वाणी शरणागति स्तोत्रम्
Vani Sharanagati Stotram एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें भक्त अपनी वाणी (शब्दों की दिव्यता) के माध्यम से परमेश्वर के चरणों में पूर्ण समर्पण और शरणागति का भाव प्रकट करते हैं। यह स्तोत्र आत्मशुद्धि, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का एक साधन माना जाता है। नीचे इसके विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी गई है
वाणी शरणागति स्तोत्रम् का महत्व
- भक्ति एवं समर्पण: इस स्तोत्र में भक्त अपनी कमजोरियों, असुरक्षाओं और संदेहों को स्वीकार करते हुए, ईश्वर के चरणों में पूरी तरह शरण ले जाते हैं।
- वाणी की दिव्यता: हिंदू दर्शन में वाणी (शब्द) को परमात्मा की अभिव्यक्ति माना गया है। इस स्तोत्र के माध्यम से शब्दों की शक्ति से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: नियमित जाप से मन की अशांति दूर होती है और आध्यात्मिक चेतना में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति आत्म-परिष्कार की ओर अग्रसर होता है।
वाणी शरणागति स्तोत्रम् के लाभ
- मानसिक शांति: नियमित जाप से मन की अशांति, चिंता एवं तनाव दूर होते हैं।
- आत्मिक शुद्धि: यह स्तोत्र व्यक्ति के अंदर निहित नकारात्मक विचारों और भावनाओं को साफ करता है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- धार्मिक आस्था: भक्तों में ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास और भक्ति का संचार होता है, जो जीवन में मार्गदर्शन और समाधान प्रदान करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: आत्म-परिष्कार और आध्यात्मिक चेतना को बढ़ावा देकर व्यक्ति के जीवन में संतुलन एवं समृद्धि लाता है।
वाणी शरणागति स्तोत्रम् का जाप एवं अनुष्ठान की विधि
- शुद्ध वातावरण: स्तोत्र का पाठ करने से पहले शारीरिक एवं मानसिक रूप से शुद्ध होना आवश्यक है। शांत और स्वच्छ वातावरण में इसका जाप अधिक प्रभावी होता है।
- नियत समय: सुबह के समय या शाम को जब मन शांति की अवस्था में हो, इस स्तोत्र का पाठ करने से इसके लाभ अधिक प्राप्त होते हैं।
- भक्ति भाव: पाठ के दौरान ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना बनाए रखें। अपनी वाणी में शुद्धता और मन की एकाग्रता से स्तोत्र का उच्चारण करें।
Vani Sharanagati Stotram
वेणीं सितेतरसमीरणभोजितुल्यां
वाणीं च केकिकुलगर्वहरां वहन्तीम् ।
श्रोणीं गिरिस्मयविभेदचणां दधानां
वाणीमनन्यशरणः शरणं प्रपद्ये ॥
वाचः प्रयत्नमनपेक्ष्य मुखारविन्दा-
द्वाताहताब्धिलहरीमदहारदक्षाः ।
वादेषु यत्करुणया प्रगलन्ति तां त्वां
वाणीमनन्यशरणः शरणं प्रपद्ये ॥
राकाशशाङ्कसदृशाननपङ्कजातां
शोकापहारचतुराङ्घ्रिसरोजपूजाम् ।
पाकारिमुख्यदिविषत्प्रवरेड्यमानां
वाणीमनन्यशरणः शरणं प्रपद्ये ॥
बालोडुपप्रविलसत्कचमध्यभागां
नीलोत्पलप्रतिभटाक्षिविराजमानाम् ।
कालोन्मिषत्किसलयारुणपादपद्मां
वाणीमनन्यशरणः शरणं प्रपद्ये ॥