मणिकंठ अष्टकम्
मणिकंठ अष्टकम्(Manikantha Ashtakam) एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान अय्यप्पा को समर्पित है। भगवान अय्यप्पा को दक्षिण भारत में विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु में अत्यधिक श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। इन्हें ‘हरिहरपुत्र’ कहा जाता है, क्योंकि वे भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार के पुत्र माने जाते हैं। इस स्तोत्र की रचना भक्तों ने भगवान अय्यप्पा की महिमा का गुणगान करने के लिए की थी।
नाम की उत्पत्ति
भगवान अय्यप्पा को ‘मणिकंठ’ नाम से भी जाना जाता है। इस नाम का अर्थ है—
- मणि (रत्न) + कंठ (गला) = जिसके कंठ में दिव्य मणि है
ऐसा माना जाता है कि जब भगवान अय्यप्पा का जन्म हुआ, तो उनके कंठ में एक दिव्य मणि (रत्न) थी, जिससे उनका यह नाम पड़ा।
मणिकंठ अष्टकम का महत्व
- भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति – जो भी श्रद्धालु इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति – भगवान अय्यप्पा के ध्यान और गुणगान से व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से उन्नत होता है।
- संकट निवारण – जीवन में आने वाली परेशानियाँ और बाधाएँ दूर होती हैं।
- स्वास्थ्य एवं बल – यह स्तोत्र व्यक्ति के मन और शरीर को मजबूत बनाता है।
- साबरिमाला यात्रा में विशेष महत्व – यह स्तोत्र खासतौर पर उन भक्तों द्वारा गाया जाता है जो अय्यप्पा स्वामी के प्रसिद्ध तीर्थस्थल साबरिमाला की यात्रा पर जाते हैं।
मणिकंठ अष्टकम का पाठ विधि
- सूर्योदय से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- किसी पवित्र स्थान पर दीपक जलाएँ और भगवान अय्यप्पा का ध्यान करें।
- इस अष्टकम का श्रद्धा और भक्ति से पाठ करें।
- अंत में भगवान अय्यप्पा के मंत्र “स्वामीये शरणम अय्यप्पा” का 108 बार जाप करें।
Manikantha Ashtakam
हरिकलभतुरङ्गतुङ्गवाहनं हरिमणिमोहनहारचारुदेहम्।
हरिदधीपनतं गिरीन्द्रगेहं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयामि।
निरुपम परमात्मनित्यबोधं गुरुवरमद्भुतमादिभूतनाथम्।
सुरुचिरतरदिव्यनृत्तगीतं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयामि।
अगणितफलदानलोलशीलं नगनिलयं निगमागमादिमूलम्।
अखिलभुवनपालकं विशालं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयामि।
घनरसकलभाभिरम्यगात्रं कनककरोज्वल कमनीयवेत्रम्।
अनघसनकतापसैकमित्रं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयामि।
सुकृतसुमनसां सतां शरण्यं सकृदुपसेवकसाधुलोकवर्ण्यम्।
सकलभुवनपालकं वरेण्यं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयामि।
विजयकर विभूतिवेत्रहस्तं विजयकरं विविधायुध प्रशस्तम्।
विजित मनसिजं चराचरस्थं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयेहम्।
सकलविषयमहारुजापहारं जगदुदयस्थितिनाशहेतुभूतम्।
अगनगमृगयामहाविनोदं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयेहम्।
त्रिभुवनशरणं दयापयोधिं प्रभुममराभरणं रिपुप्रमाथिम्।
अभयवरकरोज्ज्वलत्समाधिं हरिहरपुत्रमुदारमाश्रयेहम्।
जयजय मणिकण्ठ वेत्रदण्ड जय करुणाकर पूर्णचन्द्रतुण्ड।
जयजय जगदीश शासिताण्ड जयरिपुखण्ड वखण्ड चारुखण्ड।
अष्टकम के लाभ
- आध्यात्मिक शांति – नित्य पाठ करने से मानसिक शांति और आंतरिक संतोष प्राप्त होता है।
- साहस और शक्ति – भगवान अय्यप्पा की कृपा से व्यक्ति को जीवन में साहस और आत्मबल मिलता है।
- सकारात्मक ऊर्जा – यह स्तोत्र घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
- रोग निवारण – इसे पढ़ने से रोग और शारीरिक कष्टों में राहत मिलती है।
- मोक्ष प्राप्ति – भगवान अय्यप्पा के भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।