Meenakshi Pancharatnam In Hindi
मीनाक्षी पंचरत्नम(Meenakshi Pancharatnam) एक अद्भुत स्तोत्र है जो देवी मीनाक्षी को समर्पित है। देवी मीनाक्षी को दक्षिण भारत में विशेष रूप से मदुरै के मीनाक्षी अम्मन मंदिर में पूजा जाता है। यह स्तोत्र उनकी महिमा, रूप, करुणा, शक्ति और अनुग्रह को वर्णित करता है।
मीनाक्षी देवी का दिव्य स्वरूप
इस स्तोत्र में मीनाक्षी को “उद्यद्भानुसहस्रकोटिसदृशां” अर्थात सहस्रों सूर्य के समान तेजस्वी बताया गया है। वे केयूर, हार और अन्य आभूषणों से अलंकृत हैं। उनका मुखमंडल पूर्ण चंद्रमा के समान है, और उनके ओष्ठ बिंब (लाल फल) के समान सुन्दर हैं। उनकी मुस्कान मोती की माला जैसी दंतपंक्ति से सुशोभित है।
उनकी पीतांबर वेशभूषा उन्हें और भी दिव्यता प्रदान करती है। उनके चरणों की सेवा विष्णु, ब्रह्मा और इंद्र जैसे देवता भी करते हैं। मीनाक्षी को “तत्त्वस्वरूपां शिवां” कहा गया है, जो यह दर्शाता है कि वे शिव की शक्ति और तत्त्वज्ञान की मूर्ति हैं।
करुणा और आशीर्वाद की देवी
मीनाक्षी को “कारुण्यवारांनिधि” अर्थात करुणा का अथाह सागर कहा गया है। वे अपने भक्तों के सभी अभिलाषाओं को पूर्ण करती हैं और भय का नाश करती हैं। वे ज्ञान प्रदान करने वाली, निर्मलता की मूर्ति और सभी की रक्षक हैं।
शक्ति और सौंदर्य का संगम
मीनाक्षी को देवी श्रीविद्या का स्वरूप माना गया है। वे “श्रीचक्र” में स्थित हैं और ब्रह्मांड की सृजनात्मक शक्ति हैं। वे “शिववामभागनिलया” हैं, अर्थात शिव के वाम भाग में स्थित हैं। उनकी छवि को देवताओं और ऋषियों ने आदरपूर्वक वंदना की है।
मिनाक्षी पंचरत्नम स्तोत्र Meenakshi Pancharatnam
उद्यद्भानुसहस्रकोटिसदृशां केयूरहारोज्ज्वलां
बिम्बोष्ठीं स्मितदन्तपङ्क्तिरुचिरां पीताम्बरालङ्कृताम्।
विष्णुब्रह्मसुरेन्द्रसेवितपदां तत्त्वस्वरूपां शिवां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।
मुक्ताहारलसत्किरीटरुचिरां पूर्णेन्दुवक्त्रप्रभां
शिञ्चन्नूपुरकिङ्किणीमणिधरां पद्मप्रभाभासुराम्।
सर्वाभीष्टफलप्रदां गिरिसुतां वाणीरमासेवितां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।
श्रीविद्यां शिववामभागनिलयां ह्रीङ्कारमन्त्रोज्ज्वलां
श्रीचक्राङ्कितबिन्दुमध्यवसतिं श्रीमत्सभानायकिम्।
श्रीमत्षण्मुखविघ्नराजजननीं श्रीमज्जगन्मोहिनीं
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।
श्रीमत्सुन्दरनायकीं भयहरां ज्ञानप्रदां निर्मलां
श्यामाभां कमलासनार्चितपदां नारायणस्यानुजाम्।
वीणावेणुमृदङ्गवाद्यरसिकां नानाविधाडम्बिकां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।
नानायोगिमुनीन्द्रहृन्निवसतीं नानार्थसिद्धिप्रदां
नानापुष्पविराजिताङ्घ्रियुगलां नारायणेनार्चिताम्।
नादब्रह्ममयीं परात्परतरां नानार्थतत्त्वात्मिकां
मीनाक्षीं प्रणतोऽस्मि सन्ततमहं कारुण्यवारांनिधिम्।
मीनाक्षी उन सभी योगियों और मुनियों के हृदय में निवास करती हैं, जो ध्यान और साधना में लीन रहते हैं। वे भक्तों को नाना प्रकार की सिद्धियां और फल प्रदान करती हैं। उनके चरण नाना पुष्पों से सुशोभित हैं। वे नादब्रह्म का स्वरूप हैं और संपूर्ण ब्रह्मांड की परा शक्ति हैं।
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र क्या है?
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र देवी मीनाक्षी की महिमा का वर्णन करने वाला एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जिसे श्री आदि शंकराचार्य ने रचा है।
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र का पाठ कब और क्यों किया जाता है?
इस स्तोत्र का पाठ प्रायः श्रद्धालु देवी मीनाक्षी की कृपा पाने, मानसिक शांति प्राप्त करने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए करते हैं। इसे प्रातःकाल या पूजा के समय करना शुभ माना जाता है।
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र में कुल कितने श्लोक हैं?
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र में कुल पाँच श्लोक हैं, जो देवी की महिमा और गुणों का वर्णन करते हैं।
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र का मूल भाव क्या है?
इसका मूल भाव देवी मीनाक्षी को परम शक्ति और जगत की संरक्षिका के रूप में स्तुति करना है। इसमें उनकी करुणा, सौंदर्य, और दैवीय शक्ति का गुणगान किया गया है।
मीनाक्षी पंचरत्नम् स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ होता है?
इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति, आत्मिक शक्ति, और देवी मीनाक्षी की कृपा प्राप्त होती है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि आती है।