सनातन गोपाल स्तोत्रं(Santana Gopala Stotram) हिंदू धर्म में एक पवित्र स्तोत्र है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप गोपाल को समर्पित किया गया है। यह स्तोत्र भगवान गोपाल की दिव्य लीलाओं, उनकी करुणा और बाल रूप के सौंदर्य का वर्णन करता है। यह स्तोत्र न केवल भक्ति की अभिव्यक्ति है, बल्कि इसे पढ़ने से मानसिक शांति, आध्यात्मिक शक्ति और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
संरचना और महत्व Importance of Santana Gopala Stotram
यह स्तोत्र सरल और भावपूर्ण श्लोकों से युक्त है। इसे प्राचीन ऋषियों और भक्तों द्वारा रचित माना जाता है। इसकी रचना का उद्देश्य भगवान के प्रति गहन प्रेम और समर्पण को व्यक्त करना है।
गोपाल का अर्थ है गाएं पालने वाले भगवान, जो ब्रज के नंदलाल और यशोदा मैया के पुत्र हैं। उनका बाल रूप अत्यंत मधुर, आकर्षक और भक्तों के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत है।
सनातन गोपाल स्तोत्रं के लाभ Benifits of Santana Gopala Stotram
सनातन गोपाल स्तोत्र का नियमित पाठ करने से अनेक लाभ मिलते हैं:
- मन की शुद्धि: यह स्तोत्र मन को शांत करता है और नकारात्मक विचारों को दूर करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की भक्ति से आत्मा को परम शांति मिलती है।
- सुख-समृद्धि: परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- संतान सुख: इस स्तोत्र का पाठ करने से नि:संतान दंपतियों को संतान का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है।
पाठ विधि
- इस स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय किया जाना चाहिए।
- पाठ से पहले भगवान गोपाल का स्मरण करें और उन्हें पुष्प, तुलसीदल, दूध, माखन और मिश्री अर्पित करें।
- शुद्ध मन और ध्यान के साथ श्लोकों का उच्चारण करें।
उत्सव और अनुष्ठान में उपयोग
- जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।
- बालक रूप पूजा: जब किसी परिवार में बच्चे का जन्म होता है, तो गोपाल के बाल स्वरूप की पूजा में इस स्तोत्र का उपयोग होता है।
- नित्य पूजा: इसे दैनिक पूजा में शामिल करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
गोपाल स्तोत्रं Gopala Stotram
अथ सन्तानगोपालस्तोत्रम्
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौम्।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम्।
सुतसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम्।
नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम्।
यशोदाङ्कगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम्।
अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम्।
नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा।
गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम्।
पुत्रसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुङ्गवम्।
पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम्।
देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम।
पद्मापते पद्मनेत्रे पद्मनाभ जनार्दन।
देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते।
यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम्।
अस्माकं पुत्रलाभाय नमामि श्रीशमच्युतम्।
श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिहरणाच्युत।
गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन।
भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रद।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।
रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा।
भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गतः।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा।
नमामि पुत्रलाभार्थं सुखदाय बुधाय ते।
राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे।
तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे।
अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते।
श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते।
अस्माकं पुत्रसम्प्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन।
रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित।
वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव।
पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो।
डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन।
नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते।
कमलानाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे।
यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनम्।
वन्देऽहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा।
नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो।
रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते।
पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव।
अस्माकं दीनवाक्यं त्वमवधारय श्रीपते।
गोपाल डिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते।
अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते।
मद्वाञ्छितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत।
मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन।
याचेऽहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसम्पदम्।
भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो।
आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम्।
अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन।
वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम्।
अस्माकं पुत्रसम्प्राप्त्यै सदा गोविन्दमच्युतम्।
ओङ्कारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम्।
क्लीम्युक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम्।
वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत।
देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो।
राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो।
समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा।
अब्जपद्मनिभं पद्मवृन्दरूप जगत्पते।
देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव।
नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।
दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत।
गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम्।
यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत।
देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधर प्राणनायक।
अस्माकं वाञ्छितं देहि देहि पुत्रं रमापते।
भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते।
रमाहृदयसम्भार सत्यभामामनःप्रिय।
देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।
चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव।
अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते।
कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभसमर्चित।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन।
देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते।
समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा।
भक्तमन्दार गम्भीर शङ्कराच्युत माधव।
देहि मे तनयं गोपबालवत्सल श्रीपते।
श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन।
भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो।
जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे।
वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो।
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन।
मत्पुत्रफलसिद्ध्यर्थं भजामि त्वां जनार्दन।
स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखाम्बुजं विलोक्य मन्दस्मितमुज्ज्वलाङ्गम्।
स्पृशन्तमन्यस्तनमङ्गुलीभिर्वन्दे यशोदाङ्कगतं मुकुन्दम्।
याचेऽहं पुत्रसन्तानं भवन्तं पद्मलोचन।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
अस्माकं पुत्रसम्पत्तेश्चिन्तयामि जगत्पते।
शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित।
वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम।
कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित।
कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दन।
मह्यं च पुत्रसन्तानं दातव्यं भवता हरे।
वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकीसुत।
देहि मे तनयं राम कौशल्याप्रियनन्दन।
पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव।
देहि मे तनयं सीताप्राणनायक राघव।
कञ्जाक्ष कृष्ण देवेन्द्रमण्डित मुनिवन्दित।
लक्ष्मणाग्रज श्रीराम देहि मे तनयं सदा।
देहि मे तनयं राम दशरथप्रियनन्दन।
सीतानायक कञ्जाक्ष मुचुकुन्दवरप्रद।
विभीषणस्य या लङ्का प्रदत्ता भवता पुरा।
अस्माकं तत्प्रकारेण तनयं देहि माधव।
भवदीयपदाम्भोजे चिन्तयामि निरन्तरम्।
देहि मे तनयं सीताप्राणवल्लभ राघव।
राम मत्काम्यवरद पुत्रोत्पत्तिफलप्रद।
देहि मे तनयं श्रीश कमलासनवन्दित।
राम राघव सीतेश लक्ष्मणानुज देहि मे।
भाग्यवत्पुत्रसन्तानं दशरथप्रियनन्दन।
देहि मे तनयं राम कृष्ण गोपाल माधव।
कृष्ण माधव गोविन्द वामनाच्युत शङ्कर।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालक नायक।
गोपबाल महाधन्य गोविन्दाच्युत माधव।
देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते।
दिशतु दिशतु पुत्रं देवकीनन्दनोऽयं
दिशतु दिशतु शीघ्रं भाग्यवत्पुत्रलाभम्।
दिशतु दिशतु शीघ्रं राघवो रामचन्द्रो
दिशतु दिशतु पुत्रं वंशविस्तारहेतोः।
दीयतां वासुदेवेन तनयो मत्प्रियः सुतः।
कुमारो नन्दनः सीतानायकेन सदा मम।
राम राघव गोविन्द देवकीसुत माधव।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालक नायक।
वंशविस्तारकं पुत्रं देहि मे मधुसूदन।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।
ममाभीष्टसुतं देहि कंसारे माधवाच्युत।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।
चन्द्रार्ककल्पपर्यन्तं तनयं देहि माधव।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।
विद्यावन्तं बुद्धिमन्तं श्रीमन्तं तनयं सदा।
देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दन प्रभो।
नमामि त्वां पद्मनेत्रं सुतलाभाय कामदम्।
मुकुन्दं पुण्डरीकाक्षं गोविन्दं मधुसूदनम्।
भगवन् कृष्ण गोविन्द सर्वकामफलप्रद।
देहि मे तनयं स्वामिंस्त्वामहं शरणं गतः।
स्वामिंस्त्वं भगवन् राम कृष्ण माधव कामद।
देहि मे तनयं नित्यं त्वामहं शरणं गतः।
तनयं देहि गोविन्द कञ्जाक्ष कमलापते।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।
पद्मापते पद्मनेत्र प्रद्युम्नजनक प्रभो।
सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।
शङ्खचक्रगदाखड्गशार्ङ्गपाणे रमापते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
नारायण रमानाथ राजीवपत्रलोचन।
सुतं मे देहि देवेश पद्मपद्मानुवन्दित।
राम राघव गोविन्द देवकीवरनन्दन।
रुक्मिणीनाथ सर्वेश नारदादिसुरार्चित।
देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालक नायक।
मुनिवन्दित गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
गोपिकार्जितपङ्केजमरन्दासक्तमानस।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
रमाहृदयपङ्केजलोल माधव कामद।
ममाभीष्टसुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।
वासुदेव रमानाथ दासानां मङ्गलप्रद।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
कल्याणप्रद गोविन्द मुरारे मुनिवन्दित।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
पुत्रप्रद मुकुन्देश रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
पुण्डरीकाक्ष गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
दयानिधे वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
पुत्रसम्पत्प्रदातारं गोविन्दं देवपूजितम्।
वन्दामहे सदा कृष्णं पुत्रलाभप्रदायिनम्।
कारुण्यनिधये गोपीवल्लभाय मुरारये।
नमस्ते पुत्रलाभाय देहि मे तनयं विभो।
नमस्तस्मै रमेशाय रुक्मिणीवल्लभाय ते।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक।
नमस्ते वासुदेवाय नित्यश्रीकामुकाय च।
पुत्रदाय च सर्पेन्द्रशायिने रङ्गशायिने।
रङ्गशायिन् रमानाथ मङ्गलप्रद माधव।
देहि मे तनयं श्रीश गोपबालक नायक।
दासस्य मे सुतं देहि दीनमन्दार राघव।
सुतं देहि सुतं देहि पुत्रं देहि रमापते।
यशोदातनयाभीष्टपुत्रदानरतः सदा।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
मदिष्टदेव गोविन्द वासुदेव जनार्दन।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।
नीतिमान् धनवान् पुत्रो विद्यावांश्च प्रजापते।
भगवंस्त्वत्कृपया च वासुदेवेन्द्रपूजित।
यः पठेत् पुत्रशतकं सोऽपि सत्पुत्रवान् भवेत्।
श्रीवासुदेवकथितं स्तोत्ररत्नं सुखाय च।
जपकाले पठेन्नित्यं पुत्रलाभं धनं श्रियम्।
ऐश्वर्यं राजसम्मानं सद्यो याति न संशयः।
सनातन गोपाल स्तोत्रं के ऊपर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs for Santana Gopala Stotram
सनातन गोपाल स्तोत्रं क्या है?
सनातन गोपाल स्तोत्रं एक पवित्र हिंदू स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप, गोपाल, की स्तुति के लिए लिखा गया है। यह स्तोत्र उनके बाल लीलाओं और दिव्य गुणों का वर्णन करता है, और इसे श्रद्धापूर्वक पाठ करने से भक्तों को आध्यात्मिक शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
सनातन गोपाल स्तोत्रं का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
सनातन गोपाल स्तोत्रं का पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय करना शुभ माना जाता है। इसे करने से पहले स्वच्छ होकर पूजा स्थल पर बैठें और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर श्रद्धा से पाठ करें। नियमित पाठ करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
सनातन गोपाल स्तोत्रं के पाठ से क्या लाभ होते हैं?
सनातन गोपाल स्तोत्रं के पाठ से अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ होते हैं, जैसे:
बच्चों के स्वास्थ्य और विकास में सुधार।
मन में शांति और सकारात्मकता का संचार।
भक्ति भाव में वृद्धि और भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्ति।
जीवन की समस्याओं का समाधान और मानसिक तनाव से मुक्ति।क्या सनातन गोपाल स्तोत्रं का पाठ विशेष अवसरों पर किया जाता है?
हाँ, सनातन गोपाल स्तोत्रं का पाठ विशेष रूप से जन्माष्टमी, बाल गोपाल के जन्मदिन, या किसी बच्चे के जन्मोत्सव पर किया जाता है। इसके अलावा, इसे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि के लिए किसी भी शुभ अवसर पर किया जा सकता है।
क्या सनातन गोपाल स्तोत्रं का पाठ किसी विशेष नियम के तहत होता है?
सनातन गोपाल स्तोत्रं के पाठ के लिए कोई कठोर नियम नहीं हैं, लेकिन इसे पूर्ण श्रद्धा और शुद्ध मन से करना आवश्यक है। पाठ के दौरान ध्यान भटकने से बचें और भगवान गोपाल के दिव्य स्वरूप का स्मरण करें। स्तोत्र को समझकर पढ़ना अधिक लाभकारी माना जाता है।