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शुक्रवार, नवम्बर 7, 2025

वाराही कवचम्

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Varahi Kavacham

वाराही देवी(Varahi kavacham) दस महाविद्याओं में से एक मानी जाती हैं और वे देवी दुर्गा के सप्तमातृका स्वरूपों में आती हैं। वाराही को देवी लक्ष्मी का ही उग्र रूप भी माना जाता है। इन्हें वराह अवतार की शक्ति भी कहा जाता है, जो भगवान विष्णु के वराह अवतार से जुड़ी हैं। वाराही देवी की उपासना तांत्रिक साधनाओं में अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है। वाराही कवचम् एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसे देवी वाराही की कृपा प्राप्त करने और हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करने के लिए पढ़ा जाता है। यह कवच भक्त को भय, शत्रु, बुरी शक्तियों और जीवन के संकटों से बचाने में सहायक होता है। यह विशेष रूप से तांत्रिक और शक्ति उपासकों द्वारा किया जाने वाला पाठ है।

वाराही कवचम् का महत्व और लाभ

  1. शत्रु नाशक – यह कवच विशेष रूप से शत्रुओं और विरोधियों से बचाने में सहायक होता है।
  2. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा – वाराही कवचम् का पाठ करने से व्यक्ति किसी भी तरह की तांत्रिक बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षित रहता है।
  3. धन, समृद्धि और सफलता – देवी वाराही की कृपा से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और व्यापार, करियर आदि में सफलता प्राप्त होती है।
  4. मानसिक शांति और आत्मबल – यह कवच व्यक्ति को आत्मविश्वास और मानसिक शांति प्रदान करता है।
  5. रोग नाशक – वाराही कवचम् के नियमित पाठ से विभिन्न मानसिक और शारीरिक रोगों से भी मुक्ति मिलती है।

वाराही कवचम् के पाठ की विधि

  1. प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  3. देवी वाराही की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर धूप और पुष्प अर्पित करें।
  4. मंत्र जप या कवच का पाठ करें।
  5. पाठ के बाद देवी से रक्षा और आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

Varahi Kavacham

अस्य श्रीवाराहीकवचस्य त्रिलोचन ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, श्रीवाराही देवता, ॐ बीजं, ग्लौं शक्तिः, स्वाहेति कीलकं, मम सर्वशत्रुनाशनार्थे जपे विनियोगः ॥

ध्यानम् ।
ध्यात्वेंद्रनीलवर्णाभां चंद्रसूर्याग्निलोचनाम् ।
विधिविष्णुहरेंद्रादि मातृभैरवसेविताम् ॥ 1 ॥

ज्वलन्मणिगणप्रोक्तमकुटामाविलंबिताम् ।
अस्त्रशस्त्राणि सर्वाणि तत्तत्कार्योचितानि च ॥ 2 ॥

एतैः समस्तैर्विविधं बिभ्रतीं मुसलं हलम् ।
पात्वा हिंस्रान् हि कवचं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥ 3 ॥

पठेत्त्रिसंध्यं रक्षार्थं घोरशत्रुनिवृत्तिदम् ।
वार्ताली मे शिरः पातु घोराही फालमुत्तमम् ॥ 4 ॥

नेत्रे वराहवदना पातु कर्णौ तथांजनी ।
घ्राणं मे रुंधिनी पातु मुखं मे पातु जंभिनी ॥ 5 ॥

पातु मे मोहिनी जिह्वां स्तंभिनी कंठमादरात् ।
स्कंधौ मे पंचमी पातु भुजौ महिषवाहना ॥ 6 ॥

सिंहारूढा करौ पातु कुचौ कृष्णमृगांचिता ।
नाभिं च शंखिनी पातु पृष्ठदेशे तु चक्रिणि ॥ 7 ॥

खड्गं पातु च कट्यां मे मेढ्रं पातु च खेदिनी ।
गुदं मे क्रोधिनी पातु जघनं स्तंभिनी तथा ॥ 8 ॥

चंडोच्चंडश्चोरुयुग्मं जानुनी शत्रुमर्दिनी ।
जंघाद्वयं भद्रकाली महाकाली च गुल्फयोः ॥ 9 ॥

पादाद्यंगुलिपर्यंतं पातु चोन्मत्तभैरवी ।
सर्वांगं मे सदा पातु कालसंकर्षणी तथा ॥ 10 ॥

युक्तायुक्तस्थितं नित्यं सर्वपापात्प्रमुच्यते ।
सर्वे समर्थ्य संयुक्तं भक्तरक्षणतत्परम् ॥ 11 ॥

समस्तदेवता सर्वं सव्यं विष्णोः पुरार्धने ।
सर्वशत्रुविनाशाय शूलिना निर्मितं पुरा ॥ 12 ॥

सर्वभक्तजनाश्रित्य सर्वविद्वेषसंहतिः ।
वाराही कवचं नित्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ॥ 13 ॥

तथा विधं भूतगणा न स्पृशंति कदाचन ।
आपदः शत्रुचोरादि ग्रहदोषाश्च संभवाः ॥ 14 ॥

माता पुत्रं यथा वत्सं धेनुः पक्ष्मेव लोचनम् ।
तथांगमेव वाराही रक्षा रक्षाति सर्वदा ॥ 15 ॥

इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे श्री वाराही कवचम् ॥

वाराही कवचम् एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसका नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति को सुरक्षा, समृद्धि, और आत्मबल प्राप्त होता है। यह कवच देवी वाराही की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है और इसके द्वारा भक्त जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति पा सकता है।

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