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मंगलवार, नवम्बर 4, 2025

स्याम मोहिं तुम बिनु कछु न सुहावै | Syam Mohin Tum Binu Kachu Na Suhavai

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स्याम मोहिं तुम बिनु कछु न सुहावै

Syam Mohin Tum Binu Kachu Na Suhavai

 

स्याम मोहिं तुम बिनु कछु न सुहावै ।

जबतें तुम तजि ब्रज, गये मथुरा, हिय उथल्योई आवै ॥

बिरह बिथा सगरे तनु व्यापी, तनिक न चैन लखावै ।

कल नहिं परत निमेष एक मोहि, मन-समुद्र लहरावै ।।

नंद-घर सूनो, मधुबन सूनो, सूनी कुंज जनावै ।

गोठ, बिपिन, जमुना-तट सूनो, हिय सूनो बिलखावै ।।

अति बिह्वल वृषभानुनंदिनी, नैर्नान नीर बहावै ।

सकुच बिहाइ पुकारि कहति सो, स्याम मिलें सुख पावै।।

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