श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसे महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत रखा गया है। यह संस्कृत में लिखी गई एक संवादात्मक रचना है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का विवरण दिया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। इसे जीवन के विविध क्षेत्रों में मार्गदर्शन देने वाली एक गहन दार्शनिक रचना माना जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता का संवाद कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में हुआ था, जब अर्जुन अपने कर्तव्यों और धर्म के प्रति संदेह में थे। अर्जुन युद्ध में अपने संबंधियों, गुरुओं और मित्रों से लड़ने के लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने भगवान कृष्ण से मार्गदर्शन की याचना की। इस स्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान के विभिन्न सिद्धांतों का उपदेश दिया।
मुख्य विषय
गीता में चार प्रमुख मार्गों की चर्चा की गई है:
- कर्म योग: निष्काम कर्म का सिद्धांत, जिसमें व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी फल की आशा के करना चाहिए।
- ज्ञान योग: इस मार्ग में आत्मा और परमात्मा के ज्ञान की महत्ता पर जोर दिया गया है। यह ज्ञान व्यक्ति को मोह और अज्ञानता से मुक्त करता है।
- भक्ति योग: यह मार्ग प्रेम और भक्ति के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण और आस्था को सर्वोच्च माना गया है।
- ध्यान योग: मन और आत्मा की एकाग्रता और ध्यान के माध्यम से आत्मा की साक्षात्कार की प्रक्रिया को समझाया गया है।
प्रमुख शिक्षाएं
- कर्तव्य पालन: गीता में बताया गया है कि व्यक्ति को अपने कर्म को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए। परिणाम की चिंता किए बिना कर्म करना ही सच्चा धर्म है।
- आत्मा का अमरत्व: गीता के अनुसार आत्मा न तो पैदा होती है और न ही मरती है। यह शाश्वत और अजर-अमर है। शरीर केवल आत्मा का एक आवरण है, जो नश्वर है।
- योग का महत्व: जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए योग की आवश्यकता है। चाहे वह ध्यान योग हो, भक्ति योग हो, या कर्म योग – सभी मार्ग व्यक्ति को मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
- अहम् ब्रह्मास्मि: व्यक्ति के भीतर ब्रह्म का निवास है, और उसे आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से ईश्वर से मिलन का प्रयास करना चाहिए।
प्रभाव और महत्ता
गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन देने वाला एक व्यावहारिक ग्रंथ है। इसके सिद्धांत जीवन के हर क्षेत्र में लागू किए जा सकते हैं – चाहे वह व्यक्तिगत विकास हो, समाज का निर्माण हो, या नेतृत्व और प्रशासन का क्षेत्र हो। इसके उपदेश न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध हैं और इसे मानवता का एक शाश्वत धरोहर माना जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता को स्वामी विवेकानंद, और कई अन्य महान व्यक्तियों द्वारा प्रेरणा का स्रोत माना गया है। गीता का संदेश सार्वभौमिक है और यह हर समय, हर युग और हर परिस्थिति में मार्गदर्शन देती है। भगवदगीता को पढने के लिए यहाँ जाए. Click Here
श्री गीता जी की आरती Shri Bhagwad Geeta Aarti
करो आरती गीता जी की॥
जग की तारन हार त्रिवेणी,
स्वर्गधाम की सुगम नसेनी।
अपरम्पार शक्ति की देनी,
जय हो सदा पुनीता की॥
ज्ञानदीन की दिव्य-ज्योती मां,
सकल जगत की तुम विभूती मां।
महा निशातीत प्रभा पूर्णिमा,
प्रबल शक्ति भय भीता की॥ करो०
अर्जुन की तुम सदा दुलारी,
सखा कृष्ण की प्राण प्यारी।
षोडश कला पूर्ण विस्तारी,
छाया नम्र विनीता की॥ करो०॥
श्याम का हित करने वाली,
मन का सब मल हरने वाली।
नव उमंग नित भरने वाली,
परम प्रेरिका कान्हा की॥ करो०॥