हरिप्रिया स्तोत्रम्
हरिप्रिया स्तोत्रम् (Haripriya Stotram) एक अत्यंत दिव्य और भक्तिमय स्तोत्र है, जो भगवान विष्णु की अर्धांगिनी और समस्त जगत की जननी देवी लक्ष्मी की स्तुति करता है। “हरिप्रिया” का अर्थ होता है – हरि (विष्णु) की प्रिय, अर्थात् देवी लक्ष्मी। यह स्तोत्र देवी की शरणागतवत्सला, दीनबंधुहृदयस्थिता, करुणामयी, और धन, वैभव, सौंदर्य तथा मंगलदायिनी स्वरूप में प्रार्थना करता है।
यह स्तोत्र श्रीवेदांतदेशिकाचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जो श्रीवैष्णव परंपरा के महान आचार्य थे। इस स्तोत्र में देवी लक्ष्मी की शरणागत पर कृपा बरसाने वाले गुणों का गान किया गया है। यह भक्ति और समर्पण की भावना से ओत-प्रोत रचना है, जिसका पाठ करने से साधक को धन, स्वास्थ्य, शांति, मनोवांछित फल तथा भगवत्कृपा प्राप्त होती है।
Haripriya Stotram
त्रिलोकजननीं देवीं सुरार्चितपदद्वयाम्|
मातरं सर्वजन्तूनां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
प्रत्यक्षसिद्धिदां रम्यामाद्यां चन्द्रसहोदरीम्|
दयाशीलां महामायां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
इन्दिरामिन्द्रपूज्यां च शरच्चन्द्रसमाननाम्|
मन्त्ररूपां महेशानीं भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
क्षीराब्धितनयां पुण्यां स्वप्रकाशस्वरूपिणीम्|
इन्दीवरासनां शुद्धां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
सर्वतीर्थस्थितां धात्रीं भवबन्धविमोचनीम्|
नित्यानन्दां महाविद्यां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
स्वर्णवर्णसुवस्त्रां च रत्नग्रैवेयभूषणाम्|
ध्यानयोगादिगम्यां च भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
सामगानप्रियां श्रेष्ठां सूर्यचन्द्रसुलोचनाम्|
नारायणीं श्रियं पद्मां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
वैकुण्ठे राजमानां च सर्वशास्त्रविचक्षणाम्|
निर्गुणां निर्मलां नित्यां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
धनदां भक्तचित्तस्थ- सर्वकाम्यप्रदायिनीम्|
बिन्दुनादकलातीतां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
शान्तरूपां विशालाक्षीं सर्वदेवनमस्कृताम्|
सर्वावस्थाविनिर्मुक्तां भजे नित्यं हरिप्रियाम्|
स्तोत्रमेतत् प्रभाते यः पठेद् भक्त्या युतो नरः|
स धनं कीर्तिमाप्नोति विष्णुभक्तिं च विन्दति|
📿 पाठ विधि
- प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- देवी लक्ष्मी के चित्र/मूर्ति के समक्ष दीप जलाकर पुष्प और तिलक अर्पित करें।
- “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” इस मंत्र का जाप करें।
- फिर श्रद्धा से हरिप्रिया स्तोत्रम् का पाठ करें।
- शुक्रवार, एकादशी, दीपावली अथवा किसी शुभ दिन विशेष फलदायी होता है।