वायुपुराण का परिचय Introduction to Vayupuran (Vayu Purana)
वायुपुराण भारतीय जीवन और सभ्यता के क्रमशः विकास का इतिहास है। अन्य पुराणों की भाँति इसमें भावुकता की प्रधानता न होकर तर्क का प्राधान्य है। इस पुराण की मुखर वाणी और वर्णन शैली में वैदिक काल से लेकर बौद्धकाल तक के भारतीय राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्कर्ष का अभिमान एवं गौरव निहित है।
वायुपुराण की प्राचीनता Antiquity of Vayupuran
वायुपुराण के राजवंश-वर्णन प्रसंग में अध्याय १६१ श्लोक २५८ में शशिपामन जो ने अपने समकालीन राजा अधिकांस का उल्लेख किया है, जो जनमेजय के पौत्र थे और जिनका समय महाभारत युद्ध से दो सौ वर्ष बाद प्रायः माना जाता है। इस मान्यता के अनुसार वायुपुराण का समय महाभारत काल से दो सौ वर्ष बाद का निश्चित होता है। इसके अतिरिक्त वायुपुराण की शैली भी प्राचीनता का साक्ष्य दे रही है। जो अंश बाद में प्रक्षिप्त हुए है उनकी शैली और अध्ययनपाठ से स्पष्टतया नवीनता प्रकट होती है।
वायुपुराण के वर्ण्यविषय
अन्य पुराणों की भाँति वायुपुराण के भी वर्ण्य विपय, सर्ग, प्रति सर्ग, मन्वन्तर आदि से समन्वित हैं । वंशानुचरित इस पुराण में अन्य पुराणों की भांति श्यून है। वायुपुराण के वंशानुक्रम और अन्य वर्ण्य विषयों में स्पष्टत परोक्षवाद, प्रतीकवाद और रहस्यवाद निहित है। वायुपुराण पढ़ते समय दो दृष्टिकोण वैज्ञानिक और व्याव- हारिक जब तक नही अपनाये जायेंगे तब तक वास्तविक रहस्य नहीं खुल सकता। क्योंकि पुराण वेदों की छाया की भाँति हैं। वेदों के रहस्यवाद और चमत्कार पूर्ण वर्णन पुराणों में बहुत ही कौशल के साथ रोचक कथा शैली में लिखे गए हैं। उदाहरण के लिए वायुपुराण के अन्तर्गत नहुष, ययाति, तुवंश आदि राजाओं के वर्णन दोनों पक्ष में अपना रहस्यपूर्ण स्थान रखते है। जब हम इन राजाओं की कथाओ पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करते हुए वैदिक वर्णन से तुलना करते हैं तो हमें राजा के बजाय आकाशीय पदार्थं ही जान पड़ते हैं। बायुपुराण में नहुष के लड़के का नाम ययाति था उसकी रानी शुक्र की कन्या थी। दूसरी रानी का नाम शर्मिष्ठा था । वैदिक आख्यान से संगति मिलाते हुए जब हम इस पौराणिक आख्यान का वैज्ञानिक विश्लेपण करते हैं तो ययाति, शुक्र की कन्या और शर्मिष्ठा सभी आकाशीय पदार्थ ही सिद्ध होते हैं। पुराणों मे ययाति को नहुष का पुत्र माना गया है और नहुष के पिता का नाम आयु था। यजुर्वेद (५१२) में लिखा है कि “अग्ने आयुरति” अर्थात् हे अग्नि तू ‘आयु’ है। यही आयु पुराणों में उर्वशी और पुरूरवा का पुत्र माना गया है। वेदों के वर्णन के अनुसार उवंशी और पुरूरवा अग्नि निमित सूर्य और रश्मि हैं। अतएव उनके पुत्र आयु को अग्नि होना ही चाहिए । इसका साक्ष्य ऋग्वेव (११३१।११) में इस प्रकार है
“त्वमग्ने प्रथमं आयुं आयवे देवाः अकृण्वन्”
अर्थात् हे अग्नि, पहले तूने आयु को बनाया और बायु से देवताओं को। इस उदाहरण से सिद्ध होता है कि आयु नामक अग्नि से सूर्य रश्मि – उषा आदि देवता बने ।
वायुपुराण के अनुसार यदु, तुर्वसु, पुरु, द्रुह्य और अनु ये पांच पुत्र ययाति के है। इन पांचो को आकाशीय पदार्थ के रूप में ऋग्वेद की विभिन्न बारह ऋचाओं ने स्वीकार किया है जिनके संक्षिप्त आशय इस प्रकार है-
- १- जो विद्युत् तुर्वश में है वह सूर्य की किरणों से आयी हैं । (११४७।७)
- २- अग्नि से तुवंश यदु को दूर करते है। (ऋ० ११३६०१८)
- ३- प्रकाश से तुवंश यदु को पार करो। (ऋ० १।७४।९)
- ४- अन्तरिक्ष का मार्ग पुरु है। (ऋ० ८/१००६)
- ५-यदु सूर्य के द्वारा जाते हैं। (ऋ० ८।६।१८)
- ६ हुत पदार्थों को ले जाने वाले पुरु। (ऋ० १।१२।१२)
- ७- अनु का घर द्युलोक है। (ऋ० ८।६६।१८)
- ८- पुरु सूर्य के आश्रित हैं। (ऋ० १०।६४।५)
- ६- इन्द्र माया कर के पुरु बन जाता है। (ऋ० ६।४७/१८)
- १० तुवंश यदु को शचीपति इन्द्र पार कर देगा। (ऋ० ४।३०।१७)
- ११-जो इश्द और अग्नि यदु तुर्वश, ब्रुह्य, अनु और पुरु में है। (ऋ० १११०८१८)
- १२- प्रातःकाल का दृश्य पुरु को प्रिय है। (ऋ० ५११८११)
सूयं सिद्धांत में तारा और ग्रहों में परस्पर योग का नाम युद्ध है। और ययाति एक तारा का नाम है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आलोचना करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वैदिक नक्षत्रवंश को पुराणों मे राजवंश का रूप दिया गया है। अथवा नक्षत्रवंशों के अभिधानों का अनुकरण राजवंश की नामावली में किया गया है।
वायुपुराण में दर्शाया गया पर्वतों का वर्णन Description of mountains shown in Vayupuran
इस पुराण में समग्र भूवलय पर स्थित देशों का वर्णन किया गया है। वहाँ के निवासियो के आचार विचार, स्वभाव, सभ्यता, रुचि और भौगोलिक स्थिति (पर्वत, नदी) आदि का वर्णन भी है भारतवर्ष से अन्य देशों के नामों के अप्रचलित होने के कारण उनके विषय मे कुछ कहना असगत है। यहाँ केवल भारतवर्ष और इसके सीमावर्ती देशों के विषय में ही कहा जा सकता है। यह पुराण भारतवर्ष को जम्बूद्वीप का मध्य स्थान मानता है। जम्बू द्वीप सम्भवतः एशिया का प्राचीन नाम जान पड़ता है। भारत की सीमा पर स्थित देशो के प्राकृतिक वर्णन में सूत जी अपना हृदय खोल कर रख देते है, परन्तु वहां के निवासियो के आचार विचार को देखकर क्षुब्ध हो जाते है। वे यह भूल जाते है कि प्राकृतिक असुविधाओं और अनेक प्रकार के अभावों के कारण सभ्यता और रहन-सहन का स्वरूप भिन्न भिन्न हो जाता है। इसके बाद जब वे पूरब से पश्चिम लम्बायमान हिमालय पर्वत के दक्षिण स्थित भारतवर्ष का वर्णन करने लगते है तब उनके हृदय में देशप्रेम और देशाभिमान इस प्रकार जाग्रत हो जाता है कि ‘यह देश विचित्र है, कर्म भूमि है, यही से स्वर्ग मोक्ष आदि गति प्राप्त होती है।’ भारतवर्ष, नामकरण का कारण भी विचित्र ढंग से बतलाते है। पंतालीसवे अध्याय मे वह कहते हैं कि यहां भारती प्रजा रहती है, प्रजाओं के भरण पोषण के कारण यहाँ के मनु भरत (विश्व भरण पोषण कर जोई ताकर नाम भरत अस होई- तुलसी) कहलाते है। भरत नाम की इस व्याख्या (निर्वचन) के कारण ऐसे मनु की निवास भूमि भारत या भारतवर्ष कहलाई । प्राकृतिक सुविधाओं को देखकर वह पुनः कहते हैं कि इस देश को छोड़ कर कहीं अन्यत्र कर्म व्यवस्था नहीं है-
“न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौ कर्म विधीयते ।”
भारतस्यास्य वर्षस्य नवभेदाः प्रकीर्तिताः’ समुद्रान्तरिताः शेयास्ते त्वगम्याः परस्परम् ।
अयन्तु मवमस्तेषां द्वीप सागर संवृतः आयतो ह्याकुमारिक्यादागङ्गा प्रभवाच्च वै ।
“न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौ कर्म विधीयते।”
(वायु पु० अ० ४५ श्लो० ७८-८१)
वायुपुराण में नदियो का वर्णन Description of rivers in Vayupuran
‘इस भारतवर्ष के नव भेद हैं जो समुद्र से घिरे हुये और परस्पर अगम्य है। उनमें यह भारतवर्ष जो कुमारी अन्तरीप से लेकर गंगोत्री तक फैला हुआ है नवाँ है यह कह कर पुराणकार भारतवर्ष के अन्य आठ विभाग और बतलाते हैं। पता नहीं उन आठों की सीमा क्या थी। इस समय भी बहुत से भूगोलविद् कहा करते हैं कि प्राचीन काल में भारत की सीमा और भौगोलिक स्थिति आज से कुछ भिन्न थी। जान पड़ता है कि इस प्रकार की जनश्रुति उस समय भी थी। भारतवर्ष की नदियों, पर्वतों और प्रान्तों के वर्णन को देखकर उनके समग्र भारतवर्ष के भौगोलिक ज्ञान का पता चलता है। हिमालय से लेकर दक्षिण के सह्याद्रि, मलय, नीलगिरि, मध्य के विन्ध्य, श्रीशैल आदि पर्वतों और
सिन्धु, सरस्वती, शतद्रु, विपाशा, वितस्ता, गंगा, यमुना, सरयू, गंडकी, इरावती, कौणिकी (कोसी), इक्षु, लोहित (ब्रह्मपुत्र) आदि उत्तर की (हिमवत्पादविनिःसृताः) हिमालय से निकलने वाली नदियों और विदिशा, वेत्रवती (वेतवा), महानद शोण (सोन। आदि विन्ध्य से निकलने वाली नदियों, गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा, भीमरथी, सुप्रयोगा, कावेरी आदि दक्षिणा-पथ की सह्य (पश्चिमी घाट) पाद से निकली नदियों का वर्णन कर विशाल भारत के भौगोलिक और सांस्कृतिक ऐक्य का परिचय दिया है। इन नदियों को
‘विश्वस्य मातरः सर्वाः जगत्पापहरा स्मृताः’
कह कर सूत जी ने प्राचीन भारतीयों की प्रकृति के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम का मुग्धकारी वर्णन किया है।
वायुपुराण की पुस्तक Vayu Purana Book
वायुपुराण के लिए सर्वश्रेष्ठ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Vayupuran FAQs)
वायुपुराण में कितने अध्याय हैं?
वायुपुराण में कुल अध्याय १६१ श्लोक २५८ हैं, जिनमें विभिन्न विषयों पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
वायुपुराण में वर्णित धार्मिक अनुष्ठान कौन-कौन से हैं?
वायुपुराण में यज्ञ, हवन, तीर्थयात्रा, व्रत, और पूजा विधियों का विस्तृत वर्णन है, जो धार्मिक जीवन का अभिन्न अंग माने जाते हैं।
वायुपुराण में दर्शायी गयी नदीया कोन कोन सी है?
सिन्धु, सरस्वती, शतद्रु, विपाशा, वितस्ता, गंगा, यमुना, सरयू, गंडकी, इरावती, कौणिकी (कोसी), इक्षु, लोहित (ब्रह्मपुत्र), विदिशा, वेत्रवती (वेतवा), महानद शोण (सोन। आदि विन्ध्य से निकलने वाली नदियों, गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा, भीमरथी, सुप्रयोगा, कावेरी नदियों का वर्णन मिलता है।
ययाति के पाच पुत्र का नाम क्या है ?
यदु, तुर्वसु, पुरु, द्रुह्य और अनु ये पांच पुत्र ययाति के है
नहुष के पिता का नाम क्या था?
नहुष के पिता का नाम आयु था.
आयु के माता और पिता का नाम क्या था ?
आयु पुराणों में उर्वशी और पुरूरवा के पुत्र बताए गए है