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नैमिषारण्य तीर्थ (Naimisharanya ) 1

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नैमिषारण्य तीर्थ || Naimisharanya

नैमिषारण्य (Naimisharanya) उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। यह स्थान पर सीतापुर से गोमती नदी के तट पर 20 मील तक की दूरी पर स्थित है और इसे एक प्राचीन तीर्थ स्थान के रूप में जाना जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार, यह स्थान बड़ी पवित्रता से भरा हुआ स्थान है। पुराणों और महाभारत में वर्णित नैमिषारण्य एक पुण्य स्थान है, जहाँ ऋषिश्रेष्ठ 88,000 ऋषि भगवान वेदव्यास के शिष्य सूत से महाभारत और पुराणों की कथा ओ का रस पान करते थे।

लोमहर्षणपुत्र उपश्रवा: सौति: पौराणिको नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेद्वदिशवार्षिके सत्रे, सुखासीनानभ्यगच्छम् ब्रह्मर्षीन् संशितव्रतान् विनयावनतो भूत्वा कदाचित् सूतनंदन:। तमाश्रममनुप्राप्तं नैमिषारण्यवासिनाम्, चित्रा: श्रोतुत कथास्तत्र परिवव्रस्तुपस्विन:

वराह पुराण में बताया गया है कि ‘नैमिष’ नाम का उत्पत्ति से संबंधित है। इसे विस्तृत रूप से जानने के लिए, हमें पुराण के कथात्मक पृष्ठों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी। वराह पुराण के अनुसार, यह नाम भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ और वाहन स्वान के पुत्र नेमि के नाम से संबंधित हो सकता है।

एवंकृत्वा ततो देवो मुनिं गोरमुखं तदा, उवाच निमिषेणोदं निहतं दानवं बलम्। अरण्येऽस्मिं स्ततस्त्वेतन्नैमिषारण्य संज्ञितम् ॥

"प्रययुस्तस्य चक्रस्य यत्र नेमिर्व्यशीर्यत।
 तद् वनं तेन विख्यातं नैमिषं मुनिपूजितम्॥
"

भगवान ने गौरमुख मुनि से बातचीत की। उन्होंने कहा कि मैंने उस दानव सेना को एक निमिष में ही संहार कर दिया था। इसलिए भविष्य में इस वन को लोग नैमिषारण्य के नाम से जानेंगे।

नैमिषारण्य नाम केसे पड़ा है.?

नैमिष का उद्भव ‘निमिष’ शब्द से हुआ है, क्योंकि गौरमुख ने एक छोटे से निमिष में असुरों की सेना का संहार किया था। एक अन्य विशेषण अनुसार इस स्थान पर अधिक संख्या में पाए जाने वाले फल के कारण इसे नैमिष नामकीकरण किया गया। तीसरे कथन में विष्णु के चक्र की निमि नैमिष में गिरी थी, जब असुरों का दल ब्रह्मा के पीठ पर असुरों के भय से परेशान होकर पहुँचा। इसके पश्चात्, ब्रह्मा ने अपना चक्र छोड़ दिया और उन्हें वहाँ तपस्या के लिए प्रेरित किया, जहाँ चक्र गिरा। नैमिष में चक्र गिरने से वह स्थान आज भी चक्रतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। चक्रतीर्थ षट्कोणीय है, और व्यास इसकी ऊंचाई १२० फुट की मानते हैं। इस स्थान का पावन जल नीचे से आता है और एक नाले द्वारा बाहर बहता है, जिसे ‘गोदावरी नाला’ कहते हैं। चक्रतीर्थ के अतिरिक्त व्यासगद्दी, ललिता देवी का मंदिर, भूतनाथ का मंदिर, कुशावर्त, ब्रह्मकुंड, जानकीकुंड, और पंचप्रयाग जैसे आकर्षक स्थल भी हैं।

पौराणिक कथाओं से नैमिषारण्य का सन्दर्भ

नैमिषारण्य (Naimisharanya) के प्राचीनतम उल्लेख को वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड के पुस्तक में दर्शाया गया है। इस पुस्तक में लिखा है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि द्वारा रचित काव्य का गायन किया और सब को मंत्रमुग्ध कार दिया था।

महर्षि शौनक को बहुत दीर्घकाल से ज्ञान सत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा- ‘इसे चलाते हुए चलो। जहां इस चक्र की “नेमि” (बाहरी परिधि) गिर जाए, उसी स्थान को पवित्र समझकर वहीं आश्रम बनाकर ज्ञान सत्र करो।’ शौनकजी के साथ अदृश्य सहस्र ऋषियों ने चक्र को चलाना शुरू कर दिया। वे सभी ऋषियों के साथ भारत में घूमने लगे। गोमती नदी के किनारे एक तपोवन में चक्र की “नेमि” गिर गई और वही चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। चक्र की नेमि गिरने से वह स्थान “नैमिश” कहलाया। जहां चक्र भूमि में प्रवेश कर गया, वह स्थान “चक्रतीर्थ” कहलाया गया। यह तीर्थ गोमती नदी के वाम तट पर स्थित है और इसे ५१ पितृस्थानों में से एक माना जाता है। यहां वर्तंमान समय में सोमवती अमावस्या को भव्य मेला का आयोजन किया जाता है।

शौनकजी को इसी तीर्थ में सूतजी ने अठारह पुराणों की कथा सुनाई। द्वापर युग में श्री बलरामजी यहां पहुंचे थे। भूल से उनके द्वारा लोमहर्षण सूत की मृत्यु हो गई। बलरामजी ने उनके पुत्र उग्रश्रवा को वरदान दिया कि वे पुराणों के वक्ता बनें। और ऋषियों को सतानेवाले राक्षस बल्वल का वध किया। संपूर्ण भारत की तीर्थयात्रा करके बलरामजी फिर नैमिषारण्य आए और यहां उन्होंने यज्ञ किया।

नैमिषारण्य में दर्शन करने योग्य मुख्यस्थल कोन से है ?

प्रमुख दर्शनीय स्थल की सूचि

  • व्यास गद्दी
  • हनुमान गढ़ी
  • चक्रतीर्थ
  • मनु-सतरूपा तपोभूमि
  • चारोंधाम मंदिर
  • त्रिशक्ति धाम
  • बालाजी मंदिर
  • काली पीठ
  • हत्या हरण तीर्थ
  • दधीचि कुंड

दधीचि कुंड से जुड़ी कथा

नैमिषारण्य के थोड़ी दूरी पर मिश्रिख नामक स्थान पर हमें दधीचि कुंड मिलता है। वृत्तासुर राक्षस का वध करने के लिए वज्रायुध बनाने की लिए एक बार फाल्गुनी पूर्णिमा को इंद्र और अन्य देवता ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियों को अर्पित किया था। उस समय महर्षि दधीचि ने कहा, “मैं समस्त तीर्थों में स्नान कर देवताओं के दर्शन करना चाहता हूं।” तब इंद्र ने विश्व के सभी तीर्थों और देवताओं को बुलाया और सभी तीर्थों और पवित्र नदियों का जल एक साथ इकट्ठा कर दिया गया। महर्षि दधीचि ने इस सरोवर में स्नान किया, और इसके बाद से इस कुंड को ‘दधीचि कुंड’ या ‘मिश्रित तीर्थ’ के नाम से जाना जाता है। समस्त देवताएं नैमिषारण्य के 84 कोश में रहने का निर्णय लिया था। महर्षि दधीचि ने सभी देवताओं का दर्शन करने के बाद उनकी परिक्रमा की और अपनी अस्थियों को दान में दे दिया। इसके बाद से भक्त विभिन्न देशों से नैमिषारण्य के 84 कोश की परिक्रमा करने के लिए आते हैं। आज भी लोग समस्त तीर्थों और देवताओं का दर्शन करने के लिए देश विदेश से नैमिषारण्य के यात्रा करते हैं।

चक्रतीर्थ से जुड़ी कथा

चक्रतीर्थ एक मील दूर नैमिषारण्य स्टेशन से स्थित है। यहां एक गोलाकार सरोवर है, जिससे निरंतर जल बहता रहता है। सरोवर के किनारे स्नान का अवसर है, जो लोग धार्मिक भाव से उसे समर्थन करते हैं। यहां नैमिषारण्य का प्रमुख तीर्थ है और इसके आसपास कई मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में भूतनाथ महादेव की पूजा की जाती है। चक्रतीर्थ की महिमा बहुत उच्च है। एक समय ऐसा आया था, जब अठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से अनुरोध किया था कि वे जगत के कल्याण के लिए एक शांतिपूर्ण भूमि का संकेत करें। तब ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न किया और ऋषियों को कहा कि जिस भूमि के मध्य में यह चक्र स्थान करता है, उसे ध्यान से देखो। यदि वह भूमि स्वतः ही वहां गिर जाती है, तो समझ लेना कि वही पृथ्वी का मध्य भाग है और वही विश्व की सबसे दिव्य भूमि है। इस पवित्र भूमि के दर्शन के बिना जीवन भी सफल नहीं हो सकता।

नैमिषारण्य

नैमिषारण्य तीर्थ ८४ कोस की परिक्रमा

हर वर्ष फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा से यह परिक्रमा प्रारंभ होती है और पूर्णिमा पर पूर्ण होती है। इस परिक्रमा को आध्यात्मिक गुरु के नेतृत्व में संपन्न किया जाता है। वर्तमान में, इस 84कोसीय परिक्रमा और पहले आश्रम के महंत, 1008 श्री नारायण दास जी महाराज ने इसके अध्यक्ष के रूप में सेवा की हैं। उनके द्वारा डंका बजने के साथ ही रामादल परिक्रमा आरंभ होती है और नैमिषारण्य की छोटी (अंतर्वेदी) में सभी तीर्थयात्रियों का समावेश होता है।

परिक्रमा के प्रमुख तीर्थ

  1. पंचप्रयाग
  2. ललितादेवी
  3. व्यास-शुकदेव के स्थान
  4. दशाश्वमेध टीला
  5. पाण्डव किला
  6. चारों धाम मंदिर
  7. सूतजी का स्थान

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