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मंगलवार, जून 3, 2025

श्री कृष्ण चालीसा

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Shri Krishna Chalisa

श्री कृष्ण चालीसा भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा का एक सुंदर भक्ति काव्य है। यह चालीसा 40 छंदों (चौपाइयों) का एक संग्रह है, जो श्री कृष्ण के गुणों, लीलाओं और महिमा का वर्णन करता है। यह भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक उपकरण है, जिसके पाठ से मन को शांति, आत्मिक बल और प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। इस लेख में हम श्री कृष्ण चालीसा के इतिहास, महत्व, संरचना, और इसके आध्यात्मिक प्रभाव के बारे में विस्तार से जानेंगे।

चालीसा एक पारंपरिक भक्ति काव्य शैली है, जिसमें 40 छंद होते हैं। यह शब्द “चालीस” (40) से लिया गया है। श्री कृष्ण चालीसा विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है, जो हिंदू धर्म में विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। वे प्रेम, ज्ञान, कर्मयोग और भक्ति के प्रतीक हैं। इस चालीसा का पाठ भक्तों द्वारा श्री कृष्ण के जीवन की लीलाओं को स्मरण करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

श्री कृष्ण चालीसा का मूल लेखक स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि इसे किसी भक्त कवि ने भक्ति भाव से लिखा होगा। यह हिंदी और अवधी जैसी लोक भाषाओं में प्रचलित है, जिससे आम जन इसे आसानी से गा सकें और समझ सकें।

श्री कृष्ण चालीसा

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम ॥
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्ण चन्द्र महाराज ॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन ।
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे।

जय नटनागर नाग नथड्या, कृष्ण कन्हैया धेनु चरड्या।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो।

बंशी मधुर अधर धरि टेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी।
आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो।

गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।
रंजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट बैजन्ती माला।

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे।
नील जलज सुन्दर तनु सोहै, छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै।

मस्तक तिलक अलक घुँघराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले।
करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागा सुर मारयो।

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला ।
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई, मूसर धार वारि वर्षाई।

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायों।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख मँह चौदह भुवन दिखाई।

दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मँगायो ।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हें।

करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करि अभिलाषा ।
केतिक महा असुर संहारियो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ।

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहँ राज दिलाई।
महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो ।

भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दस सहस कुमारी।
दें भीमहिं तृणचीर संहारा, जरासिंधु राक्षस कहँ मारा।

असुर बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो ।
दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूठि मुख डारयो ।

प्रेम के साग विदुर घर माँगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे ।
लखी प्रेमकी महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी।

मारथ के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थांके।
निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन हृदय सुधा वर्षाये।

मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजा कर ताली।
राणा भेजा साँप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी ।

निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उरते संशय सकल मिटायो ।
तव शत निन्दा करि तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला।

जबहिं द्रोपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई।
तुरतहि वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भये अरि मुँह काला।

अस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भँवर बचावत नइया।
सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी।

नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहुबेगि अपराध हमारो ।
खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जय।

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहै पदारथ चरि ॥

श्री कृष्ण चालीसा का महत्व

  • आध्यात्मिक शक्ति: इस चालीसा का नियमित पाठ करने से मन में शांति और सकारात्मकता आती है। यह भक्त को श्री कृष्ण के प्रति समर्पण और विश्वास की ओर ले जाता है।
  • लीलाओं का स्मरण: यह चालीसा श्री कृष्ण की बाल लीलाओं (जैसे माखन चोरी), रास लीला, कंस वध, और गीता उपदेश जैसी घटनाओं को याद दिलाती है।
  • संकट निवारण: मान्यता है कि श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने से जीवन के संकट, दुख और दरिद्रता दूर होती है।
  • भक्ति भाव का विकास: यह भक्तों के हृदय में प्रेम और भक्ति की भावना को जागृत करता है, जो श्री कृष्ण का प्रिय गुण है।

श्री कृष्ण चालीसा का पाठ कैसे करें?

  1. शुद्धता: पाठ से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान: श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें। एक दीपक और धूप जलाएं।
  3. समय: प्रात:काल या संध्या समय सबसे उत्तम माना जाता है।
  4. श्रद्धा: पूरे मन और भक्ति भाव से पाठ करें।
  5. संकल्प: पाठ से पहले अपनी मनोकामना या प्रार्थना श्री कृष्ण के समक्ष रखें।

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