श्री शनि चालीसा (२) Shri Shani Chalisa 2

Post Date:

श्री शनि चालीसा (२) Shri Shani Chalisa 2

भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा और आराधना का विशेष महत्व है। इन देवी-देवताओं में से एक महत्वपूर्ण देवता हैं श्री शनि देव। श्री शनि चालीसा एक प्रमुख पूजा पाठ है जिसे श्रद्धा-भक्ति के साथ अदान-प्रदान किया जाता है।

श्री शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। उन्हें काला रंग और आठ बाहुएं होती हैं, जिनमें से दो ऊपर की ओर होती हैं और छः नीचे की ओर होती हैं। शनि देव को शक्ति और न्याय का प्रतीक माना जाता है। उनकी आराधना से शनिदेव अपने भक्तों को न्याय, धैर्य, सच्चाई और सम्मान की दृष्टि से आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

श्री शनि चालीसा एक प्रमुख पूजा पाठ है जिसे शनिदेव के भक्त नियमित रूप से करते हैं। यह चालीसा ४० श्लोकों से मिलकर बनी होती है जो शनिदेव की महिमा का वर्णन करती हैं। इसे पाठ को करने से शनिदेव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्तों की समस्याओं का निवारण होता है। श्री शनि चालीसा की पाठ के बाद भक्त अपने जीवन में न्याय और सम्मान की भावना के साथ आगे बढ़ते हैं।
श्री शनि चालीसा के पाठ का विशेष महत्व होता है शनिवार को। शनिवार को यह चालीसा पाठ करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से समस्याओं का समाधान होता है। शनिदेव की पूजा और चालीसा का पाठ करके भक्त अपने जीवन में धैर्य, सच्चाई और न्याय की भावना को स्थापित करते हैं।

श्री शनि चालीसा को पाठ करने से श्रद्धा और भक्ति की भावना में वृद्धि होती है। यह चालीसा शनिदेव के भक्तों को उनके जीवन में सफलता और सुख की प्राप्ति में मदद करती है। श्री शनि चालीसा का पाठ करने से भक्त न्याय, सम्मान, और सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं और अपने जीवन को समृद्ध, सुखी और शांतिपूर्ण बनाते हैं।
श्री शनि चालीसा का पाठ करने से शनिदेव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे समय-समय पर नियमित रूप से करने से शनि देव की कृपा होती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। श्री शनि चालीसा के पाठ से भक्त अपने जीवन को शुभ, सुखी और समृद्ध बनाते हैं और शनिदेव के आशीर्वाद में मदद प्राप्त करते हैं।

Shani Chalisa1

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।

दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥

जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥

॥ चौपाई ॥

जयति जयति शनिदेव दयाला, करत संदा भक्तन प्रतिपाला।
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै, माथे रतन मुकुट छवि छाजै।
परम विशाल मनोहर भाला, टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके, हिये माल मुक्तन मणि दमकै ।

कर में गदा त्रिशूल कुठारा, पल बिच करें अरिहिं संहारा।

पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन।
सौरीमन्द, शनी, दशनामा, भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं, रंकहुँ राव करें क्षण माहीं।

पर्वतहू तृण होइ निहारत, तृणहू को पर्वत करि डारत।
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो, कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो।
बनहूँ में मृग कपट दिखाई, मातु जानकी गई चुराई।
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा, मचिगा दल में हाहाकारा।

रावण की गति-मति बौराई, रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।
दियो कीट करि कंचन लंका, बजि बजरंग बीर की डंका।
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा, चित्र मयूर निगलि गै हारा।
हार नौलखा लाग्यो चोरी, हाथ पैर डरवायो तोरी।

भारी दशा निकृष्ट दिखायो, तेलहिं घर कोल्हू चलवायो।
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों, तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हयों।

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी, आपहुं भरे डोम घर पानी।
तैसे नल पर दशा सिरानी, भूजी-मीन कूद गई पानी।

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई, पारवती को सती कराई।
तनिक विलोकत ही करि रीसा, नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा।
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी, बची द्रोपदी होति उघारी।
कौरव के भी गति मति मारयो, युद्ध महाभारत करि डारयो।

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला, लेकर कूदि परयो पाताला ।
शेष देव-लखि विनती लाई, रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।
वाहन प्रभु के सात सुजाना, जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी, सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवें, हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।
गर्दभ हानि करै बहु काजा, सिंह सिद्धकर राज समाजा।
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै, मृग दे कष्ट प्राण संहारै।

जब आवहिं प्रभु स्वान सवार, चोरी आदि होय डर भारी।

तैसहि चारि चरण यह नामा, स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा।
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं, धन जन सम्पत्ति नष्ट करावें।
समता ताम्र रजत शुभकारी, स्वर्ण सर्व सर्वसुख मंगल भारी।
जो यह शनि चरित्र नित गावै, कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।

अद्भुत नाथ दिखावें लीला, करें शत्रु के नशि बलि ढीला।
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई, विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत, दीप दान दै बहु सुख पावत।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा, शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।

॥ दोहा ॥

पाठ शनीश्चर देव को, कीहों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

शिव पुराण

शिव पुराण, हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में...

स्कन्द पुराण

Skanda Purana Table of Contentsस्कन्द पुराण का परिचय Introduction...

भविष्य पुराण Bhavishya Puran

वेदों का परिचय Introduction to Vedasभविष्यपुराण का परिचय Introduction...

श्री वराह पुराण Varaha Purana

वराह पुराण का परिचय Varaha Puranamवराह पुराण हिंदू...