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गुरूवार, अक्टूबर 17, 2024

दशावतार स्तोत्रम् Dashavatar Stotram

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दशावतार स्तोत्रम् श्रीमद् वेदान्त देशिक द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें भगवान विष्णु के दस अवतारों का गुणगान किया गया है। श्रीमद् वेदान्त देशिक 13वीं शताब्दी के महान वैष्णव आचार्य और विद्वान थे, जो श्रीरंगम के पास तिरुत्तणग में जन्मे थे। वे रामानुजाचार्य के सिद्धांतों के अनुयायी थे और विष्णु भक्ति के प्रबल समर्थक थे। उनकी रचनाओं में गूढ़ दर्शन और भक्तिरस का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।

दशावतार स्तोत्रम् भगवान विष्णु के दस प्रसिद्ध अवतारों को समर्पित है, जो वेदों और पुराणों में वर्णित हैं। ये दस अवतार हैं – मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम (या बुद्ध), कृष्ण और कल्कि। प्रत्येक अवतार में भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया था। इस स्तोत्र में उन सभी अवतारों के महान कार्यों और गुणों का वर्णन किया गया है।

दशावतारों का संक्षिप्त वर्णन:

  1. मत्स्य अवतार: जलप्रलय से वेदों की रक्षा के लिए भगवान ने मत्स्य (मछली) का रूप धारण किया।
  2. कूर्म अवतार: समुद्र मंथन के समय मंदर पर्वत को स्थिर करने के लिए भगवान ने कूर्म (कछुए) का रूप लिया।
  3. वराह अवतार: हिरण्याक्ष नामक राक्षस से पृथ्वी की रक्षा के लिए भगवान ने वराह (सूअर) रूप धारण किया।
  4. नृसिंह अवतार: भक्त प्रह्लाद की रक्षा और हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान ने नृसिंह (अर्ध मानव, अर्ध सिंह) रूप लिया।
  5. वामन अवतार: बलि महाराज के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान ने वामन (बौने ब्राह्मण) का रूप धारण किया।
  6. परशुराम अवतार: धरती से अधर्मियों का नाश करने के लिए भगवान ने परशुराम के रूप में अवतार लिया।
  7. राम अवतार: भगवान राम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की।
  8. कृष्ण अवतार: महाभारत काल में भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया और कौरवों का नाश किया।
  9. बलराम (या बुद्ध): बलराम ने कृषि और खेती के माध्यम से समाज में शांति और संतुलन स्थापित किया। कुछ मतों में इसे बुद्ध अवतार भी माना जाता है।
  10. कल्कि अवतार: भविष्य में अधर्म के विनाश और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान कल्कि अवतार लेंगे।

दशावतार स्तोत्रम् का महत्व:

दशावतार स्तोत्रम् में भगवान विष्णु के इन अवतारों के गुणों, लीलाओं और कार्यों का अत्यंत सुंदर और सरल शब्दों में वर्णन किया गया है। इसे गाते हुए भक्त भगवान विष्णु के प्रत्येक अवतार की महिमा और शक्ति को याद करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति में धर्म, साहस, भक्ति और सत्य के प्रति आस्था बढ़ती है।

श्री वेदान्त देशिक ने अपने इस रचना में काव्यकला के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी सुंदर संयोजन किया है, जो इसे न केवल धार्मिक बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाता है।

दशावतार स्तोत्रम् श्रीमद्वेदान्तदेशिकरचितम् Dashavatar Stotram Shri Madvedantadeshikarachitam

 

देवो नश्शुभमातनोतुदशधा निर्वर्तयन्भूमिकां
रङ्गे धामनि लब्धनिर्भररसैरध्यक्षितो भावुकैः ।
यद्भावेषु पृथग्विधेष्वनुगुणान्भावान् स्वयं बिभ्रती
यद्धर्मैरिह धर्मिणी विहरते नानाकृतिर्नायिका ॥१॥

निर्मग्नश्रुतिजालमार्गणदशादत्तक्षणैरीक्षणै-
रन्तस्तन्वदिवारविन्दगहनान्यौदन्वतीनामपाम् ।
निष्प्रत्यूहतरङ्गरिङ्गणमिथःप्रत्यूढपाथच्छटा-
डोलारोहसदोहलं भगवतो मात्स्यं वपुः पातु नः ॥२॥

अव्यासुर्भुवनत्रयीमनिभृतं कण्डूय़नैरद्रिणा
निद्राणस्य परस्य कूर्मवपुषो निःश्वासवातोर्मयः
यद्विक्षेपणसंस्कृतोदधिपयःप्रेङ्खोलपर्यङ्किका-
नित्यारोहणनिर्वृतो विहरते देवः सहैव श्रिया ॥३॥

गोपायेदनिशं जगन्ति कुहनापोत्री पवित्रीकृत-
ब्रह्माण्डः प्रलयोर्मिघोषगुरुभिर्घोणारवैर्घुर्घुरैः ।
यद्दंष्ट्राङ्कुरकोटिगाढघटनानिष्कंपनित्यस्थितिः
ब्रह्मस्तंबमसौदसौ भगवती मुस्तेव विश्वंभरा ॥४॥

प्रत्यादिष्टपुरातनप्रहरणग्रामः क्षणं पाणिजैः
पायात्त्रीणि जगन्त्यकुण्ठमहिमा वैकुण्ठकण्ठीरवः ।
यद्प्रादुर्भवनादवन्ध्यजठरा यादृच्छिकाद्वेधसां
या काचित्सहसा महासुरगृहस्थूणा पितामह्यभूत् ॥५॥

व्रीडाविद्धवदान्यदानवयशोनासीरधाटीभटः
त्रय्यक्षं मकुटं पुनन्नवतु नस्त्रैविक्रमो विक्रमः ।
यत्प्रस्तावसमुच्छ्रितध्वजपटीवृत्तान्तसिद्धान्तिभि-
स्स्रोतोभिस्सुरसिन्धुरष्टसु दिशासौधेषु दोधूयते ॥६॥

क्रोधाग्निं जमदग्निपीडनभवं सन्तर्पयिष्यन्क्रमा-
दक्षत्रामपि सन्ततक्ष य इमां त्रिस्सप्तकृत्वः क्षितिम् ।
दत्वा कर्मणि दक्षिणां क्वचन तामास्कन्द्य सिन्धुं वस-
न्नब्रह्मण्यमपाकरोतु भगवानाब्रह्मकीटं मुनिः ॥७॥

पारावारपयोविशोषणकलापारीणकालानल-
ज्वालाजालविहारहारिविशिखव्यापारघोरक्रमः ।
सर्वावस्थसकृत्प्रपन्नजनतासंरक्षणैकव्रती
धर्मो विग्रहवानधर्मविरतिं धन्वी स तन्वीत नः ॥८॥

फक्कत्कौरवपट्टणप्रभृतयः प्रास्तप्रलंबादयः
तालाङ्कस्य तथाविधा विहृतयस्तन्वन्तु भद्राणि नः
क्षीरं शर्करयैव याभिरपृथग्भूता प्रभूतैर्गुणैः
आकौमारकमस्वदन्त जगते कृष्णस्य ता खेलय: ॥९॥

नाथायैव नमःपदं भवतु नश्चित्रैश्चरित्रक्रमै-
र्भूयोभिर्भुवानान्यमूनि कुहनागोपाय गोपायते ।
कालिन्दीरसिकाय कालियफणिस्फारस्फटावाटिका
रङ्गोत्सङ्गविशङ्कचंक्रमधुरापर्यायचर्याय ते ॥१०॥

भाविन्या दशया भवन्निह भवध्वंसाय नः कल्पतां
कल्की विष्णुयशस्सुतः कलिकथाकालुष्यकूलङ्कषः ।
निश्शेषक्षतकण्टके क्षितितले धाराजलौघैर्ध्रुवं
धर्म्यं कार्तयुगं प्ररोहयति यन्निस्त्रिंशधाराधर: ॥११॥

इच्छामीन विहारकच्छप महापोत्रिन् यदृच्छाहरे
रक्षावामन रोषराम करुणाकाकुत्स्थ हेलाहलिन्
क्रीडावल्लव कल्कवाहनदशा कल्किन्निति प्रत्यहं
जल्पन्तः पुरुषाः पुनन्ति भुवनं पुण्यौघपण्यापणाः ॥१२॥

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