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सोमवार, मार्च 24, 2025

सरस्वती स्तव

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Saraswati Stava

सरस्वती स्तव एक अत्यंत प्रसिद्ध भक्ति-साहित्यिक रचना है, जिसमें देवी सरस्वती की महिमा, गुणों और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले ज्ञान, संगीत, कला एवं साहित्य की कृपा का वर्णन किया गया है। इस स्तव का मुख्य उद्देश्य भक्तों में ज्ञान का प्रकाश जगाना, सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करना और मानसिक शांति एवं एकाग्रता को बढ़ावा देना है।

देवी सरस्वती की महिमा

सौम्यता एवं शांति का प्रतीक:
उनके स्वरूप में अत्यंत सौम्यता, शांति और मधुरता है, जो पाठ करने वाले के मन में स्थिरता और आनंद का संचार करती है।

ज्ञान और बुद्धि की देवी:
देवी सरस्वती को शिक्षा, विद्या, संगीत, कला और साहित्य की देवी माना जाता है। वे अज्ञानता को दूर करने वाली ज्योति हैं, जिनके आशीर्वाद से जीवन में प्रगति और सफलता संभव होती है।

पाठ की विधि एवं उपयुक्त समय

  • पाठ की विधि:
    • साफ-सुथरे स्थान पर बैठकर, मन को शांत कर स्तव का पाठ करना चाहिए।
    • स्तव का पाठ करते समय, श्रद्धा एवं भक्ति का भाव पूर्ण रूप से होना अत्यंत आवश्यक है।
  • उपयुक्त समय:
    • प्रातःकाल: दिन की शुरुआत में जब मन ताजा हो और ऊर्जा उच्च हो, तब इसका पाठ लाभकारी माना जाता है।
    • सरस्वती पूजा के अवसर: वसंत पंचमी और अन्य सरस्वती पर्वों पर विशेष रूप से इसका पाठ किया जाता है।

स्तव के लाभ एवं महत्व

  • मानसिक शांति एवं एकाग्रता:
    सरस्वती स्तव का पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और ध्यान केंद्रित करने में सहायक होता है।
  • विद्या एवं सृजनात्मकता में वृद्धि:
    विद्यार्थियों तथा रचनात्मक कार्य में लगे व्यक्तियों के लिए यह स्तव विशेष लाभकारी है। इससे नई सोच, रचनात्मक ऊर्जा और स्पष्ट बुद्धि का संचार होता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति:
    देवी सरस्वती की स्तुति से न केवल ज्ञान में वृद्धि होती है, बल्कि व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है, जिससे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता मिलती है।

Saraswati Stava

विराजमानपङ्कजां विभावरीं श्रुतिप्रियां
वरेण्यरूपिणीं विधायिनीं विधीन्द्रसेविताम्।
निजां च विश्वमातरं विनायिकां भयापहां
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।
अनेकधा विवर्णितां त्रयीसुधास्वरूपिणीं
गुहान्तगां गुणेश्वरीं गुरूत्तमां गुरुप्रियाम्।
गिरेश्वरीं गुणस्तुतां निगूढबोधनावहां
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।
श्रुतित्रयात्मिकां सुरां विशिष्टबुद्धिदायिनीं
जगत्समस्तवासिनीं जनैः सुपूजितां सदा।
गुहस्तुतां पराम्बिकां परोपकारकारिणीं
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।
शुभेक्षणां शिवेतरक्षयङ्करीं समेश्वरीं
शुचिष्मतीं च सुस्मितां शिवङ्करीं यशोमतीम्।
शरत्सुधांशुभासमान- रम्यवक्त्रमण्डलां
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।
सहस्रहस्तसंयुतां नु सत्यसन्धसाधितां
विदां च वित्प्रदायिनीं समां समेप्सितप्रदाम्।
सुदर्शनां कलां महालयङ्करीं दयावतीं
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।
सदीश्वरीं सुखप्रदां च संशयप्रभेदिनीं
जगद्विमोहनां जयां जपासुरक्तभासुराम्।
शुभां सुमन्त्ररूपिणीं सुमङ्गलासु मङ्गलां
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।
मखेश्वरीं मुनिस्तुतां महोत्कटां मतिप्रदां
त्रिविष्टपप्रदां च मुक्तिदां जनाश्रयाम्।
शिवां च सेवकप्रियां मनोमयीं महाशयां
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।
मुदालयां मुदाकरीं विभूतिदां विशारदां
भुजङ्गभूषणां भवां सुपूजितां बुधेश्वरीम्।
कृपाभिपूर्णमूर्तिकां सुमुक्तभूषणां परां
सरस्वतीमहं भजे सनातनीं वरप्रदाम्।

सरस्वती स्तव का नियमित पाठ करने से जीवन में ज्ञान, शांति, सृजनात्मकता और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है। देवी सरस्वती की कृपा से व्यक्ति का मन अज्ञान से मुक्त हो जाता है और उसकी बुद्धि एवं रचनात्मकता में वृद्धि होती है।

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