शिवपंचाक्षरस्तोत्र का परिचय Shivapanchakshar Stotra
शिवपंचाक्षरस्तोत्र एक अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान शिव की आराधना और स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। “पंचाक्षर” शब्द का अर्थ है “पांच अक्षरों वाला,” और इस स्तोत्र में शिव के पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” की महिमा का वर्णन किया गया है।
शिवपंचाक्षरस्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के विभिन्न रूपों, गुणों और उनके दिव्य प्रभाव का उल्लेख किया गया है। इस स्तोत्र में कुल पाँच श्लोक होते हैं, जो शिव के पंचाक्षर मंत्र के प्रत्येक अक्षर पर आधारित हैं – “न”, “म”, “शि”, “वा”, और “य”। यह पाँच अक्षर पंचभूतों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी) का भी प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनसे सृष्टि का निर्माण हुआ है।
शिवपंचाक्षरस्तोत्र का महत्व: Importance of Shivapanchakshar Stotra
- आध्यात्मिक उन्नति: शिवपंचाक्षरस्तोत्र का नियमित पाठ करने से मनुष्य की आत्मिक उन्नति होती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मिलता है।
- मन की शांति: इस स्तोत्र का उच्चारण मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है। यह स्तोत्र व्यक्ति को ध्यान और साधना में गहराई तक पहुँचाने में सहायक होता है।
- कष्टों का निवारण: शिव की आराधना के माध्यम से भक्त अपने जीवन में आने वाले सभी कष्टों और बाधाओं को दूर कर सकता है।
- भगवान शिव की कृपा: इस स्तोत्र का पाठ भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है। इसे पढ़ने से शिवभक्त को भगवान शिव के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
शिवपंचाक्षरस्तोत्र का पाठ करने के नियम: Rules of Reading Shivapanchakshar Stotra Sloka
- शिवपंचाक्षरस्तोत्र का पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय शांत मन से करना चाहिए।
- पाठ के समय भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीप जलाकर श्रद्धापूर्वक ध्यान करना चाहिए।
- इस स्तोत्र का उच्चारण स्पष्ट और सही ढंग से करने से इसके पूर्ण फल की प्राप्ति होती है।
शिवपंचाक्षरस्तोत्र भगवान शिव की असीम महिमा का एक उत्कृष्ट स्तोत्र है, जिसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ने पर व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति और शांति की अनुभूति होती है। यह स्तोत्र भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र की शक्ति और महत्ता को उजागर करता है, जिससे भक्त को शिव की कृपा प्राप्त होती है।
शिवपंचाक्षरस्तोत्र Shivapanchakshar Stotra
ॐ नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्माङरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै ‘न’काराय नमःशिवाय ॥१ ॥
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय
नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्प्बहुपुष्पसुपूजिताय
तस्मै ‘म’काराय नमःशिवाय ॥२ ॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै ‘शि’काराय नमःशिवाय ॥३ ॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय
तस्मै ‘व’काराय नमःशिवाय ॥४ ॥
यक्षस्वरुपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै ‘य’काराय नमःशिवाय ॥५ ॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥६ ॥
इति श्रीमद् शन्कराचार्यविरचितं शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पुर्णम ।