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बुधवार, अगस्त 13, 2025

केतु ग्रह मंत्र

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केतु ग्रह मंत्र

केतु(Ketu Mantra) भारतीय ज्योतिषशास्त्र में एक छाया ग्रह है। जो राहु के साथ मिलकर ग्रहों की सूची में गिना जाता है। इसका कोई भौतिक शरीर नहीं है, लेकिन यह व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन, मोक्ष, रहस्य, परा-विज्ञान, ध्यान, त्याग, अकस्मात घटित घटनाओं और अतीन्द्रिय शक्तियों से जुड़ा हुआ माना जाता है। केतु को राहु का पूरक ग्रह माना गया है जहाँ राहु व्यक्ति को सांसारिक बंधनों की ओर खींचता है, वहीं केतु उससे मुक्ति की ओर ले जाता है।

केतु की पौराणिक कथा

केतु का जन्म समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है। जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था और अमृत प्राप्त हुआ, तब एक असुर ने छल से अमृत पी लिया। यह देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस असुर का सिर और धड़ अलग कर दिया।

  • सिर वाला भाग ‘राहु’ बना।
  • धड़ वाला भाग ‘केतु’ बना।

इस कारण राहु और केतु को छाया ग्रह कहा जाता है और इनका शरीर नहीं होता।

ketu Grah Mantra

केतु का ज्योतिष में स्थान

  • यह किसी भी राशि में लगभग 18 महीनों तक रहता है।
  • केतु को ‘पिछले जन्मों का कर्मफल’ माना जाता है।
  • यह ग्रह व्यक्ति के मोक्ष, वैराग्य, आध्यात्मिकता, त्याग, तपस्या, और अदृश्य शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है।

विनियोग : Ketu Mantra

ॐ अस्य श्री केतु मंत्रस्य, शुक्र ऋषि:, पंक्तिछंद:, केतु देवता, कें बीजं, छाया शक्ति:, श्री केतु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः

केतु ध्यान मंत्र – Ketu Dhyan Mantra

अनेक रुपवर्णश्र्व शतशोऽथ सहस्रश: ।

उत्पात रूपी घोरश्र्व पीड़ा दहतु मे शिखी ॥

गायत्री मंत्र : – Ketu Gayatri Mantra

॥ ॐ पद्मपुत्राय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात ॥

केतु सात्विक मंत्र – Ketu Shanti Mantra

॥ ॐ कें केतवे नम: ॥

यदि किसी व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक अशांति हो रही हो, निर्णय क्षमता कमजोर हो गई हो, तो यह सरल मंत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है।

केतु तांत्रोक्त मंत्र

केतु: काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णक: ।
लोककेतुर्महाकेतु: सर्वकेतुर्भयप्रद: ॥1॥

रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्र: क्रूरकर्मा सुगन्धृक् ।
फलाशधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक्  ॥2॥

तारागणविमर्दो च जैमिनेयो ग्रहाधिप: ।
पञ्चविंशति नामानि केतुर्य: सततं पठेत् ॥3॥

तस्य नश्यंति बाधाश्च सर्वा: केतुप्रसादत: ।
धनधान्यपशुनां च भवेद् वृद्धिर्न  संशय: ॥4॥

केतु कवचम् के पाठ के लिए यहाँ जाए

केतु का भावों में प्रभाव संक्षेप में

भाव (हाउस)प्रभाव
प्रथम (लग्न)आध्यात्मिक, रहस्यमय व्यक्तित्व, आत्मनिरीक्षण
द्वितीयपरिवार से दूरी, वाणी में कटुता या मौन प्रवृत्ति
तृतीयसाहसी परंतु एकाकी स्वभाव
चतुर्थमाता से दूरी, घर से विरक्ति
पंचमसंतान संबंधी चिंता, गुप्त विद्या की रुचि
षष्ठरोगों पर विजय, लेकिन मानसिक अशांति
सप्तमवैवाहिक जीवन में वियोग या तनाव
अष्टमगूढ़ विषयों में रुचि, मृत्यु-बोध, रहस्य
नवमधर्म में गहराई, गुरु से दूरी
दशमकरियर में अचानक उतार-चढ़ाव
एकादशआशाओं में भ्रम, अस्थिर लाभ
द्वादशमोक्ष का संकेत, एकांतवास की रुचि

केतु से जुड़े प्रतीक

  • रंग: धुंधला, धूसर, राखीला
  • दिशा: दक्षिण-पश्चिम
  • धातु: लोहा
  • दिन: मंगलवार
  • देवता: गणेश, भैरव
  • पशु: कुत्ता
  • राशि स्वामित्व: वृश्चिक राशि में उच्च, वृषभ में नीच

केतु मंत्र जप विधि

  1. स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. मंगलवार या शनिवार का दिन उपयुक्त होता है।
  3. केतु यंत्र या उसका प्रतीक रखकर दीपक जलाएं।
  4. मंत्र जप से पूर्व संकल्प लें और पूर्ण श्रद्धा से जप करें।
  5. काली वस्तुओं जैसे उड़द, काला तिल, काली मिर्च का दान करें।
  6. मंत्र जप के बाद शिव या गणेश जी का पूजन करें।

केतु मंत्र जप के लाभ

  1. केतु की महादशा या अंतर्दशा के कुप्रभाव को कम करता है।
  2. आकस्मिक घटनाओं, दुर्घटनाओं या मानसिक भ्रम से राहत मिलती है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति और आत्म-साक्षात्कार में सहायता करता है।
  4. जन्मकुंडली में यदि केतु 6वें, 8वें या 12वें भाव में हो तो मंत्र जप बहुत उपयोगी है।
  5. केतु से संबंधित रोग जैसे स्किन डिजीज, फोड़े-फुंसी, पैरों की समस्या, फोबिया, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा मिलती है।
  6. शत्रु बाधा, कोर्ट केस, भय और अवसाद से मुक्ति दिलाता है।

विशेष उपाय

  • केतु दोष शांति हेतु गोमेद या लहसुनिया रत्न पहनना शुभ होता है (ज्योतिषीय परामर्श के बाद)।
  • कुत्ते को भोजन देना, विशेषकर काले कुत्ते को, शुभ फल देता है।
  • केतु से प्रभावित व्यक्ति को आध्यात्मिक साधना, ध्यान और सेवा कार्यों में लगना चाहिए।
  • हनुमान चालीसा, शिव चालीसा या गणेश जी का जाप केतु की शांति में सहायक होता है।

कब करें केतु मंत्र जप:

  • केतु की दशा, अंतर्दशा या केतु दोष हो।
  • अचानक हानि, भ्रम, भय, अस्थिरता, संतान संबंधी बाधा हो।
  • राहु-केतु की युति से उत्पन्न कालसर्प दोष हो।
  • संतान की शिक्षा, ध्यान या आचरण में विकृति हो।
  • बार-बार चिकित्सा में असफलता या रहस्यमयी रोग हो।

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