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मंगलवार, मई 13, 2025

महाविद्या स्तुति

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Mahavidya Stuti In Hindi

महाविद्या स्तुति(Mahavidya Stuti) एक महत्वपूर्ण और अत्यधिक पूजनीय स्तुति है, जो हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों और तंत्र शास्त्रों में वर्णित है। महाविद्याओं की स्तुति विशेष रूप से उन देवी-देवताओं के लिए की जाती है, जो शakti (शक्ति) के रूप में पूजित होते हैं। महाविद्या शब्द का अर्थ है “महान विद्या” या “उच्च ज्ञान,” और यह देवी के उन रूपों को संदर्भित करता है जो विशिष्ट रूप से शक्तिशाली मानी जाती हैं। महाविद्याओं की उपासना में न केवल भक्ति, बल्कि ज्ञान और तंत्रमंत्र का भी महत्व होता है।

महाविद्याओं के प्रकार

महाविद्याएँ आमतौर पर दस होती हैं, जिन्हें दशमहाविद्या के नाम से जाना जाता है। ये दस महाविद्याएँ हैं:

  1. काली – यह महाविद्या अज्ञान और अंधकार को समाप्त करने वाली मानी जाती है। काली को विनाश की देवी के रूप में पूजा जाता है।
  2. तारा – तारा देवी की उपासना जीवन में सुरक्षा और संकटों से मुक्ति पाने के लिए की जाती है। इन्हें तारक देवी भी कहा जाता है।
  3. गायत्री – गायत्री महाविद्या वेदों की ऋचाओं और मंत्रों का स्तोत्र है, जो व्यक्ति को मानसिक शांति और उच्च ज्ञान प्रदान करता है।
  4. सिद्धिदात्री – यह देवी सभी प्रकार की सिद्धियों और आत्मज्ञान की प्रदाता मानी जाती हैं।
  5. भुवनेश्वरी – यह महाविद्या सृजन, पालन और संहार के तीन प्रमुख कार्यों में कार्यरत होती हैं।
  6. चिन्मयि – यह महाविद्या शुद्ध चेतना और ब्रह्मज्ञान की प्रतीक हैं। इसे अज्ञान के नाश और आत्मबोध के लिए पूजा जाता है।
  7. धूमावती – यह महाविद्या मृत्यु और विनाश की देवी हैं। इनकी उपासना से भय और संकटों से मुक्ति मिलती है।
  8. भगलामुखी – भगलामुखी का पूजन विशेष रूप से शत्रुओं से सुरक्षा और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।
  9. मातंगी – यह महाविद्या ज्ञान, वैभव, और समृद्धि की देवी हैं। इनकी उपासना से जीवन में ऐश्वर्य और यश प्राप्त होता है।
  10. कमला – कमला महाविद्या लक्ष्मी की उपासना के रूप में मानी जाती हैं। ये सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी हैं।

महाविद्या स्तुति के लाभ Mahavidya Stuti Benifits

महाविद्या स्तुति के जाप से व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं, जैसे:

  • आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तुति मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति की दिशा में सहायक होती है।
  • शत्रु नाश: कुछ महाविद्याओं की पूजा विशेष रूप से शत्रुओं से मुक्ति दिलाने के लिए की जाती है।
  • धन और ऐश्वर्य: महालक्ष्मी और भगवती की उपासना से आर्थिक समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।
  • स्वास्थ्य: विशेष मंत्रों का उच्चारण करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।
  • सुख, समृद्धि और सफलता: महाविद्या स्तुति के द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकता है।

महाविद्या स्तुति का विधि

महाविद्या स्तुति का उच्चारण शुद्धता और श्रद्धा के साथ किया जाता है। इसके लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनाई जाती हैं:

  1. पवित्र स्थान पर बैठकर: शांत वातावरण में, preferably एक पूजा स्थल पर, स्तुति का जाप किया जाता है।
  2. मंत्र जाप: महाविद्याओं के विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। यह मंत्र संख्या में निश्चित होते हैं, जैसे 108 बार या 1000 बार जाप।
  3. दीप और अगरबत्ती: पूजा के दौरान दीप जलाना और अगरबत्ती का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
  4. फल और फूल अर्पित करना: महाविद्या को प्रसन्न करने के लिए फल, फूल और सिंदूर अर्पित किए जाते हैं।
  5. नियमितता: महाविद्या स्तुति का नियमित जाप करने से लाभकारी परिणाम प्राप्त होते हैं।

महाविद्या स्तुति Mahavidya Stuti

देवा ऊचुः ।
नमो देवि महाविद्ये सृष्टिस्थित्यन्तकारिणि ।
नमः कमलपत्राक्षि सर्वाधारे नमोऽस्तु ते ॥

सविज्ञतैजसप्राज्ञविराट्सूत्रात्मिके नमः ।
नमो व्याकृतरूपायै कूटस्थायै नमो नमः ॥

दुर्गे सर्गादिरहिते दुष्टसंरोधनार्गले ।
निरर्गलप्रेमगम्ये भर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥

नमः श्रीकालिके मातर्नमो नीलसरस्वति ।
उग्रतारे महोग्रे ते नित्यमेव नमो नमः ॥

नमः पीताम्बरे देवि नमस्त्रिपुरसुन्दरि ।
नमो भैरवि मातङ्गि धूमावति नमो नमः ॥

छिन्नमस्ते नमस्तेऽस्तु क्षीरसागरकन्यके ।
नमः शाकम्भरि शिवे नमस्ते रक्तदन्तिके ॥

निशुम्भशुम्भदलनि रक्तबीजविनाशिनि ।
धूम्रलोचननिर्णाशे वृत्रासुरनिबर्हिणि ॥

चण्डमुण्डप्रमथिनि दानवान्तकरे शिवे ।
नमस्ते विजये गङ्गे शारदे विकचानने ॥

पृथ्वीरूपे दयारूपे तेजोरूपे नमो नमः ।
प्राणरूपे महारूपे भूतरूपे नमोऽस्तु ते ॥

विश्वमूर्ते दयामूर्ते धर्ममूर्ते नमो नमः ।
देवमूर्ते ज्योतिमूर्ते ज्ञानमूर्ते नमोऽस्तु ते ॥

गायत्रि वरदे देवि सावित्रि च सरस्वति ।
नमः स्वाहे स्वधे मातर्दक्षिणे ते नमो नमः ॥

नेति नेतीति वाक्यैर्या बोध्यते सकलागमैः ।
सर्वप्रत्यक्स्वरूपां तां भजामः परदेवताम् ॥

भ्रमरैर्वेष्टिता यस्माद् भ्रामरी या ततः स्मृता ।
तस्यै देव्यै नमो नित्यं नित्यमेव नमो नमः ॥

नमस्ते पार्श्वयोः पृष्ठे नमस्ते पुरतोऽम्बिके ।
नम ऊर्ध्वं नमश्चाधः सर्वत्रैव नमो नमः ॥

कृपां कुरु महादेवि मणिद्वीपाधिवासिनि ।
अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायिके जगदम्बिके ॥

जय देवि जगन्मातर्जय देवि परात्परे ।
जय श्रीभुवनेशानि जय सर्वोत्तमोत्तमे ॥

कल्याणगुणरत्नानामाकरे भुवनेश्वरि ।

प्रसीद परमेशानि प्रसीद जगतोरणे ॥

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