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शनिवार, सितम्बर 14, 2024

असितकृतं शिवस्तोत्रम्

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असितकृतम् शिवस्तोत्रम् Asit Krutam Shiv Stotram

शिवस्तोत्रम् जो कि भगवान शिव की महिमा का गान है, अनादि काल से श्रद्धालुओं के हृदय में विशेष स्थान रखता है। असितकृत शिवस्तोत्रम्, जिसे ऋषि असित ने रचा था, भगवान शिव की स्तुति में रचा गया एक अद्वितीय स्तोत्र है। यहा स्तोत्र ब्रह्म वैवर्त पुराण में दर्शाया गया है इस स्तोत्र की रचना में असित मुनि की गहन भक्ति, प्रेम और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह स्तोत्र केवल एक प्रार्थना नहीं है, बल्कि यह आत्मा की उस शुद्ध भावनाओं का प्रकट रूप है जो भगवान शिव के प्रति उनकी अपार आस्था को दर्शाता है।

असित मुनि और उनकी भक्ति

असित मुनि एक महान तपस्वी थे, जिन्होंने अपने जीवन को भगवान शिव की भक्ति में समर्पित कर दिया था। उन्होंने कठोर तपस्या और ध्यान के माध्यम से भगवान शिव की आराधना की, और उनके हृदय में शिव के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम उत्पन्न हुआ। उनकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि उन्होंने शिवस्तोत्रम् की रचना की, जिसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों, शक्तियों और गुणों का वर्णन किया गया है। असित मुनि की यह रचना न केवल एक धार्मिकता बल्कि यह उनके व्यक्तिगत अनुभवों और भगवान शिव के साथ उनके आध्यात्मिक संबंधों का भी प्रतीक है।

शिवस्तोत्रम् की संरचना

असितकृत शिवस्तोत्रम् की रचना अत्यंत सरल और सहज शब्दों में की गई है, लेकिन इसके भाव अत्यंत गहरे और प्रभावी हैं। इस स्तोत्र में भगवान शिव के विभिन्न रूपों की प्रशंसा की गई है, जैसे कि शिव के रुद्र रूप, नटराज रूप, और उनके करुणामयी रूप का वर्णन। इसके अलावा, स्तोत्र में शिव की शक्ति, उनके त्रिनेत्र, और उनकी महानता का वर्णन किया गया है। असित मुनि ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव के प्रति अपनी अपार श्रद्धा और भक्ति को प्रकट किया है। शिवस्तोत्रम् की रचना में असित मुनि ने छंदों का प्रयोग किया है, जिससे यह और भी अधिक मधुर और मनमोहक बन जाता है।

शिवस्तोत्रम् का आध्यात्मिक महत्त्व

असितकृत शिवस्तोत्रम् का आध्यात्मिक महत्त्व अत्यंत व्यापक है। यह स्तोत्र न केवल भगवान शिव की महिमा का गान करता है, बल्कि यह भक्तों के मन में शिव के प्रति आस्था और भक्ति को और भी अधिक प्रबल बनाता है। इस स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के हृदय में शांति, संतोष और आध्यात्मिक संतुलन की प्राप्ति होती है। असित मुनि ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को एक नए आयाम तक पहुँचाया है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और उनके सारे दुःख-दर्द समाप्त हो जाते हैं।

असितकृत शिवस्तोत्रम् के पाठ की विधि

इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए एक निश्चित विधि का पालन करना आवश्यक है। सुबह-सवेरे, स्नान आदि करने के पश्चात, एक स्वच्छ स्थान पर बैठकर इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। पाठ के समय मन को एकाग्र रखना और भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। असित मुनि ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव की महिमा का गान किया है, जो कि श्रद्धालुओं के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।

शिवस्तोत्रम् की प्रसार और प्रभाव

असितकृत शिवस्तोत्रम् का प्रसार भारत के विभिन्न हिस्सों में हुआ, और यह धीरे-धीरे भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हो गया। इस स्तोत्र का पाठ विभिन्न धार्मिक अवसरों पर किया जाता है, और यह श्रद्धालुओं के हृदय में भगवान शिव के प्रति आस्था और भक्ति को और भी अधिक प्रबल बनाता है। असित मुनि द्वारा रचित यह स्तोत्र आज भी शिव भक्तों के बीच अत्यंत आदर और श्रद्धा के साथ पढ़ा जाता है।

शिवस्तोत्रम् असितकृतम् Asit Krutam Shiv Stotram Lyrics

जगत्गुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च ।
योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरूणां गुरवे नमः ॥१॥

मृत्योर्मृत्युस्वरूपेण मृत्युसंसारखण्डन ।
मृत्योरीश मृत्युबीज मृत्युंजय नमोऽस्तु ते ॥२॥

कालरूपं कलयतां कालकालेश कारण ।
कालादतीत कालस्थ कालकाल नमोऽस्तु ते ॥३॥

गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक ।
गुणीश गुणिनां बीज गुणिनां गुरवे नमः ॥४॥

ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मभावे च तत्पर ।
ब्रह्मबीजस्वरूपेण ब्रह्मबीज नमोऽस्तु ते ॥५॥

असितेन कृतं स्तोत्रं भक्तियुक्तश्च यः पठेत् ।
वर्षमेकं हविष्याशी शंकरस्य महात्मनः ॥६॥

स लभेत् वैष्णवं पुत्रं ज्ञानिनं चिरजीविनम् ।
दरिद्रो धनमाप्नोति मूको भवति पण्डितः ॥७॥

अभार्यो लभते भार्यां सुशीलां च पतिव्रताम् ।
इहलोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते शिवसन्निधौ ॥८॥

इदं स्तोत्रं पुरा दत्तं ब्रह्मणा च प्रचेतसे ।
प्रचेतसोत्तमं दत्तं स्वपुत्रायासिताय हि ॥९॥



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