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बुधवार, नवम्बर 20, 2024

शिवरक्षास्तोत्रम् – याज्ञवल्क्यकृतम् Shiv Raksha Stotram

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परिचय

शिवरक्षास्तोत्रम् एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसे ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित माना जाता है। यह स्तोत्र भगवान शिव की आराधना और उनकी रक्षा की प्रार्थना के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त भगवान शिव से उनकी कृपा और संरक्षण की कामना करते हैं। यह स्तोत्र भारतीय धार्मिक साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसके पाठ से व्यक्ति को मानसिक शांति, समृद्धि और आत्म-सुरक्षा की प्राप्ति होती है।

शिवरक्षास्तोत्रम् का ऐतिहासिक महत्व Importance of Shiv Raksha Stotram

शिवरक्षास्तोत्रम् की रचना महर्षि याज्ञवल्क्य ने की थी, जो कि वेदों और उपनिषदों के महान ज्ञाता और योगी थे। याज्ञवल्क्य ने इस स्तोत्र के माध्यम से भगवान शिव के अनंत गुणों और शक्तियों का वर्णन किया है। यह स्तोत्र न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ भी अत्यधिक हैं। यह स्तोत्र भक्तों को मानसिक कठिनाइयों और संकटों से उबारने में मदद करता है और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है।

शिवरक्षास्तोत्रम् की संरचना और अर्थ Meaning of Shiv Raksha Stotram

शिवरक्षास्तोत्रम् में कुल 17 श्लोक हैं, जिनमें भगवान शिव की विभिन्न विशेषताओं और उनके आश्रय की प्रार्थना की जाती है। इन श्लोकों में भगवान शिव को ‘त्रिपुरारी’, ‘भोलानाथ’ और ‘शंकर’ जैसे विभिन्न नामों से संबोधित किया गया है। प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव की शक्ति, उनके अनुग्रह और उनकी विशेषताओं का विस्तृत वर्णन किया गया है।

प्रत्येक श्लोक की शुरुआत भगवान शिव की महिमा के वर्णन से होती है और अंत में भक्त उनकी रक्षा और सुरक्षा की कामना करते हैं। शिवरक्षास्तोत्रम् में भगवान शिव के गुणों की प्रशंसा करते हुए यह भी प्रार्थना की जाती है कि वे सभी प्रकार की विफलताओं, कठिनाइयों और बाधाओं से दूर रखें। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो मानसिक अशांति, आर्थिक संकट या शारीरिक बीमारियों से जूझ रहे हैं।

शिवरक्षास्तोत्रम् के लाभ Benifits of Shiv Raksha Stotram

  1. मानसिक शांति: शिवरक्षास्तोत्रम् का नियमित पाठ मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है। यह व्यक्ति को तनाव और चिंता से राहत देता है और मन को एकाग्रता की ओर ले जाता है।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। भगवान शिव की आराधना से आत्मा की शुद्धि होती है और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
  3. सुरक्षा और संरक्षण: यह स्तोत्र भगवान शिव से सुरक्षा और संरक्षण की प्रार्थना करता है। इसके पाठ से व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की शारीरिक और मानसिक समस्याओं से राहत मिलती है और जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
  4. समृद्धि और ऐश्वर्य: शिवरक्षास्तोत्रम् का पाठ आर्थिक समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। यह व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की ओर अग्रसर करता है।

शिवरक्षास्तोत्रम् का पाठ विधि Shiv Raksha Stotram Chant Guide

शिवरक्षास्तोत्रम् का पाठ करने के लिए विशेष विधि की आवश्यकता होती है। यह स्तोत्र सुबह या संध्या समय, स्नान करने के बाद, स्वच्छ और शांति वातावरण में पाठ किया जाता है। पाठ करते समय भगवान शिव की तस्वीर या प्रतिमा के सामने बैठना चाहिए और ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

पाठ करते समय यह महत्वपूर्ण है कि भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ श्लोकों का उच्चारण करें। श्लोकों को सही उच्चारण के साथ पढ़ना चाहिए और भगवान शिव से व्यक्तिगत रूप से सुरक्षा और कृपा की प्रार्थना करनी चाहिए।


शिवरक्षास्तोत्रम् – याज्ञवल्क्यकृतम् Shiv Raksha Stotram

चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्यसाधनम् ॥१॥

गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षांपठेन्नरः ॥२॥

गंगाधरः शिरः पातु फालमर्धेन्दुशेखरः ।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषणः ॥३॥

घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरं शितिकन्धरः ॥४॥

श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः ।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥५॥

हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः ।
नाभिं मृत्युंजयः पातु कटिं व्याघ्राजिनाम्बरः ॥६॥

सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः ।
ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ॥७॥

जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः  ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वांगानि सदाशिवः ॥८॥

एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायूज्यमाप्नुयात् ॥९॥

ग्रहभूतपिशाचाद्याः त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात् ॥१०॥

अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम् ॥११ ॥




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