Dayakara Saraswati Stotram
‘दयाकर सरस्वती स्तोत्रम्’ एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो देवी सरस्वती की स्तुति में रचित है। देवी सरस्वती को विद्या, संगीत, कला और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, और उनकी आराधना विशेष रूप से छात्रों, कलाकारों और विद्वानों द्वारा की जाती है।
दयाकर सरस्वती स्तोत्रम् का उद्देश्य और महत्व
- विद्या और ज्ञान की प्राप्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- संगीत और कला में प्रगति: कलाकार और संगीतज्ञ इस स्तोत्र का जाप करके अपनी कला में निपुणता और प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
- बुद्धि की शुद्धि: यह स्तोत्र मन की शुद्धि, एकाग्रता और स्मरण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
दयाकर सरस्वती स्तोत्रम् पाठ करने की विधि
- समय: प्रातःकाल या संध्या समय, स्नान के पश्चात, स्वच्छ वस्त्र धारण करके।
- स्थान: शांत और पवित्र स्थान, जहाँ ध्यान भंग न हो।
- मंत्र: स्तोत्र का पाठ करते समय देवी सरस्वती के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक और सुगंधित धूप जलाएं।
- आवृत्ति: नियमित रूप से प्रतिदिन या विशेष अवसरों पर, जैसे वसंत पंचमी, जो देवी सरस्वती का प्रमुख त्योहार है।
दयाकर सरस्वती स्तोत्रम्
अरविन्दगन्धिवदनां श्रुतिप्रियां
सकलागमांशकरपुस्तकान्विताम्।
रमणीयशुभ्रवसनां सुराग्रजां
विमलां दयाकरसरस्वतीं भजे।
सरसीरुहासनगतां विधिप्रियां
जगतीपुरस्य जननीं वरप्रदाम्।
सुलभां नितान्तमृदुमञ्जुभाषिणीं
विमलां दयाकरसरस्वतीं भजे।
परमेश्वरीं विधिनुतां सनातनीं
भयदोषकल्मषमदार्तिहारिणीम्।
समकामदां मुनिमनोगृहस्थितां
विमलां दयाकरसरस्वतीं भजे।
सुजनैकवन्दितमनोज्ञविग्रहां
सदयां सहस्रररवितुल्यशोभिताम्।
जननन्दिनीं नतमुनीन्द्रपुष्करां
विमलां दयाकरसरस्वतीं भजे।