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मंगलवार, फ़रवरी 4, 2025

संकष्टनाशनविष्णुस्तोत्रम् (पद्मपुराणान्तर्गतम्)

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संकष्टनाशनविष्णुस्तोत्रम् (पद्मपुराणान्तर्गतम्) Sankasht Nashan Vishnu Stotram

नारद उवाच-

पुनर्दैत्यान् समायातान् दृष्ट्वा देवा सवासवाः ।
भयात्प्रकंपिताः सर्वे विष्णुं स्तोतुं प्रचक्रमुः ॥१॥

देवा ऊचुः-

नमो मत्स्यकूर्मादिनानास्वरूपै-
स्सदा भक्तकार्योद्यतायार्तिहन्त्रे ।
विधात्रादि सर्गस्थितिध्वंसकर्त्रे
गदाशंखपद्मारिहस्ताय तेऽस्तु ॥२॥

रमावल्लभायाऽसुराणां निहन्त्रे
भुजंगारियानाय पीताम्बराय ।
मखादि क्रिया पाककर्त्रे विकर्त्रे
शरण्याय तस्मै नतास्मो नतास्म ॥३॥

नमो दैत्यसन्तापितामर्त्यदुःखा-
चलध्वंसदंभोलये विष्णवे ते ।
भुजंगेशतल्पेशयानायाऽर्कचन्द्र-
द्विनेत्राय तस्मै नतास्मो नतास्म ॥४॥

संष्टनाशनं नाम स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः ।
स कदाचित् न संकष्टैः पीड्यते कृपया हरेः ॥५॥

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