श्री पितृ चालीसा: एक आध्यात्मिक अनुष्ठान
परिचय
श्री पितृ चालीसा हिन्दू धर्म में पितरों को समर्पित एक धार्मिक स्तोत्र है। यह चालीसा पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव व्यक्त करता है। पितर, हिन्दू धर्म में, वे आत्माएँ होती हैं जो मृत्यु के पश्चात् दिव्य लोकों में वास करती हैं।
पितरों का महत्व
पितरों को हिन्दू धर्म में बहुत महत्व दिया जाता है। मान्यता है कि पितरों की कृपा से ही वंश में सुख, समृद्धि और आरोग्यता आती है। पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान के रूप में उनकी पूजा की जाती है।
चालीसा का अनुष्ठान
पितृ चालीसा का पाठ विशेष रूप से पितृ पक्ष में किया जाता है। इसके द्वारा पितरों को याद करते हुए उनके लिए मंगल कामना की जाती है। चालीसा के पाठ से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होते हैं।
चालीसा की रचना
श्री पितृ चालीसा में चालीस छंद होते हैं जो पितरों की महिमा का गान करते हैं। इसमें पितरों के दिव्य गुणों, उनकी शक्तियों और उनके प्रति भक्ति का वर्णन होता है।
पितृ चालीसा का महत्व
श्री पितृ चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह चालीसा पितरों के प्रति आदर और भक्ति को दर्शाता है और उनकी संतुष्टि के लिए किया जाता है।
निष्कर्ष
श्री पितृ चालीसा हिन्दू धर्म में पितरों के प्रति आदर और भक्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को आत्मिक शांति और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
श्री पितृ चालीसा Shri Pitar Chalisa ( Pitru Chalisa )
॥ दोहा ॥
हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद, चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ।
सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी, हे पितरेश्वर दया राखियो करियो मन की चाया जी ॥
॥ चौपाई ॥
पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर।
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा।
मातृ-पितृ देव मनजो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे ।
जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं ।
चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा।
नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का।
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते।
झंझुनू ने दरबार है साजे, सब देवो संग आप विराजे।
प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा।
पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी।
तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे ।
नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी।
छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते।
तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी।
भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे।
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे।
सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी।
शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते ।
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा।
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब पूजे पित्तर भाई।
हिन्दु वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा।
गंगा ये मरूप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की।
बन्धु छोड़ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा।
चौदस को जागरण करवाते, अमावस को हम धोक लगाते।
जात जडूला सभी मनाते, नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते।
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है, जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है।
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी, सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।
निशदिन ध्यान धरे जो कोई, ता सम भक्त और नहीं कोई।
तुम अनाथ के नाथ सहाई, दीनन के हो तुम सदा सहाई।
चारिक वेद प्रभु के साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
नाम तुम्हारो लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहीं कोई।
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत, नवों सिद्धि चरणा में लोटत।
सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी, जो तुम पे जावे बलिहारी।
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे, ताकी मुक्ति अवसी हो जावे।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे, सो निश्चय चारों फल पावे।
तुमहिं देव कुलदेव हमारे, तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे।
सत्य आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावें सोई।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई, शेष सहस्र मुख सके न गाई।
मैं अतिदीन मलीन दुखारी, करहु कौन विधि विनय तुम्हारी।
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै, अपनी भक्ति, शक्ति कछु दीजै।
॥ दोहा ॥
पित्तरों को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम ॥
झुंझुनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान ॥
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझुनू धाम।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान ॥