Hanuman Sathika
हनुमान साठिका एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो भगवान हनुमान को समर्पित है। इसे विशेष रूप से भक्ति, शक्ति और साहस के लिए पूजा जाता है। इस स्तोत्र में हनुमान जी के अनेक गुणों, शक्तियों और उनके कार्यों का वर्णन किया गया है। यहां पर हम हनुमान साठिका के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
हनुमान साठिका का महत्व
हनुमान साठिका का विशेष महत्व है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति की मानसिक परेशानियाँ दूर होती हैं और वह आत्मविश्वास से भरा होता है। यह स्तोत्र उन सभी भक्तों के लिए अत्यंत लाभकारी है जो भगवान हनुमान से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। इसके पाठ से जीवन में सकारात्मकता आती है और सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
हनुमान साठिका की रचना
हनुमान साठिका की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। इसे उन्होंने अपनी प्रसिद्ध काव्य रचना “रामचरितमानस” के संदर्भ में लिखा है। हनुमान जी को समर्पित यह स्तोत्र सरल, स्पष्ट और भावपूर्ण भाषा में है, जिससे इसे आसानी से समझा जा सकता है।
हनुमान साठिका की संरचना
हनुमान साठिका में कुल 60 छंद हैं, जिनमें भगवान हनुमान के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है। इसके छंदों में भक्तों को शक्ति, साहस और निडरता का संचार होता है। इसे पढ़ने से व्यक्ति में हिम्मत और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।
हनुमान साठिका के लाभ
- भक्तों के लिए संरक्षण: हनुमान साठिका का पाठ करने से भक्तों को संकटों से मुक्ति मिलती है और वे सुरक्षित रहते हैं।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और वह किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम होता है।
- मानसिक शांति: हनुमान साठिका का पाठ मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। इससे मन में तनाव और चिंता कम होती है।
- सकारात्मकता का संचार: इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है, जिससे व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होता है।
हनुमान साठिका का पाठ कैसे करें
हनुमान साठिका का पाठ करने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान करना और शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए।
- सामग्री: पाठ के समय भगवान हनुमान की तस्वीर के सामने दीपक जलाना और अगरबत्ती लगाना शुभ होता है।
- समर्पण: पाठ के समय मन को एकाग्र करके भगवान हनुमान के प्रति समर्पण भावना रखनी चाहिए।
- नियमितता: हनुमान साठिका का पाठ नियमित रूप से करने से इसके लाभ और भी अधिक होते हैं।
हनुमान साठिका
वीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान ।
धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥
जय जय जय हनुमान अडंगी ।
महावीर विक्रम बजरंगी ॥
जय कपीश जय पवन कुमारा ।
जय जगबन्दन सील अगारा ॥
जय आदित्य अमर अबिकारी ।
अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥
अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा ।
जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥
बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा ।
सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥
कपि के डर गढ़ लंक सकानी ।
छूटे बंध देवतन जानी ॥
ऋषि समूह निकट चलि आये ।
पवन तनय के पद सिर नाये ॥
बार-बार अस्तुति करि नाना ।
निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।
दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥
रथ समेत कपि कीन्ह अहारा ।
सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥
विनय तुम्हार करै अकुलाना ।
तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥
सकल लोक वृतान्त सुनावा ।
चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥
कहा बहोरि सुनहु बलसीला ।
रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥
तब तुम उन्हकर करेहू सहाई ।
अबहिं बसहु कानन में जाई ॥
असकहि विधि निजलोक सिधारा ।
मिले सखा संग पवन कुमारा ॥
जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई ।
गिरि समेत पातालहिं जाई ॥
कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।
निरखति रहे राम मगु आसा ॥
मिले राम तहं पवन कुमारा ।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥
मनि मुंदरी रघुपति सों पाई ।
सीता खोज चले सिरु नाई ॥
सतयोजन जलनिधि विस्तारा ।
अगम अपार देवतन हारा ॥
जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा ।
लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥
सीता चरण सीस तिन्ह नाये ।
अजर अमर के आसिस पाये ॥
रहे दनुज उपवन रखवारी ।
एक से एक महाभट भारी ॥
तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा ।
दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥
सिया बोध दै पुनि फिर आये ।
रामचन्द्र के पद सिर नाये।
मेरु उपारि आप छिन माहीं ।
बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥
लछमन शक्ति लागी उर जबहीं ।
राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥
भवन समेत सुषेन लै आये ।
तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥
मग महं कालनेमि कहं मारा ।
अमित सुभट निसिचर संहारा ॥
आनि संजीवन गिरि समेता ।
धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥
फनपति केर सोक हरि लीन्हा ।
वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥
अहिरावण हरि अनुज समेता ।
लै गयो तहां पाताल निकेता ॥
जहां रहे देवि अस्थाना ।
दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥
पवनतनय प्रभु कीन गुहारी ।
कटक समेत निसाचर मारी ॥
रीछ कीसपति सबै बहोरी ।
राम लषन कीने यक ठोरी ॥
सब देवतन की बन्दि छुड़ाये ।
सो कीरति मुनि नारद गाये ॥
अछयकुमार दनुज बलवाना ।
कालकेतु कहं सब जग जाना ॥
कुम्भकरण रावण का भाई ।
ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥
मेघनाद पर शक्ति मारा ।
पवन तनय तब सो बरियारा ॥
रहा तनय नारान्तक जाना ।
पल में हते ताहि हनुमाना ॥
जहं लगि भान दनुज कर पावा ।
पवन तनय सब मारि नसावा।
जय मारुत सुत जय अनुकूला ।
नाम कृसानु सोक सम तूला ॥
जहं जीवन के संकट होई ।
रवि तम सम सो संकट खोई ॥
बन्दि परै सुमिरै हनुमाना ।
संकट कटै धरै जो ध्याना ॥
जाको बांध बामपद दीन्हा ।
मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥
सो भुजबल का कीन कृपाला ।
अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥
आरत हरन नाम हनुमाना ।
सादर सुरपति कीन बखाना ॥
संकट रहै न एक रती को ।
ध्यान धरै हनुमान जती को ॥
धावहु देखि दीनता मोरी ।
कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥
कपिपति बेगि अनुग्रह करहु ।
आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥
राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।
जवन गुहार लाग सिय जाया ॥
यश तुम्हार सकल जग जाना ।
भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥
यह बन्धन कर केतिक बाता ।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥
करौ कृपा जय जय जग स्वामी ।
बार अनेक नमामि नमामी ॥
भौमवार कर होम विधाना ।
धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥
मंगल दायक को लौ लावे ।
सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥
जयति जयति जय जय जग स्वामी ।
समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥
अंजनि तनय नाम हनुमाना ।
सो तुलसी के प्राण समाना ॥
दोहा
जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण ॥
बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥
सवैया
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥
दोहा
वीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान ।
धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥
जय जय जय हनुमान अडंगी ।
महावीर विक्रम बजरंगी ॥
जय कपीश जय पवन कुमारा ।
जय जगबन्दन सील अगारा ॥
जय आदित्य अमर अबिकारी ।
अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥
अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा ।
जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥
बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा ।
सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥
कपि के डर गढ़ लंक सकानी ।
छूटे बंध देवतन जानी ॥
ऋषि समूह निकट चलि आये ।
पवन तनय के पद सिर नाये ॥
बार-बार अस्तुति करि नाना ।
निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥
सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।
दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥
रथ समेत कपि कीन्ह अहारा ।
सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥
विनय तुम्हार करै अकुलाना ।
तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥
सकल लोक वृतान्त सुनावा ।
चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥
कहा बहोरि सुनहु बलसीला ।
रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥
तब तुम उन्हकर करेहू सहाई ।
अबहिं बसहु कानन में जाई ॥
असकहि विधि निजलोक सिधारा ।
मिले सखा संग पवन कुमारा ॥
जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई ।
गिरि समेत पातालहिं जाई ॥
कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।
निरखति रहे राम मगु आसा ॥
मिले राम तहं पवन कुमारा ।
अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥
मनि मुंदरी रघुपति सों पाई ।
सीता खोज चले सिरु नाई ॥
सतयोजन जलनिधि विस्तारा ।
अगम अपार देवतन हारा ॥
जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा ।
लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥
सीता चरण सीस तिन्ह नाये ।
अजर अमर के आसिस पाये ॥
रहे दनुज उपवन रखवारी ।
एक से एक महाभट भारी ॥
तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा ।
दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥
सिया बोध दै पुनि फिर आये ।
रामचन्द्र के पद सिर नाये।
मेरु उपारि आप छिन माहीं ।
बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥
लछमन शक्ति लागी उर जबहीं ।
राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥
भवन समेत सुषेन लै आये ।
तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥
मग महं कालनेमि कहं मारा ।
अमित सुभट निसिचर संहारा ॥
आनि संजीवन गिरि समेता ।
धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥
फनपति केर सोक हरि लीन्हा ।
वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥
अहिरावण हरि अनुज समेता ।
लै गयो तहां पाताल निकेता ॥
जहां रहे देवि अस्थाना ।
दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥
पवनतनय प्रभु कीन गुहारी ।
कटक समेत निसाचर मारी ॥
रीछ कीसपति सबै बहोरी ।
राम लषन कीने यक ठोरी ॥
सब देवतन की बन्दि छुड़ाये ।
सो कीरति मुनि नारद गाये ॥
अछयकुमार दनुज बलवाना ।
कालकेतु कहं सब जग जाना ॥
कुम्भकरण रावण का भाई ।
ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥
मेघनाद पर शक्ति मारा ।
पवन तनय तब सो बरियारा ॥
रहा तनय नारान्तक जाना ।
पल में हते ताहि हनुमाना ॥
जहं लगि भान दनुज कर पावा ।
पवन तनय सब मारि नसावा।
जय मारुत सुत जय अनुकूला ।
नाम कृसानु सोक सम तूला ॥
जहं जीवन के संकट होई ।
रवि तम सम सो संकट खोई ॥
बन्दि परै सुमिरै हनुमाना ।
संकट कटै धरै जो ध्याना ॥
जाको बांध बामपद दीन्हा ।
मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥
सो भुजबल का कीन कृपाला ।
अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥
आरत हरन नाम हनुमाना ।
सादर सुरपति कीन बखाना ॥
संकट रहै न एक रती को ।
ध्यान धरै हनुमान जती को ॥
धावहु देखि दीनता मोरी ।
कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥
कपिपति बेगि अनुग्रह करहु ।
आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥
राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।
जवन गुहार लाग सिय जाया ॥
यश तुम्हार सकल जग जाना ।
भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥
यह बन्धन कर केतिक बाता ।
नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥
करौ कृपा जय जय जग स्वामी ।
बार अनेक नमामि नमामी ॥
भौमवार कर होम विधाना ।
धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥
मंगल दायक को लौ लावे ।
सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥
जयति जयति जय जय जग स्वामी ।
समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥
अंजनि तनय नाम हनुमाना ।
सो तुलसी के प्राण समाना ॥
दोहा
जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण ॥
बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥
सवैया
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥
हनुमान साठिका पर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs of Shri Hanuman Sathika
१. हनुमान साठिका क्या है?
हनुमान साठिका एक धार्मिक ग्रंथ है जिसमें भगवान हनुमान की महिमा और उनकी आराधना के विषय में बताया गया है। यह ग्रंथ विशेष रूप से भक्ति और श्रद्धा से संबंधित है और इसे हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है।
2. हनुमान साठिका के पाठ का महत्व क्या है?
हनुमान साठिका का पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति, समर्पण और साहस मिलता है। इसे पाठ करने से नकारात्मकता दूर होती है और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह संकट के समय में साहस और मजबूती प्रदान करता है।
3. हनुमान साठिका का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
हनुमान साठिका का पाठ मंगलवार और शनिवार को विशेष महत्व रखता है। भक्त इसे घर पर या मंदिर में बैठकर श्रद्धा पूर्वक पढ़ सकते हैं। पाठ के समय सच्चे मन से हनुमान जी की भक्ति की भावना रखनी चाहिए।
4. हनुमान साठिका का क्या लाभ है?
हनुमान साठिका का पाठ करने से भक्तों को कई लाभ मिलते हैं, जैसे कि मानसिक तनाव का कम होना, बीमारियों से मुक्ति, और सुख-समृद्धि का आगमन। यह कठिनाइयों का सामना करने के लिए साहस और ताकत प्रदान करता है।
5. क्या हनुमान साठिका का कोई विशेष मंत्र है?
हनुमान साठिका में कई मंत्र हैं, जिनमें से एक प्रमुख मंत्र है “ॐ हनुमते नमः।” इस मंत्र का जाप करने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।