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श्री नर्मदा चालीसा

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श्री नर्मदा चालीसा

श्री नर्मदा चालीसा

भारत की पवित्र नदियों में से एक, नर्मदा नदी, न केवल एक जल स्रोत है, बल्कि यह हिंदू धर्म में एक देवी के रूप में पूजी जाती है। नर्मदा को जीवनदायिनी, पाप-नाशिनी और मोक्षदायिनी माना जाता है। इसी पवित्रता और महिमा को समर्पित एक भक्ति रचना है श्री नर्मदा चालीसा। यह चालीसा नर्मदा माता की स्तुति में लिखा गया एक 40 छंदों का भक्ति गीत है, जो भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक शांति प्रदान करने का माध्यम बनता है। इस लेख में हम श्री नर्मदा चालीसा के महत्व, संरचना और इसके पीछे की भावना को विस्तार से समझेंगे।

Narmada Maiya
Narmada Maiya

Shree Narmada Chalisa

|| दोहा ||

देवि पूजिता नर्मदा, महिमा बड़ी चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त अपार । उदार ॥
इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान। तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥

॥ चौपाई ॥

जय-जय-जय नर्मदा भवानी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।
अमरकण्ठ से निकलीं माता, सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।

कन्या रूप सकल गुण खानी, जब प्रकटीं नर्मदा भवानी।
सप्तमी सूर्य मकर रविवारा, अश्वनि माघ मास अवतारा।

वाहन मकर आपको साजैं, कमल पुष्प पर आप विराजैं।
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं, दर्शन करत पाप कटि जाते,

जो नर तुमको नित ही ध्यावै, मगरमच्छ तुम में सुख पावें,
तब ही मनवांछित फल पावैं। कोटि भक्त गण नित्य नहाते ।

वह नर रुद्र लोक को जावें। अन्तिम समय परमपद पावैं।
मस्तक मुकुट सदा ही साजें, पांव पैंजनी नित ही राजैं।

कल-कल ध्वनि करती हो माता, पाप ताप हरती हो माता।
पूरब से पश्चिम की ओरा, बहतीं माता नाचत मोरा ।

शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं, सूत आदि तुम्हरौ यश गावैं।
शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं, सकल देव गण तुमको ध्यावें।

कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे, ये सब कहलाते दुःख हारे।
मनोकामना पूरण करती, सर्व दुःख माँ नित ही हरतीं।

कनखल में गंगा की महिमा, कुरूक्षेत्र में सरसुति महिमा।
पर नर्मदा ग्राम जंगल में, नित रहती माता मंगल में।

एक बार करके असनाना, तरत पीढ़ी है नर नाना।
मेकल कन्या तुम ही रेवा, तुम्हरी भजन करें नित देवा ।

जटा शंकरी नाम तुम्हारा, तुमने कोटि जनों को तारा।
समोद्भवा नर्मदा तुम हो, पाप मोचनी रेवा तुम हो ।

तुम महिमा कहि नहिं जाई, करत न बनती मातु बड़ाई ।
जल प्रताप तुममें अति माता, जो रमणीय तथा सुख दाता।

चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी, महिमा अति अपार है तुम्हारी।
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी, छुवत पाषाण होत वर वारी।

यमुना में जो मनुज नहाता, सात दिनों में वह फल पाता।
सरसुति तीन दिनों में देतीं, गंगा तुरत बाद ही देतीं।

पर रेवा का दर्शन करके, मानव फल पाता मन भर के ।
तुम्हरी महिमा है अति भारी, जिसको गाते हैं नर-नारी।

जो नर तुम में नित्य नहाता, रुद्र लोक में पूजा जाता।
जड़ी बूटियां तट पर राजें, मोहक दृश्य सदा ही साजें।

वायु सुगन्धित चलती तीरा, जो हरती नर तन की पीरा।
घाट-घाट की महिमा भारी, कवि भी गा नहिं सकते सारी।

नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा, और सहारा नहीं मम दूजा।
हो प्रसन्न ऊपर मम माता, तुम ही मातु मोक्ष की दाता।

जो मानव यह नित है पढ़ता, उसका मान सदा ही बढ़ता।
जो शत बार इसे है गाता, वह विद्या धन दौलत पाता।

अगणित बार पढ़ें जो कोई, पूरण मनोकामना होई।
सबके उर में बसत नर्मदा, यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।

|| दोहा ||

भक्ति भाव उर माता जी की आनि के, जो करता है जाप। कृपा से, दूर होत सन्ताप ।।

नर्मदा नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

नर्मदा नदी मध्य भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है, जो मध्य प्रदेश के अमरकंटक पर्वत से निकलती है और गुजरात में अरब सागर में विलीन हो जाती है। पुराणों के अनुसार, नर्मदा का जन्म भगवान शिव के पसीने की बूंदों से हुआ था, जिसके कारण इसे शिव-पुत्री भी कहा जाता है। यह एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा करने की परंपरा है, जिसे “नर्मदा परिक्रमा” कहते हैं। इस परिक्रमा को करने से भक्तों के सारे पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री नर्मदा चालीसा इसी महिमा को भक्तों तक पहुंचाने का एक सरल और प्रभावशाली माध्यम है।

पाठ करने की विधि

श्री नर्मदा चालीसा का पाठ करने के लिए कुछ सामान्य नियम हैं:

  1. शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान: किसी शांत और स्वच्छ स्थान पर माता नर्मदा की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
  3. समय: प्रातःकाल या संध्या समय को सबसे उत्तम माना जाता है।
  4. सामग्री: दीपक, धूप, और फूल अर्पित कर पाठ शुरू करें।
  5. श्रद्धा: पूर्ण भक्ति और एकाग्रता के साथ चालीसा का पाठ करें।

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