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रश्मिरथी – प्रथम सर्ग – भाग 3 | Rashmirathee Pratham Sarg Bhaag 3

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“रश्मिरथी” के प्रथम सर्ग के भाग 3 में रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने उस प्रसिद्ध प्रसंग का चित्रण किया है जहाँ कर्ण को पहली बार जनता के समक्ष एक योद्धा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और उसकी जाति को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की जाती है। इस अंश में समाज के जातिगत पूर्वग्रहों और कर्ण की साहसी प्रतिक्रिया को प्रभावशाली काव्य शैली में प्रस्तुत किया गया है। आइए इस अंश का विस्तार से विश्लेषण करते हैं:

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रश्मिरथी – प्रथम सर्ग – भाग 3 | Rashmirathee Pratham Sarg Bhaag 3

फिरा कर्ण, त्यों ‘साधु-साधु’ कह उठे सकल नर-नारी,
राजवंश के नेताओं पर पड़ी विपद्‌ अति भारी।
द्रोण, भीष्म, अर्जुन, सब फीके, सब हो रहे उदास,
एक सुयोधन बढ़ा, बोलते हुए, ‘वीर! शाबाश !’

टन्द्र-युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा,
अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु ने किया इशारा।
कृपाचार्य ने कहा- ‘सुनो है वीर युवक अनजान’
भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान।

क्षत्रिय है, यह राजपुत्र है, यों ही नहीं लड़ेगा,
जिस-तिस से हाथापाई में कैसे कूद पड़ेगा?
अर्जुन से लड़ना हो तो मत गहो सभा में मौन,
नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हो कौन?

‘जाति! हाय री जाति!’ कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला,
कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला
जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाषंड,
मैं क्या जानूँ जाति ? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।

ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले,
शरमाते हैं नहीं जगत्‌ में जाति पूछनेवाले।
सूत्रपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन?
साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।

मस्तक ऊँचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो,
पर, अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।
अधम जातियों से थर-थर काँपते तुम्हारे प्राण,
छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान।

प्रसंग की पृष्ठभूमि

यह दृश्य उस समय का है जब गुरु द्रोण ने अपनी सभा में शस्त्रविद्या का प्रदर्शन आयोजित किया है। अर्जुन अपने कौशल का प्रदर्शन करता है जिससे सभा में उपस्थित लोग अत्यंत प्रभावित होते हैं। तभी कर्ण उस मंच पर आता है और अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारता है। वह भी अपने शौर्य का प्रदर्शन करना चाहता है ताकि उसकी वीरता को मान्यता मिल सके।

इस भाग में ‘दिनकर’ ने उस गहरे सामाजिक अन्याय को उजागर किया है जो योग्य व्यक्ति को केवल उसकी जाति के आधार पर अपमानित करता है। कर्ण की चुनौती और उसकी मुखर प्रतिक्रिया जातिवाद की नींव को हिलाने वाली है। इस प्रसंग के माध्यम से कवि ने यह संदेश दिया है कि व्यक्ति की पहचान उसके गुणों से होनी चाहिए, न कि उसके जन्म से।

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