तुलसी का पौधा: एक पूजनीय पौधा (Basil)
तुलसी प्राकृतिक औषधीय गुणों और मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। यह हमारे देश में विभिन्न धार्मिक, आयुर्वेदिक, आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व का प्रतीक माना जाता है। तुलसी को हिंदी में ‘तुलसी’ और अंग्रेजी में ‘Holy Basil’ कहा जाता है। इसकी बारीक पत्तियों और सुगंधित गुलाबी फूलों वाले पौधे का वैज्ञानिक नाम ‘Ocimum tenuiflorum’ है। तुलसी को अपने विशेष रसायनिक और चिकित्सात्मक गुणों के लिए मान्यता प्राप्त है। यह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और उपास्य मानी जाती है। इस लेख में हम तुलसी के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिसमें इसकी प्रकृति, उपयोग, और वैज्ञानिक महत्व शामिल होंगे।
तुलसी का पौराणिक महत्व
तुलसी को हमारे देश में मान्यता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी को वृंदा का देवी का रूप माना जाता है और भगवान विष्णु की अर्धागिनी(पत्नी) के रूप में मन जाता है। जलंधर,देवी वृंदा और भगवान विष्णु से जुड़ी हुई पौराणिक कथा है। सालिग्राम और तुलसी का विवाह देव एकादसी को किया जाता है। इसलिए तुलसी के पौधे को धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों में पूजा जाता है और इसे गले में माला के रूप में धारण किया जाता है।
इतिहास में, तुलसी का प्रयोग भारतीय संस्कृति में हजारों वर्षों से किया जाता रहा है। तुलसी को आर्य संस्कृति के एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है, जिसमें यह प्रयोग आयुर्वेदिक औषधि, रसायन, पूजा, धार्मिक कार्यक्रम और पौराणिक धारावाहिकता में होता है।
तुलसी की प्रकृति और प्रकार
तुलसी का पौधा मामूली ऊँचाई लगभग 1 मीटर तक बढ़ता है और पत्तों की सुरमा से ढकी हुई धारा होती है। इसकी पत्तियाँ सुगंधित होती हैं और हरे-भरे रंग की होती हैं। इसकी फूलें श्वेत, हरे, या गुलाबी रंग की होती हैं और इसके फूल गोंदेदार और महकदार होते हैं। तुलसी का स्वाद मिठासे भरा होता है और इसकी खुशबू आरोग्यप्रद होती है। इसके बीज स्तनीय होते हैं और उन्हें प्रस्तुतिकरण के लिए उपयोग में लाया जाता है। तुलसी के प्रमुख प्रकार शामिल हैं: राम तुलसी, काली तुलसी, वन तुलसी, वाणिया तुलसी, सुरसा तुलसी, अमृत तुलसी, वृन्दावन तुलसी, द्वारका तुलसी आदि।
तुलसी के प्रमुख प्रकार || (Types of basil)
तुलसी के मुख्य दो (2) प्रकार है
- होली बेसिल या ओसिमम सैंक्टम (Holy Basil OR Ocimum Sanctum)
- मेडिटेरेनियन बेसिल या ओसिमम बेसिलिकम (Mediterranean Basil OR Ocimum Basilicum)
1. होली बेसिल या ओसिमम सेंक्टम || (Holy Basil OR Ocimum Sanctum)
१. राम तुलसी || African basil (OCIMUM GRATISSIMUM)


राम तुलसी पुदीना परिवार का एक बारहमाशी पोधा है जो मध्ययुग से भारत में उगाया जाता रहा है। इसकी चोड़ी, हल्की हरी पतिया और जामुनी रंग के फूल होते हैं जिन्हें राम तुलसी के नाम से जाना जाता है। राम तुलशी का पौधा एक सुगन्धित क़िस्म हें जिसमे लॉन्ग जेसी सुगंध होती है।
राम तुलसी अपने ठंडे स्वाद के लिए व्यापक रूप से जानी जाती है।
२. श्याम तुलसी(कृष्ण तुलसी) || Shyama Tulsi (Ocimum Tenuiflorum)
क्रिष्ण तुलसी को कृष्ण की प्राण जीवनी भी कहा जाता है। श्याम तुलसी जिसे “पर्पल लीफ तुलसी” के रूप में भी जाना जाता हैं। यह भारत के कई स्थानों में खेती की जाने वाली एक बारहमाशी जड़ी बूटी है। गहरे बेगनी पते और तीखी सुगंध इसे अन्य तुलशी के पोधे से अलग करती है।
इसकी वृद्धि धीमी होने के कारण इसका स्वाद और बढ़ जाता है। वेदों के अनुसार इसका भगवान कृष्ण की त्वचा का रंग गहरा होने के कारण और इसके पत्ते बैगनी रंग के होने के कारण श्याम तुलशी कहा जाता है।
कृष्ण तुलशी कम उगती हें और इसके कारण इसे बहोत दुर्लभ माना जाता है। यह उतर भारत के कई स्थान पर पाई जाती है।
श्याम तुलसी(कृष्ण तुलसी) के औषधीय गुण (श्याम तुलसी के पत्ते के फायदे) || What is the benefits of shyama tulsi?
इसकी माला पहनने से सर दर्द में भी बहोत राहत मिलती है। इसका रस निकाल के पिने से बच्चो के पेट के कीड़े ठीक हो जाते है।
३. विमला तुलसी(कपूर तुलशी)
विमला तुलसी का पौधा एक सुंदर, हरी और सुगंधित पौधा होता है। इसकी पत्तियाँ छोटी, सुखी और तीखी होती हैं, जो इसे दिलचस्प और पहचाने जाने वाले बनाती हैं। इस पौधे की खुशबू मन को ताजगी और शांति की अनुभूति कराती है। विमला तुलसी के पत्तों पर मौजूद तेजीभरी शाखाएँ उसकी सुंदरता को और बढ़ाती हैं।
विमला तुलसी के बारे में सायद ही कुछ लोग जानते होगे अगर आप भी विमला तुलसी के बारे में विस्तृत जानकारी चाहते है तो इस आर्टिकल को आगे पढ़े।
विमला तुलशी की पहचान केसे करे.
विमला तुलशी दुर्लभ होने के कारण बहोत कम लोग इसे पहेचानते है। इसका पोधा साखित और चारो तरफ बालो(जड़े) वाला इनके पतों में से बहोत तेज सुगंध आती हें जिसे हम आज के समय में बाजार में मिलने वाली विक्स(vicks) के समान ही कह सकते है। दवाई कंपनीया भी इसकी वजह से इस पोधे की जानकारी ठीक तरीके से बहार नहीं आने देती।
विमला तुलशी के औषधीय गुण (विमला तुलशी के पत्ते के फायदे)
- विमला तुलसी के पौधे को रोगनिरोधक और स्वास्थ्य लाभ कारक माना जाता है। इसके पत्तों और ताजे पुष्पों में एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, और एंटीवायरल गुण होते हैं, जो विभिन्न आंत्र, सांस, और मस्तिष्क संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं।
- विमला तुलसी की चाय या पत्तियों का सेवन विषम आस्थमा, जुकाम, कफ, गले की खराश, और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में सहायक हो सकता है।
- इसकी पत्तियाँ, पुष्प, और बीज स्वादिष्ट और गुणकारी होते हैं और इन्हें विभिन्न व्यंजनों और चाय के रूप में उपयोग किया जाता है।
४. बन(वन) तुलसी
इस पोधे का अंग्रेजी नाम “Ocimum tenuiflorum” है। संस्कृत में इसे खर पुष्पा भी कहा जाता है। इसको काली तुलसी और बरबरी तुलसी के नाम से भी जाना जाता है और जंगलो में पैदा होने के कारण इस बन(वन) तुलसी भी कहा जाता है ये ज्यादा तर जंगलो और रस्ते के किनारों पे पाई जाती है।
इसकी उचाई की बात करे तो १ से २ मीटर तक पायी जाती है। इसके पत्ते मोटे रोम वाले और किनारे कटे हुए होते है जबकि इसके फूल सफ़ेद अथवा बेगनी होते है फूल चपटे चिकने और जुर्री दार होते है इसके तने बेगनी रंग के होते है और बारिस के समय ज्यादातर पायी जाती है।
बन(वन) तुलसी औषधीय गुण
- इसके औषधीय गुण की तो इसके रस को आँखों में लगाने से आँखों की बीमारियों में लाभ होता है।
- जबकि पत्तो के रस को नाक में डालने से गर्मी के मोसम में नकसीर या नाक में से खून निकलने में आराम मिकता है।
- इसके पत्तो के रस को कान में डालने से कान के दर्द में आराम मिलता है।
- इसके १० मिली ग्राम पत्ते के रस को सक्कर में मिलाकर पिने से पेट दर्द आराम मिलता है और 10 मिली ग्राम पत्ते के रस में मिश्री मिलाने से मूत्र रोग में आराम मिलता है।
- शरीर में मोच आने पर इसके रस को मोच वाले स्थान पर लगाने से आराम मिलता है इसके पत्तो को पिस कार घाव में लेप करने से घाव भर जाता है।
- इसके बिज के चूर्ण को बकरी के दूध में पीसकर घाव में लगानेसे बिच्छु के डंख में आराम मिलता है।
- वन तुलसी की १०० ग्राम पत्तीओ का काढ़ा बनाके उसमे सोठ का पाउडर मिलाकर पिने से गठिया रोग में आराम मिलता है।
- इसके ५ ग्राम बिज पीसकर लेने से बुखार में भी आराम मिलता है।
- इसकी पत्तीओ का रस दाद की जगह पर लगाने से दाद के रोग ठीक हो जाता है।
2. मेडिटेरेनियन बेसिल या ओसिमम बेसिलिकम || Mediterranean Basil OR Ocimum Basilicum
५. नींबू तुलसी
इस पौधे को लेमन बेसिल भी कहा जाता है इसको अंग्रेजी में “Ocimum africanum” भी कहा जाता है। इसका तना २० से ४० सेंटीमीटर लम्बा होता हें और इसकी लम्बाई ८ से २० सेंटीमीटर तक हो सकतीं है। इसके पुष्प(फूल) सफ़ेद रंग के होते है और इसकी पतिया दूसरी तुलीसी के पतियों के समान ही होती है।
तली व्यंजनों और सुब बनाने में इसका ज्यादातर उपयोग होता है। इण्डोनेशिया में कई व्यंजनों में मुख्य तोर पर इसका उपयोग किया जाता है। जबकि थाईलैंड की थाई करी में भी इसका भरपूर उपयोग किया जाता है।अगर बीजो की बात करे तो मिठाइयो में इनका उपयोग किया जाता है। मणिपुर में इसका उपयोग आचार में किया जाता है। यह बड़ी अच्छी और विचित्र क़िस्म हें क्योकि यह क़िस्म लेमन ग्राम एवम् तुलसी दोनों के गुणों से भरपूर होती है।
इसके धार्मिक महत्व की बात करे तो मंदिरों और धार्मिक स्थानों के आसपास इसे लगे जाती है और इसकी पूजा भी की जाती है।इसके पास से नीबू जेसी सुगंध निकलने के कारण इस से न केवल मच्छर बल्कि कीड़े भी इससे दूर रहते है।अगर इसकी साखाए सुख भी जाए तो इसे घर में रखने से भी जिव जंतु और साप भी इनसे दूर रहते है। इस लिए किसी भी जगह पर लोग साप से ज्यादा परेसान हो तो इसे लगाने पर उस जगह के आस पास साप नजर नहीं आते तो ये इसके धार्मिक महत्व और लक्षण है।
नींबू तुलसी के औषधीय गुण
- औषधिय गुणों की बात करे तो नारियल पानी के साथ इस तुलसी के पत्तो के रस और निम्बू मिलाकर पिने से पाचन सम्बन्धी परेसानिया दूर होती है।
- पत्तो को उबाल कार पिने से और उसकी चाय पिने से वजन कम होता है और पाचन ठीक होता है।
- इसमें काफी मात्रा में विटामिन A पाया जाता है इसके पत्तो को खाने से शरीर में विटामिन A की कमी दूर होती है।
- इसके पत्तो में सुगन्ध होने के कारण साबुन और इतर में भी इसका उपयोग किया जाता है।
६.मरुआ तुलसी
इस पोधे को रेन,मारुआ,मारवा,स्वीट मार्जोरम,नियाज़बो तुलसी आदि नमो से जाना जाता है। इन्हें मुस्लिम धर्मं के लोग कबर के ऊपर चडाते है। आयुर्वेद में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जिनका इस्तेमाल शारीरिक समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इन्हीं में से एक है मरुआ। मरुआ का पौधा अधिकतर घरों में गमलों में उगाया जाता है। यह एक सुगंधित पौधा है, इसका उपयोग कई तरीकों से किया जा सकता है। मरुआ अत्यंत गुणकारी और हानिरहित पौधा है।
मरुआ के पत्तों में पोटैशियम, कार्बोहाइड्रेट, डाइटरी फाइबर, प्रोटीन, विटामिन सी और कैल्शियम काफी मात्रा में होता है। इसके अलावा मरुआ आयरन, विटामिन बी6 और मैग्नीशियम का भी अच्छा सोर्स है।
मरुआ तुलसी क्वे औषधीय गुण
- नन्हे बच्चो के पेट में पड़ने वाले कीड़ो की समस्या देखने को मिलती है। बच्चे बार-बार पेट दर्द की शिकायत भी करते हैं। इनके लिए मरुआ का उपयोग करना बहोत ही फ़ायदे मंद होता है। यह पोधा कीड़े की घरेलू दवा है। मरुआ की चटनी खाने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं। यह पेट के इंफेक्शन को भी ठीक करता है।
- छोटे बच्चो को आप मरुआ की पत्तियों को पीसकर रस निकाल कर 4-6 बूंद मरुआ की पत्तियों का रस खाली पेट पिलाने से 3-7 दिनों के अंदर पेट के कीड़े निकल जाएंगे।
- यह पोधा सर्दी जुकाम में भी आराम दिलाता है इसके लिए चाय में मरुआ की 8-10 पत्तियां डाल लें। आप चाहें तो बेहतर परिणाम के लिए मुलेठी भी डाल सकते हैं। इससे जल्दी ही सर्दी-जुकाम में आराम मिलेगा। मरुआ चाय को बहोत फायदेमंद बनाता है।
- अपच की समस्या को दूर करने में भी मरुआ की पत्तियां बहोत लाभकारी हैं। यह अपच दूर करने का अच्छा घरेलू उपाय है।
- मसूड़ों की समस्या को भी मरुआ के पत्ते बहोत आसानी से दूर करता है,मुह में आने वाली बदबू के लिए भी ये अक्सीर इलाज हें । इस के लिए मरुआ की पत्तियों को चबाएं। आप इन पत्तियों को अंदर भी ले सकते हैं, थूक भी सकते हैं। इससे आपके मुंह की दुर्गंध दूर होगी। मसूड़ों की समस्या, मसूड़ों की सूजन भी दूर होगी। मुंह की समस्याओं, गले में खराश होने पर आप मरुआ के पत्तों को पानी में उबालकर गरारे भी कर सकते हैं।
- इसका काढ़ा पिने से खासी और काफ रोगी ओ को भी बहोत फायदा होता है और फेफड़ों की सफाई होती है साथ ही में गले में जमे हुए बलगम भी आसानी से निकलता है।
७. मीठी तुलसी(स्टेविया अथवा स्टीविया ) || Sweet Basil (Stevia)
मीठी तुलशी को अंग्रेजी में “Stevia” कहते है। इसको चीनी तुलसी और मधु पत्र भी कहते है। यह पोधा इतना मिठास भरा होता है की यह चीनी को भी फीका कार देता है। डायबिटीज यानि मधुमेह के रोगियों के लिए तो ये अमृत समान है। इसकी मिठास से शरीर में कोई हानि नहीं होती है इसी वजह से बड़ी बड़ी फार्मा कंपनिया इस ले गुणों को आम लोगो से छिपाती है। फार्मा कंपनिया इसका उपयोग सुगर फ्री प्रोडक्ट बनाने में करती है और बड़ा बड़ा मुनाफा कमाती है और आम लोगो को लुटती है। इस में नुन्यतम केलेरी पर प्राकृति होने के कारण बहोत उपयोगी है।
यह पोधा तालाबो के किनारे अदिकतर पाया जाता है। यह पोद्दा सामान्य अवस्था में आम सक्कर से २५ से ३० गुना ज्यादा मीठा होता है। इस से निकले पदार्थ रस इस से ३०० गुना ज्यादा मीठा होता है। भारत भर के विभीन्न भागो में इसकी व्यावसायिक खेती होने लगी है ।
इसकी ऊचाई लगभग ६० से ७० सेमी उचा होता है बहु संखियक और जड़ी नुमा पोधा होता है यह पोद्दा ११ से ४१ अंस के तापमान में आसानी से उग जाता है। इसके पत्तो में styoside, glucoside आदि घटक प्रमुख रूप से पाए जाते है इनसे insuline को कण्ट्रोल किया जा सकता है ।