कृष्ण जन्म स्तुति Krishna Janma Stuti
रूपं यत्तत्प्राहुरव्यक्तमाद्यं ब्रह्मज्योतिर्निर्गुणं निर्विकारम्।
सत्तामात्रं निर्विशेषं निरीहं स त्वं साक्षाद्विष्णुरध्यात्मदीपः।
नष्टे लोके द्विपरार्धावसाने महाभूतेष्वादिभूतं गतेषु।
व्यक्तेऽव्यक्तं कालवेगेन याते भवानेकः शिष्यते शेषसंज्ञः।
योऽयं कालस्तस्य तेऽव्यक्तबन्धोश्चेष्टामाहुश्चेष्टते येन विश्वम्।
निमेषादिर्वत्सरान्तो महीयांस्तं त्वीशानं क्षेमधाम प्रपद्ये।
मर्त्यो मृत्युव्यालभीतः पलायन्सर्वांल्लोकान्निर्वृतिं नाध्यगच्छत्।
त्वत्पादाब्जं पाप्य यदृच्छयाद्य स्वस्थः शेते मृत्युरस्मादपैति।
कृष्ण जन्म स्तुति के श्लोक अर्थ सहित Krishna Janma Stuti With Meaning
पहला भाग:
“रूपं यत्तत्प्राहुरव्यक्तमाद्यं ब्रह्मज्योतिर्निर्गुणं निर्विकारम्।
सत्तामात्रं निर्विशेषं निरीहं स त्वं साक्षाद्विष्णुरध्यात्मदीपः।”
- अर्थ: वसुदेव भगवान कृष्ण के रूप को संबोधित करते हुए कहते हैं कि आपका स्वरूप “अव्यक्त” (जो प्रत्यक्ष रूप में नहीं देखा जा सकता) और “आद्य” (सृष्टि के प्रारंभ से विद्यमान) है।
- आप “ब्रह्मज्योति” हैं, जो अनंत प्रकाश और चेतना का स्रोत है।
- आप निर्गुण (गुणों से परे) और निर्विकार (परिवर्तन से रहित) हैं।
- आप केवल “सत्ता” मात्र हैं, अर्थात् अस्तित्व की अंतिम अवस्था।
- आप विशिष्टताओं से परे (निर्विशेष) और इच्छाओं से रहित (निरीह) हैं।
- आप साक्षात विष्णु हैं, जो आत्मा के मार्ग को प्रकाशित करने वाले दीपक हैं।
दूसरा भाग:
“नष्टे लोके द्विपरार्धावसाने महाभूतेष्वादिभूतं गतेषु।
व्यक्तेऽव्यक्तं कालवेगेन याते भवानेकः शिष्यते शेषसंज्ञः।”
- अर्थ: वसुदेव यहाँ ब्रह्मांड की समाप्ति का वर्णन करते हैं।
- जब द्विपरार्ध (ब्रह्मा के जीवनकाल का आधा समय) समाप्त हो जाता है और सभी बड़े तत्व (पंचमहाभूत) नष्ट हो जाते हैं,
- जब व्यक्त (प्रत्यक्ष जगत) और अव्यक्त (सूक्ष्म जगत) भी काल के प्रभाव से लुप्त हो जाते हैं,
- तब केवल आप ही शेष रहते हैं, जिन्हें “शेष” (अंत में बचने वाले) कहा जाता है।
तीसरा भाग:
“योऽयं कालस्तस्य तेऽव्यक्तबन्धोश्चेष्टामाहुश्चेष्टते येन विश्वम्।
निमेषादिर्वत्सरान्तो महीयांस्तं त्वीशानं क्षेमधाम प्रपद्ये।”
- अर्थ:
- वसुदेव कहते हैं कि जो काल (समय) है, वह आपकी ही शक्ति का प्रदर्शन है।
- यह समय ही पूरे ब्रह्मांड को गति देता है।
- निमेष (पल भर) से लेकर वर्ष तक का समय आपके द्वारा संचालित होता है।
- आप इस काल के भी स्वामी हैं।
- इसलिए, मैं आपको प्रणाम करता हूं और आपकी शरण में आता हूं, क्योंकि आप ही असली “क्षेमधाम” (शांति और सुरक्षा का स्थान) हैं।
चौथा भाग:
“मर्त्यो मृत्युव्यालभीतः पलायन्सर्वांल्लोकान्निर्वृतिं नाध्यगच्छत्।
त्वत्पादाब्जं पाप्य यदृच्छयाद्य स्वस्थः शेते मृत्युरस्मादपैति।”
- अर्थ:
- वसुदेव कहते हैं कि मृत्यु से डरने वाला मानव (मर्त्य), चाहे कितनी ही जगहों पर भाग जाए, उसे शांति नहीं मिलती।
- केवल तभी जब वह आपके चरणकमलों की शरण में आता है, उसे वास्तविक शांति प्राप्त होती है।
- जब वह आपकी कृपा से आपके चरणों में स्थिर हो जाता है, तो मृत्यु और उसके भय से मुक्ति मिलती है।
कृष्ण जन्म स्तुति के श्लोक की महिमा
- यह स्तुति भगवान श्रीकृष्ण की परम दिव्यता को व्यक्त करती है।
- इसमें उन्हें सृष्टि, स्थिति और प्रलय के स्वामी के रूप में वर्णित किया गया है।
- यह श्लोक जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के मार्ग की ओर संकेत करता है, जो केवल भगवान की शरण में आने से संभव है।
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि सच्ची शांति और सुरक्षा केवल भगवान की भक्ति में है।भगवान की महिमा का ध्यान और उनकी शरण में जाने से मानव सभी प्रकार के भय और बंधनों से मुक्त हो सकता है।