Krimi Samharaka Suktam In Hindi
यजुर्वेद में कई सूक्त ऐसे हैं जो जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े हैं। उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण सूक्त है क्रिमि संहारक सूक्तम्(Krimi Samharaka Suktam), जिसे स्वास्थ्य, शुद्धि और रोग निवारण से जोड़ा जाता है। यह सूक्त मुख्य रूप से शरीर और पर्यावरण में उपस्थित सूक्ष्मजीवों, कीटाणुओं (क्रिमियों) तथा अन्य हानिकारक जीवों को नष्ट करने के उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है।
क्रिमि संहारक सूक्तम् (यजुर्वेद) – Krimi Samharaka Suktam
(कृ.य.तै.आ.4.36.1)
अत्रि॑णा त्वा क्रिमे हन्मि ।
कण्वे॑न ज॒मद॑ग्निना ।
वि॒श्वाव॑सो॒र्ब्रह्म॑णा ह॒तः ।
क्रिमी॑णा॒ग्ं॒ राजा᳚ ।
अप्ये॑षाग् स्थ॒पति॑र्ह॒तः ।
अथो॑ मा॒ता-ऽथो॑ पि॒ता ।
अथो᳚ स्थू॒रा अथो᳚ क्षु॒द्राः ।
अथो॑ कृ॒ष्णा अथो᳚ श्वे॒ताः ।
अथो॑ आ॒शाति॑का ह॒ताः ।
श्वे॒ताभि॑स्स॒ह सर्वे॑ ह॒ताः ॥ 36
आह॒राव॑द्य ।
शृ॒तस्य॑ ह॒विषो॒ यथा᳚ ।
तत्स॒त्यम् ।
यद॒मुं-यँ॒मस्य॒ जम्भ॑योः ।
आद॑धामि॒ तथा॒ हि तत् ।
खण्फण्म्रसि॑ ॥ 37
ॐ शान्ति-श्शान्ति-श्शान्तिः ।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में भी इस सूक्त के महत्व को देखा जा सकता है।
- यह सूक्त संक्रमण और रोगजनक जीवाणुओं के प्रभाव को कम करने की वैदिक अवधारणा को दर्शाता है।
- प्राचीन काल में वैद्य और ऋषि-मुनि इस मंत्र का उच्चारण कर जड़ी-बूटियों से औषधियाँ तैयार करते थे।
- आज कीटाणुनाशक दवाओं और एंटीबायोटिक्स की भूमिका भी इसी तरह की होती है, जो हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर शरीर की रक्षा करती हैं।
यजुर्वेद का क्रिमि संहारक सूक्तम् न केवल एक धार्मिक प्रार्थना है, बल्कि इसमें गहरे वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी सिद्धांत निहित हैं। यह मंत्र मानव शरीर, पर्यावरण और मानसिक चेतना की शुद्धि के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है। आधुनिक युग में भी, जब हम रोगाणुओं और संक्रामक बीमारियों से जूझ रहे हैं, इस प्रकार के वैदिक ज्ञान का अध्ययन और उपयोग लाभकारी हो सकता है।