योग और योगासन – शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक समृद्धि का मार्ग.

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योग और योगासन की हमारे जीवन पर भूमिका

व्यायाम स्वास्थ्य का सच्चा मित्र है। जो व्यायाम नहीं करता, उसका रोगी होना अनिवार्य है। पंद्रह- सोलह वर्ष की आयु से यदि व्यायाम का अभ्यास रक्खा जाय, तो शारीरिक व्याधियों से जीवन भर छुटकारा मिलता रहेगा । मैं आसनों का विशेषज्ञ नहीं। दो ही तीन आसनों का साधारण अनुभव रखता हूँ; पर आसनों का प्रेमी अवश्य हूँ। और चाहता हूँ कि हमारे नवयुवक बिलायती कसरतें, जो महँगी और बाहरी साधनों की मुहताज होती हैं, न करके अपने पूर्वजों के अनुभूत तथा बिना किसी बाहरी साधन की सहायता के किये जाने वाले अनमोल श्रासनों और कसरतों को करके देखें; मेरा दृढ़ विश्वास है कि उनको आशातीत लाभ होगा ।

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योगासनों का महत्व

मनुष्य का शरीर परमात्मा की एक अद्भुत रचना है। इसके अन्दर बड़ी विचित्र शक्तियाँ भरी हुई हैं। शरीर- शास्त्र के पंडितों ने सूक्ष्म निरीक्षण करके कुछ शक्तियों का पता लगाया है सही, पर अमीतक वे उन शक्तियों का पता नहीं पा सके हैं, जिन्हें हमारे पवित्र देश के योगी- गण जानने थे । आसनों के अभ्यासी साधकों के बहुत से ‘चमत्कारों की कथायें हिन्दुओं में प्रसिद्ध हैं। अब भी कभी-कभी सुनने को मिलता है कि अमुक योगी ने यह अलौकिक कार्य करके दिखाया था ।

चमत्कार कर दिखाने की शक्ति केवल आसनों की सिद्धि से प्राप्त नहीं हो सकती । उसके लिये तो मन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करनी पड़ती है, जिसमें आसन सहायक होते हैं। चमत्कारों के लिये आसनों का अभ्यास करना हमारे लिये उतना आवश्यक नहीं है, जितना स्वास्थ्य के लिये है। स्वास्थ्य तो मनुष्य-मात्र के लिये मूल्यवान वस्तु है ।

इधर कुछ दिनों से आसनों की ओर शिक्षित जनों की रुचि बढ़ने लगी है। और आसनों के अभ्यासियों के बहुत-से अनुभव मी, जो उनकी उपयोगिता सिद्ध करते हैं, सुनने को मिलने लगे हैं। अभी थोड़े ही दिन हुये, इंग्लैंड के एक पत्र में वहाँ के एक वृद्ध अंग्रेज का समाचार छपा था, जिसकी उम्र १०३ वर्ष की थी। वह चमा बदलवाने के लिये चश्मे की एक दूकान में गया, तब चश्मेवाले ने उसकी उम्र पूछी, और उसका उत्तर सुनकर वह चकित हो गया। क्योंकि उक्त अंग्रेज १०३ वर्ष का होने पर भी पूरा स्वस्थ और अधिक से अधिक ५०-६० वर्ष का दिखाई पड़ता था। पूछने पर उसने अपनी सुन्दर स्वस्थता की कारण शीर्षासन बताया, जिसे उसने बनारस में किसी योगी से सीखा था। सोचने की बात है कि हम अपने को इतना भूल चुके हैं कि विदेशियों के याद दिलाने पर तब हमें आत्म-ज्ञान होता आसन आध्यात्मिक उन्नति के लिये सबसे पहले साधन हैं। आसन के बिना योग सिद्ध नहीं हो सकता। हमारे ऋषियों और योगियों ने मनुष्य शरीर के भीतर की रचना का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके आसनों का आविष्कार किया था। आसनों के बल से वे जाड़े में शरीर की गर्म और गर्मी में शरीर को शीतल रख सकते ये। आसनों से वे ब्रह्मचार्य को दृढ़ करते, मन को एकाग्र करते, इन्द्रियों का दमन करते और आत्मा को परमात्मा तक पहुँचाते थे । श्रासनों की महिमा अकथनीय है। अभ्यासी ही उसका अनुभव कर सकता है। आसनों का अभ्यास करने वालों के लिये कुछ चहुत जरूरी बातें आगे दी जाती हैं।

गुरु की आवश्यकता आसनों के अभ्यासी को सबसे पहले एक गुरु की खोज करनी चाहिये। किसी गुरु की देख-रेख में रहना बहुत जरूरी है। शीर्षासन, सर्वांगासन आदि कुछ आसन ऐसे हैं जिनमें जरा-सी गफलत हो जाने से लाभ के बदले हानि हो जाने की संभावना रहती है। अतएव गुरु के अनुभवों का लाभ उठाते हुये आगे बढ़ना चाहिये । गुरु को समय-समय पर अपना अनुभव बताते भी रहना चाहिये, ताकि गुरु हानि से बचाता रहे।

आसनों से पूरा लाभ उठाने के लिये ब्रह्मचर्य का ‘पालन बहुत ही आवश्यक है। यया-संभव स्त्री-सहवास,कुसंगति, एकांत में गंदे विचारों, कामोचेजक कथा- कहानियों और श्रृंगार की कविताओं के पठन-पाठन से बचते रहना चाहिये ।

भोजन का नियम

आहार का प्रभाव मनुष्य के तन और मन दोनों पर पड़ता है। यदि सदा के लिये शुद्ध और सात्विक भोजन का नियम निभाना कठिन हो, तो कम से कम श्रासन प्रारंभ करने के बाद कुछ दिनों तक तो आहार सात्विक ही लेना चाहिये। पीछे तो श्रासनों से उत्पन्न होने वाला लाभ ही तामसी और हानिकर भोजनों से अरुचि उत्पन्न कर देगा ।

मनुष्य के लिये खाने का सर्वोत्तम पदार्थ फल है । इसके बाद दुध | धारोष्ण दूध अधिक स्वास्थ्यकर माना जाता है। फलों में फसल के फल खाने चाहिये । अन का आहार सूक्ष्म करना चाहिये ।

मसाले तथा तीस्त्रे, कढ़ने और चरपरे पदार्थों से बचना चाहिये। नशे की चीजें भी छोड़ देनी चाहिये । नशे की चीजें न छूट सकें तो भी आसनों का अभ्यास जारी रखना चाहिये । आसनों से पैदा होने वाला लाभ खुद नशे को छुड़ा देगा |

भोजन नियत समय पर करना चाहिये। ‘जहाँतक हो सके, चिकने पदार्थ अवश्य खाये जायँ ।

आसनों का अभ्यास भोजन के बाद कमी न करना चाहिये ।

आसन करने का श्रेष्ठ समय

बहुत सबेरे, ४ और ५ बजे के बीच उठकर, दातुन करके, ताँबे के बरतन में रक्खा हुआ रात का पानी आप सेर पीकर, तब शौच जाना चाहिये। यह आजमाया हुआ नुस्खा है। इससे कभी कब्ज और जुकाम नहीं होता। मुझे सन् १६१६ के अगस्त से आज सन् १६४० के दूसरे महीने तक न ज्वर थाया, न जुकाम हुआ। मेरा यह विश्वास है कि यह सवेरे, शौच जाने से पहले, दातुन करके पानी पी लेने का फल है। मैंने और भी कई व्यक्तियों को यह नुस्खा बताया, प्रायः सबको इससे लाभ हुआ है।

शौच आदि से निवृत्त होकर, किसी एकांत कमरे में या खुली छत पर कंबल बिछाकर, मन को स्वस्थ करके, आसनों का अभ्यास करना चाहिये ।

कुछ लोग स्नान करके अभ्यास करते हैं और कुछ अभ्यास कर चुकने के बाद देर में स्नान करते हैं। जैसी सुविधा हो, वैसा नियम बना लेना चाहिये ।

शाम को भी सूर्यास्त के आसपास आसनों का अभ्यास किया जा सकता है। पर कामकानी आदमी को -शाम को नियत समय पर अवकाश मिलना कभी-कभी मुश्किल होता है, इससे उसे तो प्रातःकाल ही करने का नियम बनाना चाहिये। जो दोनों वक्त कर सकें, उन्हें दोनों वक्त करना चाहिये ।

आसनों से रोग-चिकित्सा

शीर्षासन से मृगी रोग मिट जाता है। आँखों की ज्योति बढ़ती है; बुद्धि तीव्र होती है। स्मरण शक्ति बढ़ती है; दाँत मजबूत होते हैं; बाल काले हो जाते हैं और शरीर के अन्य भीतरी रोगों में भी लाभ पहुँचता है। पश्चिमोत्तान आसन डायबिटीज़ (मधुमेह) रोगी को विशेष लाभदायक है। सर्वांगासन से शिर-दर्द, आलस्य, स्वप्न-दोष और दिमाग की कमजोरी आदि रोग मिट जाते हैं। शीर्षासन और सर्वांगासन के लगातार करते रहने -से क्षयरोग भी मिटता हुआ सुना जाता है। शरीर की मोटाई पचाने के लिये पद्मासन, मयूरा- सन, गर्भासन और वृश्चिकासन आदि लाभदायक हैं।

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