कनकधारा स्तोत्र(Kanakadhara Stotra) आदिशंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसमें देवी लक्ष्मी की महिमा का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति के जीवन में धन, समृद्धि और सुख-शांति लाने वाला माना गया है। इसका नाम “कनकधारा” इस तथ्य से लिया गया है कि इसका पाठ करते समय देवी लक्ष्मी की कृपा से स्वर्ण (कनक) की वर्षा होने की मान्यता है।
कनकधारा स्तोत्र रचना की पृष्ठभूमि
कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य बाल्यावस्था में ही अपने शिष्यों के साथ भिक्षा मांगने निकले। एक निर्धन ब्राह्मण परिवार ने उन्हें श्रद्धापूर्वक भिक्षा देने का प्रयास किया, लेकिन उनके पास केवल एक सूखा आंवला था। उन्होंने वह भी शंकराचार्य को दे दिया। ब्राह्मणी की इस नि:स्वार्थ भक्ति से प्रभावित होकर शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कनकधारा स्तोत्र की रचना की। देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुईं और उस निर्धन परिवार को धन-धान्य से भरपूर कर दिया।
कनकधारा स्तोत्र की विशेषता
कनकधारा स्तोत्र कुल 21 श्लोकों का संग्रह है, जिसमें देवी लक्ष्मी की विभिन्न स्वरूपों में स्तुति की गई है। प्रत्येक श्लोक में देवी के गुण, शक्ति और कृपा का वर्णन किया गया है। इन श्लोकों में अद्वितीय काव्यशैली, समर्पण और भक्ति भाव झलकता है।
कनकधारा स्तोत्र का महत्व Kanakadhara Stotra Importance
- धन और समृद्धि प्राप्ति: मान्यता है कि इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में धन और समृद्धि का वास होता है।
- विपत्तियों का नाश: इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ने से जीवन की कठिनाइयाँ और आर्थिक संकट समाप्त होते हैं।
- कर्म और भक्ति का संगम: यह स्तोत्र यह सिखाता है कि देवी लक्ष्मी केवल समर्पण और कर्मठता से ही प्रसन्न होती हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: स्तोत्र का पाठ व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद प्रदान करता है।
कनकधारा स्तोत्र पाठ विधि
- सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ स्थान पर बैठें।
- देवी लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक जलाएं।
- कनकधारा स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और मन की एकाग्रता के साथ करें।
- पाठ के बाद देवी लक्ष्मी से कृपा और आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
कनकधारा स्तोत्र Kanakadhara Stotra
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्
आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः।
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेः
धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिः
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः।
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावात्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षम्
मआनन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धम्
इन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः।
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र-
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः।
दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्
अस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः।
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै।
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै।
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै।
नमोऽस्तु हेमामबुजपीठिकाये
नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै।
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै।
नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै
नमोऽस्त्वनन्तात्मजवल्लभायै।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये।
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
सन्तनोति वचनाङ्गमानसै-
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट-
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष-
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम्।
कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः।
देवि प्रसीद जगदीश्वरि लोकमातः
कल्याणगात्रि कमलेक्षणजीवनाथे।
दारिद्र्यभीतहृदयं शरणागतं माम्
आलोकय प्रतिदिनं सदयैरपाङ्गैः।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः।
कनकधारा स्तोत्र पर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs for Kanakadhara Stotra)
कनकधारा स्तोत्र क्या है?
कनकधारा स्तोत्र आदिशंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तुति है, जो माता लक्ष्मी की स्तुति और कृपा पाने के लिए गायी जाती है। यह स्तोत्र 21 श्लोकों का संग्रह है, जिसमें धन, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की गई है।
कनकधारा स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
कनकधारा स्तोत्र का पाठ सुबह के समय, स्नान के बाद, शुद्ध मन से करना सबसे शुभ माना जाता है। पूजा स्थल पर दीप जलाकर माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने पाठ करें। यदि संभव हो, तो शुक्रवार के दिन या दीपावली जैसे विशेष अवसरों पर इसका पाठ विशेष फलदायक माना जाता है।
कनकधारा स्तोत्र का महत्व क्या है?
कनकधारा स्तोत्र का महत्व धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति में है। यह स्तोत्र न केवल आर्थिक समस्याओं को दूर करने में सहायक है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है। मान्यता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
क्या कनकधारा स्तोत्र का पाठ किसी विशेष समस्या के समाधान के लिए किया जा सकता है?
जी हां, कनकधारा स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से आर्थिक समस्याओं, कर्ज, और धन की कमी को दूर करने के लिए किया जा सकता है। यह उन लोगों के लिए भी प्रभावी माना जाता है, जो अपनी मेहनत के अनुसार सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करते समय शुद्धता और एकाग्रता का विशेष ध्यान रखें। पाठ से पहले स्नान करें और शांत मन से माता लक्ष्मी की आराधना करें। पाठ के दौरान किसी भी नकारात्मक विचार से बचें और पूरे विश्वास के साथ स्तोत्र का उच्चारण करें।