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मंगलवार, मार्च 18, 2025

पंचमुख हनुमत्कवचम्

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पंचमुख हनुमत्कवचम्(Panchmukhi Hanuman Kavach) एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसे भगवान हनुमान के पंचमुख रूप की आराधना के लिए पढ़ा जाता है। यह कवच भक्तों को हर प्रकार के संकट, भय, रोग, नकारात्मक ऊर्जा, ग्रह दोष और शत्रु बाधाओं से रक्षा प्रदान करता है। इसमें भगवान हनुमान के पाँच मुखों – श्री हनुमान, श्री नरसिंह, श्री गरुड़, श्री वराह और श्री हयग्रीव की स्तुति की गई है।

पंचमुखी हनुमान का स्वरूप और महत्व

भगवान हनुमान का पंचमुखी रूप उनके पांच अलग-अलग स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करता है, जो विभिन्न दिशाओं की रक्षा करते हैं –

  1. पूर्वमुख – वानर रूप (हनुमानजी)
    • यह मुख्य रूप है, जो बल, बुद्धि, विजय और भक्ति का प्रतीक है।
    • यह सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करता है।
  2. दक्षिणमुख – नरसिंह रूप
    • यह स्वरूप सभी भयों को दूर करता है।
    • नकारात्मक ऊर्जा और तामसिक शक्तियों का नाश करता है।
  3. पश्चिममुख – गरुड़ रूप
    • यह स्वरूप सर्प दोष, विष योग और ग्रह पीड़ाओं से मुक्ति दिलाता है।
    • राहु-केतु के दोषों का निवारण करता है।
  4. उत्तरमुख – वराह रूप
    • यह स्वरूप समृद्धि और धन-वैभव प्रदान करता है।
    • वास्तु दोषों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।
  5. ऊर्ध्वमुख – हयग्रीव रूप
    • यह स्वरूप विद्या, ज्ञान और बुद्धि प्रदान करता है।
    • विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए लाभकारी है।

पंचमुख हनुमत्कवचम् का महत्व

  • यह कवच अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है और इसे नित्य पाठ करने से जीवन की समस्त बाधाओं का नाश होता है।
  • यह सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों, तंत्र-मंत्र दोष, भूत-प्रेत बाधाओं और ग्रहों के कुप्रभावों से रक्षा करता है।
  • व्यापार, करियर, शिक्षा और आध्यात्मिक उन्नति में सहायता करता है।
  • रोगों और शारीरिक कष्टों से मुक्ति दिलाने में भी इसे प्रभावी माना गया है।

Panchmukhi Hanuman Kavach

॥ पंचमुख हनुमत्कवचम् ॥

अस्य श्री पंचमुखहनुमन्मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः गायत्रीछंदः पंचमुखविराट् हनुमान् देवता ह्रीं बीजं श्रीं शक्तिः क्रौं कीलकं क्रूं कवचं क्रैं अस्त्राय फट् इति दिग्बंधः ।

श्री गरुड उवाच ।
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदरि ।
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ 1 ॥

पंचवक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥ 2 ॥

पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् ।
दंष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम् ॥ 3 ॥

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ 4 ॥

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुंडं महाबलम् ।
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृंतनम् ॥ 5 ॥

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् ।
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृंतनम् ॥ 6 ॥

ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवांतकरं परम् ।
येन वक्त्रेण विप्रेंद्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ 7 ॥

जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् ।
ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनूमंतं दयानिधिम् ॥ 8 ॥

खड्गं त्रिशूलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम् ।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयंतं कमंडलुम् ॥ 9 ॥

भिंदिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुंगवम् ।
एतान्यायुधजालानि धारयंतं भजाम्यहम् ॥ 10 ॥

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् ।
दिव्यमाल्यांबरधरं दिव्यगंधानुलेपनम् ।
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् ॥ 11 ॥

पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्ण-
-वक्त्रं शशांकशिखरं कपिराजवर्यम् ।
पीतांबरादिमुकुटैरुपशोभितांगं
पिंगाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥ 12 ॥

मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् ।
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ 13 ॥

हरिमर्कट मर्कट मंत्रमिदं
परिलिख्यति लिख्यति वामतले ।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं
यदि मुंचति मुंचति वामलता ॥ 14 ॥

ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशंकराय स्वाहा ।

ॐ अस्य श्री पंचमुखहनुमन्मंत्रस्य श्रीरामचंद्र ऋषिः अनुष्टुप्छंदः पंचमुखवीरहनुमान् देवता हनुमान् इति बीजं वायुपुत्र इति शक्तिः अंजनीसुत इति कीलकं श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् ।

अथ करन्यासः ।
ॐ अंजनीसुताय अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ पंचमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

अथ अंगन्यासः ।
ॐ अंजनीसुताय हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा ।
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् ।
ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् ।
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ पंचमुखहनुमते अस्त्राय फट् ।
पंचमुखहनुमते स्वाहा इति दिग्बंधः ।

अथ ध्यानम् ।
वंदे वानरनारसिंहखगराट्क्रोडाश्ववक्त्रान्वितं
दिव्यालंकरणं त्रिपंचनयनं देदीप्यमानं रुचा ।
हस्ताब्जैरसिखेटपुस्तकसुधाकुंभांकुशाद्रिं हलं
खट्वांगं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् ।

अथ मंत्रः ।
ॐ श्रीरामदूताय आंजनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय सीतादुःखनिवारणाय लंकादहनकारणाय महाबलप्रचंडाय फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्मांडविश्वरूपाय
सप्तसमुद्रनिर्लंघनाय पिंगलनयनाय अमितविक्रमाय सूर्यबिंबफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टिनिरालंकृताय संजीविनीसंजीवितांगद-लक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदाय
दशकंठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहितरामवरप्रदाय षट्प्रयोगागमपंचमुखवीरहनुमन्मंत्रजपे विनियोगः ।

ॐ हरिमर्कटमर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसंपत्कराय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तंभनाय स्वाहा ।

ॐ टंटंटंटंटं कूर्ममूर्तये पंचमुखवीरहनुमते परयंत्र परतंत्रोच्चाटनाय स्वाहा ।
ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं लंक्षं स्वाहा ।
इति दिग्बंधः ।

ॐ पूर्वकपिमुखाय पंचमुखहनुमते टंटंटंटंटं सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा ।
ॐ दक्षिणमुखाय पंचमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा ।
ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पंचमुखहनुमते मंमंमंमंमं सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ उत्तरमुखाय आदिवराहाय लंलंलंलंलं नृसिंहाय नीलकंठमूर्तये पंचमुखहनुमते स्वाहा ।
ॐ ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा ।

ॐ अंजनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय श्रीरामचंद्रकृपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय ब्रह्मांडनाथाय कामदाय पंचमुखवीरहनुमते स्वाहा ।

भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षस शाकिनीडाकिन्यंतरिक्षग्रह परयंत्र परतंत्रोच्चटनाय स्वाहा ।
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पंचमुखवीरहनुमते श्रीरामचंद्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा ।

इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः ।
एकवारं जपेत् स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ 15 ॥

द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।
त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसंपत्करं शुभम् ॥ 16 ॥

चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ।
पंचवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशंकरम् ॥ 17 ॥

षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशंकरम् ।
सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ 18 ॥

अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् ।
नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ 19 ॥

दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् ।
रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्धृवम् ॥ 20 ॥

निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः ।
कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ 21 ॥

इति सुदर्शनसंहितायां श्रीरामचंद्रसीताप्रोक्तं श्री पंचमुखहनुमत्कवचम् ।

पाठ विधि और सावधानियां

  • इस कवच का पाठ प्रातः स्नान करके, पवित्र मन और शरीर से करना चाहिए।
  • यदि संभव हो, तो इसे हनुमान मंदिर में या हनुमानजी की मूर्ति/चित्र के सामने बैठकर पढ़ें।
  • पाठ के समय शुद्ध उच्चारण का ध्यान रखें।
  • मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से इस कवच का पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
  • हनुमान जी को लाल पुष्प, चोला, गुड़-चने और तुलसी पत्र अर्पित करें।

पंचमुख हनुमत्कवचम् केवल एक स्तोत्र नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक कवच है, जो जीवन की बाधाओं को दूर कर व्यक्ति को सफलता, शक्ति और शांति प्रदान करता है। इसका नित्य पाठ भक्तों को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।

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