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शुक्रवार, सितम्बर 20, 2024

आजिविक भारत का एक खोया हुवा धर्मं Ājīvika

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आजिविक का परिचय Introduction to Ajivika

बौद्ध और जैन धर्म, भारतीय उपमहाद्वीप के दो प्रमुख धर्म, अपने समय में काफी प्रसिद्ध और प्रभावशाली थे। इन्हीं धर्मों के साथ, एक और महत्वपूर्ण धर्म था – आजिविक धर्म। यह धर्म मखलि गोसाल द्वारा स्थापित किया गया था, और इसका प्रभाव भी अपने समय में व्यापक था। लेकिन जहाँ बौद्ध और जैन धर्म आज भी जीवित हैं, आजिविक धर्म धीरे-धीरे समाप्त हो गया। इस लेख में, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि बौद्ध और जैन धर्म के समकालीन होते हुए भी आजिविक धर्म क्यों समाप्त हो गया।

आजीविक संप्रदाय का उदय Rise of Ajivik Sampraday

आजीविक धर्म की स्थापना मखलि गोसाल ने छठी सदी ईसा पूर्व में की थी। यह वह समय था जब भारत में आध्यात्मिक और धार्मिक सुधारों की लहर चल रही थी। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध और जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी के समय में ही आजिविक धर्म का भी विकास हुआ था।

आजीविक धर्म के संस्थापक: मखलि गोसाल Founder of Ajivik Dharma: Makhali Gosal

मखलि गोसाल, आजिविक धर्म के संस्थापक, एक महान संत और विचारक थे। वे एक समय महावीर स्वामी के शिष्य थे, लेकिन बाद में उनके बीच मतभेद उत्पन्न हो गए और गोसाल ने अपना अलग धर्म स्थापित कर लिया। गोसाल का प्रमुख विश्वास था कि दुनिया के घटनाओं पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं है और सब कुछ नियति पर निर्भर है।

आजीविक धर्म का दर्शन और विचारधारा

आजीविकों की नियतिवाद पर विश्वास Belief in the determinism of livelihoods

आजीविक धर्म का प्रमुख सिद्धांत नियतिवाद था। उनका मानना था कि मनुष्य का जीवन पूर्व निर्धारित होता है और उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, सभी घटनाएं पहले से तय होती हैं और हमें उनका केवल पालन करना होता है। यह विचारधारा बौद्ध और जैन धर्म के कर्म सिद्धांत से पूरी तरह अलग थी।

जीवन और मोक्ष के प्रति आजिविक दृष्टिकोण

आजीविकों का मानना था कि मोक्ष प्राप्ति केवल समय की बात है और इसमें किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत कोशिश का कोई महत्व नहीं है। यह विचार बौद्ध और जैन धर्म की विचारधारा से बिलकुल विपरीत था, जहाँ कर्मों और व्यक्तिगत प्रयासों को मोक्ष प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।

आजीविक धर्म और बौद्ध धर्म के बीच संबंध Relationship Between Ajivika Dharma and Buddhism

बौद्ध धर्म और आजिविक धर्म के बीच कई समानताएं थीं, जैसे कि दोनों धर्म संसारिक मोह-माया से दूरी बनाने की बात करते थे। लेकिन जहां बौद्ध धर्म व्यक्ति को अपनी सोच और कर्मों से मुक्ति प्राप्ति की राह दिखाता था, वहीं आजिविक धर्म व्यक्ति को नियति का अनुकरण करने की सलाह देता था। यही अंतर समय के साथ आजिविक धर्म के पतन का एक प्रमुख कारण बना।

जैन धर्म के साथ आजिविकों का प्रतिस्पर्धा

जैन धर्म और आजिविक धर्म दोनों के संस्थापक लगभग एक ही समय में थे। लेकिन जैन धर्म की कठोर तपस्या और नैतिक नियमों के विपरीत, आजिविक धर्म में व्यक्तिगत प्रयास को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। जैन धर्म का नैतिक अनुशासन समाज में अधिक स्वीकार्य था, जिसने उसे आजिविक धर्म से आगे बढ़ने में मदद की।

समाज में आजिविकों की भूमिका और प्रभाव

आजीविक धर्म ने अपने समय में कुछ समय तक लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभाव कम होता गया। इसका कारण था कि उनकी विचारधारा समाज के सभी वर्गों के लिए आकर्षक नहीं थी। बौद्ध और जैन धर्म के मुकाबले, आजिविक धर्म के अनुयायी सीमित थे।

राजनीतिक संरक्षण की कमी और पतन

बौद्ध और जैन धर्म को कई राजाओं और शासकों का संरक्षण प्राप्त था। अशोक महान जैसे सम्राट ने बौद्ध धर्म को अपने साम्राज्य में बढ़ावा दिया। इसी प्रकार जैन धर्म को भी कुछ शासकों का समर्थन मिला। लेकिन आजिविक धर्म को इस प्रकार का कोई बड़ा संरक्षण नहीं मिला, जिसके कारण उनका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया।

बौद्ध और जैन धर्म की तुलना में आजिविकों का अवनति

सामाजिक संरचना और स्वीकार्यता

बौद्ध और जैन धर्म ने समाज के सभी वर्गों को स्वीकार किया, जबकि आजिविक धर्म की विचारधारा उच्च वर्गों में ही सीमित रही। उनका सिद्धांत सभी के लिए उपयुक्त नहीं था, जिससे उन्हें समाज के निचले और मध्यम वर्गों का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ।

आजीविक और समाज में उच्च वर्ग का समर्थन

आजीविक धर्म को समाज के उच्च वर्गों से भी कोई खास समर्थन नहीं मिला। जबकि बौद्ध और जैन धर्म ने समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ा, आजिविक धर्म की सीमित विचारधारा ने उसे सामाजिक समर्थन से वंचित रखा।

धार्मिक प्रतिस्पर्धा और आजिविक धर्म का पतन

आजीविक धर्म बौद्ध और जैन धर्म के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाया। बौद्ध धर्म के सामाजिक और नैतिक सुधार, जैन धर्म की तपस्या और अहिंसा की विचारधारा ने आजिविक धर्म के सिद्धांतों को धूमिल कर दिया। धार्मिक प्रतिस्पर्धा में आजिविक धर्म धीरे-धीरे हाशिये पर चला गया और अंततः समाप्त हो गया।

ग्रंथों और लेखों की कमी

आजीविक धर्म के अनुयायियों ने अपने धर्म के सिद्धांतों को संकलित करने के लिए कोई प्रमुख ग्रंथ या लेख नहीं लिखा। बौद्ध और जैन धर्म के विपरीत, आजिविक धर्म की विचारधारा और सिद्धांत भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित नहीं रहे, जिसके कारण उनका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो गया।

आजीविक धर्म का सांस्कृतिक महत्व

हालांकि आजिविक धर्म समाप्त हो गया, लेकिन उसका सांस्कृतिक महत्व आज भी देखा जा सकता है। भारतीय इतिहास में यह धर्म एक महत्वपूर्ण चरण था जिसने उस समय के धार्मिक और दार्शनिक विमर्श को प्रभावित किया।

आजीविक धर्म का अंत: कारण और परिणाम

आजीविक धर्म का अंत कई कारणों से हुआ। राजनीतिक संरक्षण की कमी, सामाजिक समर्थन का अभाव, धार्मिक प्रतिस्पर्धा और ग्रंथों की अनुपस्थिति ने इस धर्म को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि आजिविक धर्म इतिहास के पन्नों में खो गया, जबकि बौद्ध और जैन धर्म आज भी जीवित हैं।

आधुनिक समय में आजिविक धर्म की विरासत

आज के समय में आजिविक धर्म का कोई प्रमुख प्रभाव नहीं दिखता, लेकिन इसके सिद्धांत और विचारधारा भारतीय इतिहास और दर्शन के अध्ययन में महत्वपूर्ण हैं। यह धर्म भारतीय उपमहाद्वीप के धार्मिक और दार्शनिक विकास के एक महत्वपूर्ण चरण को दर्शाता है।

FAQs

आजीविक धर्म का प्रमुख सिद्धांत क्या था?

आजिविक धर्म का प्रमुख सिद्धांत नियतिवाद था, जिसमें माना जाता था कि मनुष्य का जीवन पूर्व निर्धारित होता है और उसे कोई बदल नहीं सकता।

मखलि गोसाल कौन थे?

मखलि गोसाल आजिविक धर्म के संस्थापक थे और वे महावीर स्वामी के शिष्य थे, बाद में उन्होंने अपना अलग धर्म स्थापित किया।

आजीविक धर्म क्यों समाप्त हो गया?

आजिविक धर्म के पतन के कई कारण थे, जिनमें राजनीतिक संरक्षण की कमी, सामाजिक समर्थन का अभाव और धार्मिक प्रतिस्पर्धा शामिल हैं।

आजीविक धर्म और बौद्ध धर्म में क्या अंतर था?

आजिविक धर्म नियतिवाद में विश्वास करता था, जबकि बौद्ध धर्म कर्म और व्यक्तिगत प्रयास को महत्व देता था।

आधुनिक समय में आजिविक धर्म का क्या महत्व है?

आजिविक धर्म अब अस्तित्व में नहीं है, लेकिन इसका सांस्कृतिक और दार्शनिक महत्व भारतीय इतिहास के अध्ययन में महत्वपूर्ण है।

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