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बुधवार, नवम्बर 12, 2025

संकटमोचन हनुमानाष्टक

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Sankatmochan Hanuman Ashtak In Hindi

संकटमोचन हनुमानाष्टक(Sankatmochan Hanuman Ashtak) भगवान हनुमान जी की स्तुति में लिखा गया एक प्रसिद्ध भजन है। इसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा था। यह अष्टक (आठ पदों का स्तोत्र) भगवान हनुमान के संकटमोचक स्वरूप का गुणगान करता है और यह विश्वास दिलाता है कि उनकी भक्ति से सभी संकट दूर हो जाते हैं।

संकटमोचन हनुमानाष्टक का महत्त्व

  • यह हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली भजन है।
  • इसका पाठ करने से भय, रोग, शोक, कष्ट, एवं मानसिक तनाव समाप्त हो जाते हैं
  • यह नकारात्मक शक्तियों, ग्रह दोषों एवं बुरी नजर से रक्षा करता है
  • इसे विशेष रूप से मंगलवार एवं शनिवार को पढ़ने का महत्व है।

संकटमोचन हनुमानाष्टक के लाभ

  1. सभी प्रकार के भय और कष्ट समाप्त होते हैं
  2. दुश्मनों एवं नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है
  3. मन में आत्मविश्वास और साहस की वृद्धि होती है
  4. कर्ज और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है
  5. स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों में लाभकारी होता है
  6. हनुमान जी की कृपा से कार्यों में सफलता मिलती है

पाठ करने का सही तरीका

  • मंगलवार और शनिवार को इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।
  • इसे सुबह या शाम स्नान के बाद हनुमान मंदिर में बैठकर या घर में श्रद्धापूर्वक पढ़ें
  • पाठ के समय घी का दीपक जलाएं और हनुमान जी को गुड़-चने या लड्डू का भोग लगाएं
  • कम से कम 11 या 21 बार पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।

संकटमोचन हनुमानाष्टक (Sankatmochan Hanuman Ashtak)

बाल समय रवि भक्षि लियो,
तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी विनती तब,
छाँडि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ को. १

बालि की त्रास कपीस बसै,
गिरिजात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि शाप दियो,
तब चाहिये कौन विचार विचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के शोक निवारो ॥ को.२

अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहाँ हम सों जु,
बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया सुधि प्राण उबारो ॥ को. ३

रावण त्रास दई सिय को तब,
राक्षस सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगिसु,
दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ॥ को.४

बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सुत रावण मारो।
लै गृह वैद्य सुखेन समेत,
तबै गिरि द्रोन सुबीर उपारो।
आनि संजीवनि हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्राण उबारो ॥ को.५

रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो।

आनि खगेश तबै हनुमान जु,
बन्धन काटि के त्रास निवारो ॥ को. ६
बंधु समेत जबै अहिरावण,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो।

देविहिं पूजि भली विधि सों बलि,
देऊ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तबही,
अहिरावण सैन्य समेत संहारो ॥ को.७-

काज किए बड़ देवन के तुम,
वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥ को.८

॥ दोहा ॥
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥

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