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मंगलवार, मई 13, 2025

नर्मदे कवचम्

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Narmada Kavacham In Hindi

नर्मदे कवचम्(Narmada Kavacham) एक प्रसिद्ध धार्मिक मंत्र है, जो विशेष रूप से महाकवि कालिदास द्वारा रचित माना जाता है। यह मंत्र नर्मदा नदी की पूजा से संबंधित है और इसके माध्यम से भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए नर्मदा माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। नर्मदे कवचम् का उच्चारण करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

नर्मदा नदी का महत्व

नर्मदा नदी भारतीय संस्कृति में अत्यधिक पवित्र मानी जाती है। यह नदी मध्यप्रदेश और गुजरात के विभिन्न हिस्सों से होकर बहती है और इसका संबंध भगवान शिव से भी जोड़ा जाता है। नर्मदा नदी को भारतीय पौराणिक कथाओं में एक देवी के रूप में पूजा जाता है और इसे “नर्मदा माता” के नाम से संबोधित किया जाता है।

नर्मदे कवचम् का महत्व

नर्मदे कवचम् का पाठ विशेष रूप से नर्मदा नदी के किनारे या घर में पवित्र स्थान पर करना शुभ माना जाता है। यह कवच उन सभी संकटों से रक्षा करने के लिए है, जो जीवन में आ सकते हैं। इस मंत्र का उच्चारण करने से भगवान शिव और नर्मदा माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति का जीवन सुखी और समृद्ध बनता है।

नर्मदे कवचम् का पाठ कैसे करें?

नर्मदे कवचम् का पाठ विशेष रूप से नर्मदा नदी के किनारे या किसी पवित्र स्थान पर करना अत्यंत शुभ होता है। यह पूजा सुबह सूर्योदय से पहले या फिर शाम के समय की जाती है। इस कवच का पाठ करने से जीवन में आ रही समस्याएं समाप्त होती हैं और व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती है। यह मंत्र सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों से भी रक्षा करता है।

नर्मदे कवचम् के लाभ

  1. संकट से मुक्ति – यह कवच व्यक्ति को जीवन के सभी संकटों से मुक्ति दिलाने में मदद करता है।
  2. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य – नर्मदे कवचम् का पाठ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
  3. समृद्धि और सुख – नर्मदा माता के आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सुख का वास होता है।
  4. धन-धान्य की प्राप्ति – यह मंत्र धन और वैभव में वृद्धि करने वाला है।

Narmada Kavacham

ॐ लोकसाक्षि जगन्नाथ संसारार्णवतारणम् ।
नर्मदाकवचं ब्रूहि सर्वसिद्धिकरं सदा ॥

श्रीशिव उवाच

साधु ते प्रभुतायै त्वां त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ।
नर्मदाकवचं देवि ! सर्वरक्षाकरं परम् ॥

नर्मदाकवचस्यास्य महेशस्तु ऋषिस्मृतः ।
छन्दो विराट् सुविज्ञेयो विनियोगश्चतुर्विधे ॥

ॐ अस्य श्रीनर्मदाकवचस्य महेश्वर-ऋषिः ।
विराट्-छन्दः । नर्मदा देवता । ह्राँ बीजम् ।
नमः शक्तिः । नर्मदायै कीलकम् ।
मोक्षार्थे जपे विनियोगः ॥

अथ करन्यासः

ॐ ह्राम् अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रैम् अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥

अथ हृदयादिन्यासः

ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ ह्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ह्रः अस्त्राय फट ।
ॐ भूर्भुवस्स्वरोमिति दिग्बन्धः ॥

अथ ध्यानम्

ॐ नर्मदायै नमः प्रातर्नर्मदायै नमो निशि ।
नमस्ते नर्मद देवि त्राहि मां भवसागरात् ॥

आदौ ब्रह्माण्डखण्डे त्रिभुवनविवरे कल्पदा सा कुमारी
मध्याह्ने शुद्धरेवा वहति सुरनदी वेदकण्ठोपकण्ठैः ।
श्रीकण्ठे कन्यारूपा ललितशिवजटाशङ्करी ब्रह्मशान्तिः
सा देवी वेदगङ्गा ऋषिकुलतरिणी नर्मदा मां पुनातु ॥

इति ध्यात्वाऽष्टोत्तरशतवारं मूलमन्त्रं जपेत् ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्रैं ह्रौं ह्रः नर्मदायै नमः इति मन्त्रः ।
अथ नर्मदागायत्री –
ॐ रुद्रदेहायै विद्महे मेकलकन्यकायै धीमहि ।
तन्नो रेवा प्रचोदयात् ॥

ॐ नर्मदाय नमः साहम् ।
इति मन्त्रः । ॐ ह्रीं श्रीं नर्मदायै स्वाहा ॥

अथ कवचम्

ॐ पूर्वे तु नर्मदा पातु आग्नेयां गिरिकन्यका ।
दक्षिणे चन्द्रतनया नैरृत्यां मेकलात्मजा ॥

रेवा तु पश्चिमे पातु वायव्ये हरवल्लभा ।
उत्तरे मेरुतनया ईशान्ये चतुरङ्गिणी ॥

ऊर्ध्वं सोमोद्भवा पातु अधो गिरिवरात्मजा ।
गिरिजा पातु मे शिरसि मस्तके शैलवासिनी ॥

ऊर्ध्वगा नासिकां पातु भृकुटी जलवाहिनी ।
कर्णयोः कामदा पातु कपाले चामरेश्वरी ॥

नेत्रे मन्दाकिनी रक्षेत् पवित्रा चाधरोष्टके ।
दशनान् केशवी रक्षेत् जिह्वां मे वाग्विलासिनी ॥

चिबूके पङ्कजाक्षी च घण्टिका धनवर्धिनी ।
पुत्रदा बाहुमूले च ईश्वरी बाहुयुग्मके ॥

अङ्गुलीः कामदा पातु चोदरे जगदम्बिका ।
हृदयं च महालक्ष्मी कटितटे वराश्रमा ॥

मोहिनी जङ्घयोः पातु जठरे च उरःस्थले ।
सहजा पादयोः पातु मन्दला पादपृष्ठके ॥

धाराधरी धनं रक्षेत् पशून् मे भुवनेश्वरी ।
बुद्धि मे मदना पातु मनस्विनी मनो मम ॥

अभर्णे अम्बिका पातु वस्तिं मे जगदीश्चरी ।
वाचां मे कौतकी रक्षेत् कौमारी च कुमारके ॥

जले श्रीयन्त्रणे पातु मन्त्रणे मनमोहिनी ।
तन्त्रणे कुरुगर्भां च मोहने मदनावली ॥

स्तम्भे वै स्तम्भिनी रक्षेद्विसृष्टा सृष्टिगामिनी ।
श्रेष्ठा चौरे सदा रक्षेत् विद्वेषे वृष्टिधारिणी ॥

राजद्वारे महामाया मोहिनी शत्रुसङ्गमे ।
क्षोभणी पातु सङ्ग्रामे उद्भटे भटमर्दिनी ॥

मोहिनी मदने पातु क्रीडायां च विलासिनी ।
शयने पातु बिम्बोष्ठी निद्रायां जगवन्दिता ॥

पूजायां सततं रक्षेत् बलावद् ब्रह्मचारिणी ।
विद्यायां शारदा पातु वार्तायां च कुलेश्वरी ॥

श्रियं मे श्रीधरी पातु दिशायां विदिशा तथा ।
सर्वदा सर्वभावेन रक्षेद्वै परमेश्वरी ॥

इतीदं कवचं गुह्यं कस्यचिन्न प्रकाशितम् ।
सम्प्रत्येव मया प्रोक्तं नर्मदाकवचं यदि ॥

ये पठन्ति महाप्राज्ञास्त्रिकालं नर्मदातटे ।
ते लभन्ते परं स्थानं यत् सुरैरपि दुर्लभम् ॥

गुह्याद् गुह्यतरं देवि रेवायाः कवचं शुभम् ।
धनदं मोक्षदं ज्ञानं सबुद्धिमचलां श्रियम् ॥

महापुण्यात्मका लोके भवन्ति कवचात्मके ।
एकादश्यां निराहारो ब्रतस्थो नर्मदातटे ॥

सायाह्ने योगसिद्धिः स्यात् मनः सृष्टार्धरात्रके ।
सप्तावृत्तिं पठेद्विदान् ज्ञानोदयं समालभेत् ॥

भौमार्के रविवारे तु अर्धरात्रे चतुष्पथे ।
सप्तावृत्तिं पठेद् देवि स लभेद् बलकामकम् ॥

प्रभाते ज्ञानसम्पत्ति मध्याह्ने शत्रुसङ्कटे ।
शतावृत्तिविशेषेण मासमेकं च लभ्यते ॥

शत्रुभीते राजभङ्गे अश्वत्थे नर्मदातटे ।
सहस्त्रावृत्तिपाठेन संस्थितिर्वै भविष्यति ॥

नान्या देवि नान्या देवि नान्या देवि महीतले ।
न नर्मदासमा पुण्या वसुधायां वरानने ॥

यं यं वाञ्छयति कामं यः पठेत् कवचं शुभम् ।
तं तं प्राप्नोति वै सर्वं नर्मदायाः प्रसादतः ॥

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