Yamuna Amrita Lahari Stotram
यमुना अमृत लहरी स्तोत्रम् एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है जो देवी यमुना नदी की महिमा का गुणगान करता है। इसे श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र यमुना जी की दिव्यता, पवित्रता और उनकी भक्तों को प्रदान की जाने वाली कृपा का वर्णन करता है। इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ने से यमुना जी की कृपा प्राप्त होती है और पापों से मुक्ति मिलती है।
यमुना जी का महत्त्व
हिंदू धर्म में यमुना नदी को देवी के रूप में पूजा जाता है। यह नदी भगवान श्रीकृष्ण से गहरा संबंध रखती है क्योंकि उन्होंने अपना बाल्यकाल यमुना के तट पर गोकुल, वृंदावन और मथुरा में बिताया था।
- यमुना जी को “कालिंदी” भी कहा जाता है, क्योंकि वे कालिंदा पर्वत से निकलती हैं।
- यह नदी पापों को नष्ट करने वाली, भक्तों को मोक्ष देने वाली और जीवन को पवित्र करने वाली मानी जाती है।
- श्रीमद्भागवत महापुराण में यमुना जी की श्रीकृष्ण के साथ लीलाओं का सुंदर वर्णन मिलता है।
यमुना अमृत लहरी स्तोत्रम् (Yamuna Amrita Lahari Stotram)
मातः पातकपातकारिणि तव प्रातः प्रयातस्तटं
यः कालिन्दि महेन्द्रनीलपटलस्निग्धां तनुं वीक्षते।
तस्यारोहति किं न धन्यजनुषः स्वान्तं नितान्तोल्लस-
न्नीलाम्भोधरवृन्दवन्दितरुचिर्देवो रमावल्लभः।
नित्यं पातकभङ्गमङ्गलजुषां श्रीकण्ठकण्ठत्विषां
तोयानां यमुने तव स्तवविधौ को याति वाचालताम्।
येषु द्राग्विनिमज्ज्य सज्जतितरां रम्भाकराम्भोरुह-
स्फूर्जच्चामरवीजितामरपदं जेतुं वराको नरः।
दानान्धीकृतगन्धसिन्धुरघटागण्डप्रणालीमिल-
द्भृङ्गालीमुखरीकृताय नृपतिद्वाराय बद्धोऽञ्जलिः।
त्वत्कूले फलमूलशालिनि मम श्लाघ्यामुरीकुर्वतो
वृत्तिं हन्त मुनेः प्रयान्तु यमुने वीतज्वरा वासराः।
अन्तर्मौक्तिकपुञ्जमञ्जिम बहिः स्निग्धेन्द्रनीलप्रभं
मातर्मे मुदमातनोतु करुणावत्या भवत्याः पयः।
यद्रूपद्वयधारणादिव नृणामा चूडमामज्जतां
तत्कालं तनुतेतरां हरिहराकारामुदारां तनुम्।
तावत्पापकदम्बडम्बरमिदं तावत्कृतान्ताद्भयं
तावन्मानसपद्मसद्मनि भवभ्रान्तेर्महानुत्सवः।
यावल्लोचनयोः प्रयाति न मनागम्भोजिनीबन्धुजे
नृत्यत्तुङ्गतरङ्गभङ्गिरुचिरो वारां प्रवाहस्तव।
कालिन्दीति कदापि कौतुकवशात्त्वन्नामवर्णानिमा-
न्व्यस्तानालपतां नृणां यदि करे खेलन्ति संसिद्धयः।
अन्तर्ध्वान्तकुलान्तकारिणि तव क्षिप्ताभृते वारिणि
स्नातानां पुनरन्वहं स महिमा केनाधुना वर्ण्यते।
स्वर्णस्तेयपरानपेयरसिकान्पान्थःकणास्ते यदि
ब्रह्मघ्नान्गुरुतल्पगानपि परित्रातुं गृहीतव्रताः।
प्रायश्चित्तकुलैरलं तदधुना मातः परेताधिप-
प्रौढाहंकृतिहारिहुंकृतिमुचामग्रे तव स्रोतसाम्।
पायं पायमपायहारि जान्नि स्वादु त्वदीयं पयो
नायं नायमनायनीमकृतिनां मूर्तिं दृशोः कैशवीम्।
स्मारं स्मारमपारपुण्यविभवं कृष्णेति वर्णद्वयं
चारं चारमितस्ततस्तव तटे मुक्तो भवेयं कदा।
मातर्वारिणि पापहारिणि तव प्राणप्रयाणोत्सवं
सम्प्राप्तेन कृतां नरेण सहतेऽवज्ञां कृतान्तोऽपि यत्।
यद्वा मण्डलभेदनादुदयिनीश्चण्डद्युतिर्वेदना-
श्चित्रं तत्र किमप्रमेयमहिमा प्रेमा यदौत्पत्तिकः।
संज्ञाकान्तसुते कृतान्तभगिनि श्रीकृष्णनित्यप्रिये
पापोन्मूलिनि पुण्यधात्रि यमुने कालिन्दि तुभ्यं नमः।
एवं स्नानविधौ पठन्ति खलु ये नित्यं गृहीतव्रता-
स्तानामन्त्रितसंख्यजन्मजनितं पापं क्षणादुज्झति।
पाठ करने का शुभ समय और विधि
- प्रातः काल या संध्या समय, विशेष रूप से यमुना तट पर इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
- श्रीकृष्ण, राधा और यमुना जी के चित्र के समक्ष दीप जलाकर श्रद्धा से पाठ करें।
- यमुनाष्टमी, कार्तिक मास और एकादशी के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।
- यमुना जी के जल का आचमन करना और उसमें स्नान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।