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सोमवार, अक्टूबर 7, 2024

किरातमूर्तिस्तोत्रम्

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किरातमूर्तिस्तोत्रम् Kiratmurti Stotram

नमः शिवाय भर्गाय लीलाशबररूपिणे ।
प्रपन्नार्तपरित्राणकरुणामसृणात्मने ॥१॥
पिञ्छोत्तंसं समानीलश्मश्रुविद्योतिताननम् ।
उदग्रारक्तनयनं गौरकौशेयवाससम् ॥२॥
कैलासशिखरोत्तुङ्गं छुरिकाचापधारिणम् ।
किरातमूर्तिं ध्यायामि परमं कुलदैवतम् ॥३॥
दुर्जनैर्बहुधाऽऽक्रान्तं भयसंभ्रान्तमानसम् ।
त्वदेकशरणं दीनं परिपालय नाथ, माम् ॥४॥
मह्यं द्रुह्यन्ति रिपवो बाह्याश्चाभ्यन्तराश्च ये ।
विद्रावय दयासिन्धो चापज्यानिस्वनेन तान् ॥५॥
कूटकर्मप्रसक्तानां शत्रूणां शातनाय भोः ।
चालय छुरिकां घोरां शतकोटिसमुज्ज्वलाम् ॥६॥
विपद्दावानलज्वालासन्तप्तं रोगपीडितम् ।
कर्तव्यताविमूढं मां त्रायस्व गिरिशात्मज ॥७॥
नमः किरातवपुषे नमः क्षेमङ्कराय च ।
नमः पापविघाताय नमस्ते धर्मसेतवे ॥८॥

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