवः”: वह देव हमारे द्वारा अर्पित घृत (घी) को स्वीकार करें और हमें दीर्घायु प्रदान करें।

मंत्र 8:

व॒सू॒-न्रुद्रा॑-नादि॒त्या-न्मरुतो॑-ऽथ सा॒ध्या॒न् ऋ॑भून् य॒क्षा॒-न्गन्धर्वाग्‍श्च पितॄग्‍श्च वि॒श्वान् ।
भृगून् सर्पाग्‍श्चाङ्गिरसो॑-ऽथ स॒र्वा॒-न्घृ॒त॒ग्ं हु॒त्वा स्वायुष्या महया॑म श॒श्वत् ॥ 8 ॥

अर्थ:

  • “वसून् रुद्रानादित्यान्मरुतोऽथ साध्यान्”: वसु, रुद्र, आदित्य, मरुत और साध्य देवताओं की स्तुति करते हैं।
  • “ऋभून् यक्षान्गन्धर्वांश्च पितॄन् च विश्वान्”: ऋभु, यक्ष, गंधर्व और पितरों की भी स्तुति करते हैं।
  • “भृगून् सर्पांश्चाङ्गिरसोऽथ सर्वान्”: भृगु, सर्प और अंगिरस ऋषियों की भी स्तुति करते हैं।
  • “घृतं हुत्वा स्वायुष्या महयाम शश्वत्”: घृत (घी) से यज्ञ करके हम अपने आयुष्य को सदैव बढ़ाएं।

मंत्र 9:

विष्णो॒ त्व-न्नो॒ अन्त॑म॒श्शर्म॑यच्छ सहन्त्य ।
प्रते॒धारा॑ मधु॒श्चुत॒ उथ्स॑-न्दुह्रते॒ अक्षि॑तम् ॥

अर्थ:

  • “विष्णो त्वन्नो अन्तमश्शर्मयच्छ”: हे विष्णु, आप हमें शांति और सुरक्षा प्रदान करें।
  • “सहन्त्य प्रतेधारा मधुश्चुतः”: आप हमारे सभी कष्टों को दूर करें और मधुर (सुखद) अनुभव प्रदान करें।
  • “उत्सन्दुह्रते अक्षितम्”: आप हमें अक्षय (अनंत) सुख और समृद्धि प्रदान करें।

मंत्र 10:

॥ ॐ शान्ति॒-श्शान्ति॒-श्शान्तिः॑ ॥

अर्थ:

  • “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः”: ॐ, हमारे मन, वचन और कर्म में पूर्ण शांति हो।

आयुष्य सूक्तम्Ayushya Suktam

यो ब्रह्मा ब्रह्मण उ॑ज्जहा॒र प्रा॒णै-श्शि॒रः कृत्तिवासाः᳚ पिना॒की ।
ईशानो देव-स्स न आयु॑र्दधा॒तु॒ तस्मै जुहोमि हविषा॑ घृते॒न ॥ 1 ॥

विभ्राजमान-स्सरिर॑स्य म॒ध्या॒-द्रो॒च॒मा॒नो घर्मरुचि॑र्य आ॒गात् ।
स मृत्युपाशानपनु॑द्य घो॒रा॒नि॒हा॒यु॒षे॒णो घृतम॑त्तु दे॒वः ॥ 2 ॥

ब्रह्मज्योति-र्ब्रह्म-पत्नी॑षु ग॒र्भं॒-यँ॒मा॒द॒धा-त्पुरुरूप॑-ञ्जय॒न्तम् ।
सुवर्णरम्भग्रह-म॑र्कम॒र्च्य॒-न्त॒मा॒यु॒षे वर्धयामो॑ घृते॒न ॥ 3 ॥

श्रियं-लँक्ष्मी-मौबला-मम्बिका॒-ङ्गां॒ ष॒ष्ठी-ञ्च या॒मिन्द्रसेने᳚त्युदा॒हुः ।
तां-विँद्या-म्ब्रह्मयोनिग्ं॑ सरू॒पा॒मि॒हा॒यु॒षे तर्पयामो॑ घृते॒न ॥ 4 ॥

दाक्षायण्य-स्सर्वयोन्यः॑ स यो॒न्य॒-स्स॒ह॒स्र॒शो विश्वरूपा॑ विरू॒पाः ।
ससूनव-स्सपतयः॑ सयू॒थ्या॒ आ॒यु॒षे॒णो घृतमिद॑-ञ्जुष॒न्ताम् ॥ 5 ॥

दिव्या गणा बहुरूपाः᳚ पुरा॒णा॒ आयुश्छिदो नः प्रमथ्न॑न्तु वी॒रान् ।
तेभ्यो जुहोमि बहुधा॑ घृते॒न॒ मा॒ नः॒ प्र॒जाग्ं रीरिषो मो॑त वी॒रान् ॥ 6 ॥

ए॒कः॒ पु॒र॒स्तात् य इद॑-म्बभू॒व॒ यतो बभूव भुवन॑स्य गो॒पाः ।
यमप्येति भुवनग्ं सा᳚म्परा॒ये॒ स नो हविर्घृत-मिहायुषे᳚त्तु दे॒वः ॥ 7 ॥

व॒सू॒-न्रुद्रा॑-नादि॒त्या-न्मरुतो॑-ऽथ सा॒ध्या॒न् ऋ॑भून् य॒क्षा॒-न्गन्धर्वाग्‍श्च पितॄग्‍श्च वि॒श्वान् ।
भृगून् सर्पाग्‍श्चाङ्गिरसो॑-ऽथ स॒र्वा॒-न्घृ॒त॒ग्ं हु॒त्वा स्वायुष्या महया॑म श॒श्वत् ॥ 8 ॥

विष्णो॒ त्व-न्नो॒ अन्त॑म॒श्शर्म॑यच्छ सहन्त्य ।
प्रते॒धारा॑ मधु॒श्चुत॒ उथ्स॑-न्दुह्रते॒ अक्षि॑तम् ॥

॥ ॐ शान्ति॒-श्शान्ति॒-श्शान्तिः॑ ॥

आयुष्य सूक्तम् का महत्व

  1. दीर्घायु और स्वास्थ्य: इस स्तोत्र का पाठ करने से दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
  2. संकट निवारण: यह स्तोत्र जीवन के विभिन्न संकटों से मुक्ति दिलाता है।
  3. आध्यात्मिक लाभ: इसके पाठ से मन को शांति और आत्मिक उन्नति मिलती है।
  4. यज्ञ और हवन: इसमें घृत (घी) से यज्ञ करने का विशेष महत्व बताया गया है।

आयुष्य सूक्तम् दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के लिए एक शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके पाठ से भक्तों को देवताओं की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह स्तोत्र हमें जीवन के संकटों से मुक्ति दिलाने और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करने में सहायक है।

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