विष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् Vishnukritam Ganesh Stotram
विष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है, जिसमें भगवान विष्णु द्वारा भगवान गणेश की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा और शक्ति का वर्णन करता है और उनकी कृपा से सभी विघ्नों का नाश होता है। इसके नियमित पाठ से जीवन में आने वाले सभी बाधाओं और कष्टों का समाधान होता है। यह स्तोत्र गणेशजी की कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम माना जाता है, और इसे विशेष रूप से विघ्नों से मुक्ति, कार्यों में सफलता, और समृद्धि की कामना के लिए पढ़ा जाता है।
विष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् की पृष्ठभूमि
विष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् का उल्लेख पुराणों में मिलता है, विशेष रूप से स्कंद पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में। इसकी रचना के पीछे यह कथा है कि भगवान विष्णु ने जब देखा कि त्रिलोक में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना जाता है और बिना उनकी पूजा के कोई कार्य सफल नहीं होता, तब उन्होंने भगवान गणेश की महिमा का गुणगान किया और यह स्तोत्र रचा। इससे यह सिद्ध होता है कि स्वयं भगवान विष्णु भी भगवान गणेश की महत्ता को स्वीकार करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए स्तुति करते हैं।
विष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् का महत्व
- विघ्न नाशक: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इस स्तोत्र के पाठ से सभी विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है। कोई भी कार्य यदि शुरू करने से पहले इस स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो वह कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होता है।
- सफलता और समृद्धि: गणेशजी को समृद्धि और बुद्धि का देवता माना जाता है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से बुद्धि का विकास होता है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
- मानसिक शांति: विष्णुकृत गणेश स्तोत्र का पाठ करने से मन को शांति मिलती है और ध्यान केंद्रित होता है। इसके पाठ से मानसिक संतुलन प्राप्त होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: इस स्तोत्र का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और व्यक्ति भगवान गणेश की कृपा से जीवन में उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति करता है।
विष्णुकृत गणेश स्तोत्रम् का पाठ
इस स्तोत्र में भगवान विष्णु भगवान गणेश की स्तुति करते हैं और उनका आह्वान करते हैं कि वे सभी विघ्नों का नाश करें और सुख-समृद्धि प्रदान करें। इस स्तोत्र के श्लोकों में भगवान गणेश की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन किया गया है, जैसे कि उनकी चार भुजाएं, उनका वाहन मूषक, और उनके साथ रहने वाली सिद्धि और बुद्धि।
नारायण उवाच ॥
अथ विष्णु: सभामध्ये सम्पूज्य तं गणेश्वरम् ।
तुष्टाव परया भक्त्या सर्वविघ्नविनाशकम् ॥१॥
विष्णुरुवाच ॥
ईशत्वां स्तोतुमिच्छामि ब्रह्मज्योति: सनातनम् ।
निरूपितुमशकोऽहमनुरूपमनीहकम् ॥२॥
प्रवरं सर्वदेवानां सिद्धानां योगिनां गुरुम् ।
सर्वस्वरूपं सर्वेश्म ज्ञानराशिस्वरूपिणाम् ॥३॥
अव्यक्तमक्षरं नित्यं सत्यमात्मस्वरूपिणम् ।
वायुतुल्यातिनिर्लिप्तं चाक्षतं सर्वसाक्षिणम् ॥४॥
संसारार्णवपारे च मायापोते सुदुर्लमे ।
कर्णधारस्वरूपं च भक्तानुग्रहकारकम् ॥५॥
वरं वरेण्यं वरदं वरदानामपीश्वरम् ।
सिद्धं सिद्धिस्वरूपं च सिद्धिदं सिद्धिसाधनम् ॥६॥
ध्यानातिरिक्तं ध्येयं च ध्यानासाध्यं च धार्मिकम् ।
धर्मस्वरूपं धर्मज्ञं धर्माधर्मफलप्रदम् ॥७॥
बीजं संसारवृक्षाणामड्कुरं च तदाश्रयम् ।
स्त्रीपुन्नपुंसकानां च रूपमेतदतीन्द्रियम् ॥८॥
सर्वाद्यमग्रपूज्यं च सर्वपूज्यं गुणार्णवम् ।
स्वेच्छया सगुणं ब्रह्म निर्गुणं चापि स्वेच्छया ॥९॥
स्वयं प्रकृतिरूपं च प्राकृतं प्रकृते: परम् ।
त्वांस्तोतुमक्षमोऽनन्त: सहस्रवदनेन च ॥१०॥
नक्षम: पञ्चवक्त्रश्च न क्षमश्चतुरानन: ।
सरस्वती न शक्ता च न शक्तोऽहं तव स्तुतौ ॥
न शक्ताश्च चतुर्वेदा: के वा ते वेदवादिना: ॥११॥
इत्येवं स्तवनं कृत्या सुरेशं सुरसंसदि ।
सुरेशश्च सुरै: सार्द्धं विरराम रमापति: ॥१२॥
इदं विष्णुकृतं स्तोत्रं गणेशस्य च य: पठेत् ।
सायंप्रातश्च मध्याहे भक्तियुक्त: समाहित: ॥१३॥
तद्बिघ्नीघ्नं कुरुते विघ्नेश: सततं मुने ।
वर्धते सर्वकल्याणं कल्याणजनक: सदा ॥१४॥
यात्राकाले पठित्वा तु यो याति भक्तिपूर्वकम् ।
तस्य सर्वाभीष्टसिद्धिर्भवत्येव न संशय: ॥१५॥
तेन दृष्टं च दु:स्वप्नं सुस्वप्नमुपजायते ।
कदापि न भवेत्तस्य ग्रहपीडा च दारुणा ॥१६॥
भवेद् विनाश: शत्रूणां बन्धूनां च विवर्धनम् ।
शश्वद्विघ्नविनाशश्च शश्वत् सम्पद्विवर्धनम् ॥१७॥
स्थिरा भवेद् गृहे लक्ष्मी: पुत्रपौत्रविवर्धिनी ।
सर्वैश्वर्यमिह प्राप्त ह्यन्ते विष्णुपदं लभेत् ॥१८॥
फलं चापि च तीर्थानां यज्ञानां यद् भ वेद् ध्रुवम् ।
महतां सर्वदानानां श्रीगणेशप्रसादत: ॥१९॥
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते विष्णुकृतं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
विष्णुकृतं गणेश स्तोत्रम् पाठ का समय और विधि
- इस स्तोत्र का पाठ करने का सबसे अच्छा समय प्रातःकाल और गणेश चतुर्थी का दिन माना जाता है।
- इस स्तोत्र को पढ़ने से पहले भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
- शुद्ध और शांत मन से इसका पाठ करने से भगवान गणेश की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।