यह विनती रघुबीर गुसाईं Yeh Vinti Raghuveer Gosai (राग धनाश्री, विनय-पत्रिका पद)
यह विनती रघुबीर गुसाईं । और आस बिस्वास भरोसो, हरौ जीव जड़ताई ॥। १ ।
और आस बिस्वास भरोसो, चौं न सुगति, सुमति, संपति कछु, रिधि सिधि विपुल बड़ाई ।
हेतु-रहित अनुराग रामपद, बदु अनुदिन अधिकाई ॥ २ ॥
कुटिल करम लै जाइ मोहि, जहँ जहँ अपनी बरियाई ।
तहँ तहँ जनि छिन छोह छाँड़िये, कमठ- अण्डकी नाई ॥ ३ ॥
यहि जगमें जलगि या तनुकी, प्रीति प्रतीति सगाई ।
ते सब तुलसिदास प्रभु ही सों,होहिं सिमिटि इक ठाई ॥ ४ ॥