कामाख्या माता हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें शक्ति (दुर्गा) के एक रूप में पूजा जाता है। यह देवी विशेष रूप से असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर से जुड़ी हुई हैं, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। कामाख्या माता को प्रजनन, उर्वरता, प्रेम और शक्ति की देवी माना जाता है।
कामाख्या मंदिर से जुडी पौराणिक कथा Legend related to Kamakhya Temple
कामाख्या माता से जुड़ी पौराणिक कथा में यह कहा जाता है कि देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किए जाने पर यज्ञ के दौरान स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया था। इससे दुखी होकर शिव ने सती का मृत शरीर उठाया और तांडव नृत्य करने लगे, जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए, जो पृथ्वी के विभिन्न हिस्सों में गिरे। इन स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है, और कामाख्या शक्तिपीठ वह स्थान है जहां सती की योनि (गर्भाशय) गिरी थी। इस कारण से कामाख्या माता को उर्वरता और सृजन की देवी माना जाता है।
कामाख्या माता का पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों में उल्लेख Kamakhya Mata mentioned in Puranas and Tantric texts
कामाख्या माता का उल्लेख वेदों में नहीं मिलता, लेकिन पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों में उनका उल्लेख विशेष रूप से मिलता है। कामाख्या देवी को हिंदू धर्म के शक्तिवाद और तंत्रमार्ग का प्रमुख रूप माना जाता है, और उनसे जुड़े उल्लेख खासतौर पर कल्पुराण, तंत्रचूड़ामणि, और कालिका पुराण जैसे ग्रंथों में देखे जा सकते हैं।
तंत्रचूड़ामणि: Tantrachudamani
कामाख्या देवी का उल्लेख तंत्रचूड़ामणि नामक तांत्रिक ग्रंथ में भी मिलता है। इस ग्रंथ में देवी को सृजन और कामनाओं की पूर्ति की देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। यह ग्रंथ भी तांत्रिक साधना से संबंधित है, और इसमें कामाख्या देवी की पूजा और साधना से संबंधित तंत्र विधियों का वर्णन है। तंत्रचूड़ामणि में देवी को उर्वरता और सृजन की शक्ति का स्रोत बताया गया है, और यह भी वर्णित है कि उनकी पूजा से साधकों को तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं।
कालिका पुराण: Kalika Purana
कामाख्या माता का सबसे प्रमुख उल्लेख कालिका पुराण में मिलता है, जो 10वीं शताब्दी का एक प्रमुख ग्रंथ है और शक्ति पूजा से संबंधित है। इस पुराण में कामाख्या देवी को उर्वरता, प्रजनन और शक्ति की देवी के रूप में दर्शाया गया है। इसमें कामाख्या शक्तिपीठ की उत्पत्ति और पूजा विधि का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। कालिका पुराण के अनुसार, कामाख्या मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहाँ देवी सती का गर्भाशय गिरा था, और इसलिए यह स्थान अत्यंत पवित्र और शक्तिपीठों में प्रमुख है। यहाँ देवी की पूजा तांत्रिक पद्धति से की जाती है।
कालिका पुराण में यह भी उल्लेख है कि कामाख्या देवी तंत्र साधना की प्रमुख देवी हैं, और उनकी पूजा विशेष रूप से तांत्रिक साधकों द्वारा की जाती है। इसमें उनके पूजा विधान, बलि, और साधनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है, जो तंत्रमार्ग में उनकी विशेष महत्ता को दर्शाता है।
अन्य उल्लेख:
कामाख्या देवी का पौराणिक वर्णन शक्ति पीठ की कथा से जुड़ा हुआ है, जिसे विभिन्न पुराणों, जैसे शिवपुराण, स्कंद पुराण और देवी भागवत में उल्लेखित किया गया है। इनमें देवी सती और भगवान शिव की कथा आती है, जिसमें सती के अंगों के गिरने से शक्तिपीठों का निर्माण होता है। कामाख्या उन 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ देवी सती का गर्भाशय गिरा था।
धार्मिक महत्व:
कामाख्या माता की पूजा तांत्रिक विधि से की जाती है। उन्हें सृजन की शक्ति का प्रतीक माना जाता है और उनकी पूजा विशेष रूप से तांत्रिक साधकों द्वारा की जाती है। यह मंदिर तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और भक्त यहाँ देवी से संतान प्राप्ति, उर्वरता और जीवन में शक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
कामाख्या देवी को लेकर सबसे विशेष बात यह है कि मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है। यहाँ एक प्राकृतिक योनि आकार की चट्टान है, जिसे देवी का प्रतीक माना जाता है। यह चट्टान हमेशा गीली रहती है और इसे पवित्र जल से सिंचित किया जाता है। विशेष रूप से जून महीने में होने वाला “अंबुबाची मेला” इस मान्यता से जुड़ा है कि देवी रजस्वला होती हैं। यह मेला देवी की रजस्वला अवस्था का प्रतीक है, जब मंदिर के दरवाजे तीन दिनों तक बंद रहते हैं।
तांत्रिक साधना में भूमिका:
कामाख्या देवी को तांत्रिक देवी के रूप में भी पूजा जाता है। तांत्रिक पूजा पद्धति में उनकी बड़ी मान्यता है और उन्हें साधना के माध्यम से सिद्धियाँ प्राप्त करने वाली देवी के रूप में देखा जाता है। तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए कामाख्या माता की पूजा और साधना का विशेष महत्व है।
पूजा विधि और पर्व:
मूल पूजा: कामाख्या माता की साधारण पूजा में फूल, फल, दीप, धूप, और सिंदूर का उपयोग किया जाता है। तांत्रिक साधना में खास तौर पर बली चढ़ाने का भी प्रावधान है, जिसे देवी को समर्पित किया जाता है।
अंबुबाची मेला Ambubachi Mela: यह कामाख्या मंदिर का सबसे बड़ा पर्व है, जो हर साल जून महीने में मनाया जाता है। इस दौरान यह माना जाता है कि देवी मासिक धर्म से गुजर रही हैं, और इस अवधि में मंदिर के द्वार बंद रहते हैं। जब मंदिर के द्वार पुनः खुलते हैं, तो हजारों भक्त देवी के दर्शन के लिए आते हैं।
दुर्गा पूजा Durga Puja: नवरात्रि के समय कामाख्या माता की पूजा विशेष रूप से होती है, जहाँ देवी के नौ रूपों की आराधना की जाती है।
देवी कामाख्या का प्रतीक Symbol of Goddess Kamakhya:
कामाख्या देवी का नाम “काम” (इच्छा) और “अख्या” (जो पूरी हो) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है “वह देवी जो इच्छाओं को पूरा करती हैं।” उन्हें कामना और रति का प्रतीक माना जाता है, और उनकी पूजा विशेष रूप से भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। उन्हें प्रेम, शक्ति, प्रजनन और सृजन की देवी माना जाता है।
कामाख्या माता की आरती Maa Kamakhya Aarti
आरती कामाक्षा देवी की।
जगत् उधारक सुर सेवी की॥ आरती…
गावत वेद पुरान कहानी।
योनिरुप तुम हो महारानी॥
सुर ब्रह्मादिक आदि बखानी।
लहे दरस सब सुख लेवी की॥ आरती…
पूरी आरती के लिए लिस लिंक पर जाए . Click Here
कामाख्या मन्दिर तक जाने की संपूर्ण जानकारी Complete information to reach Kamakhya Temple
कामाख्या मंदिर भारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर के पास नीलांचल पर्वत पर स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है।
कामाख्या मंदिर कैसे पहुँचे: How to reach Kamakhya Temple:
गुवाहाटी असम का प्रमुख शहर है और यहाँ तक पहुँचने के कई साधन उपलब्ध हैं:
- वायु मार्ग: गुवाहाटी का हवाई अड्डा, लोकप्रिया गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, मंदिर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यह हवाई अड्डा भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
- रेल मार्ग: गुवाहाटी रेलवे स्टेशन देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है।
- सड़क मार्ग: गुवाहाटी भारत के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़ा हुआ है। आप गुवाहाटी बस स्टेशन से टैक्सी या ऑटो लेकर मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
कामाख्या मंदिर यात्रा के लिए उपयुक्त समय: Best Time to Visit Kamakhya Temple
कामाख्या मंदिर की यात्रा का सबसे अच्छा समय सर्दियों के महीनों (अक्टूबर से मार्च) के दौरान होता है, जब मौसम सुखद और ठंडा रहता है। हालांकि, अगर आप अंबुबाची मेले के दौरान मंदिर जाना चाहते हैं, तो जून का महीना उपयुक्त होता है, लेकिन इस दौरान मंदिर के दर्शन करने के लिए बड़ी भीड़ होती है।
कामाख्या मंदिर में क्या करें और क्या न करें: Do’s and Don’ts in Kamakhya Temple
- पूजा का समय: मंदिर के खुलने का समय सुबह 5:30 बजे से शाम 10:00 बजे तक है। ध्यान रहे कि अंबुबाची मेले के दौरान चार दिनों तक मंदिर के द्वार बंद रहते हैं।
- ड्रेस कोड: मंदिर में जाते समय आपको उचित पारंपरिक परिधान पहनने की सलाह दी जाती है, ताकि मंदिर की पवित्रता का सम्मान हो।
- तांत्रिक साधना का केंद्र: अगर आप तांत्रिक साधना में रुचि रखते हैं, तो यह मंदिर एक महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन इस साधना के लिए उपयुक्त गुरु या मार्गदर्शन आवश्यक है।
अन्य आकर्षण:
कामाख्या मंदिर के पास कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जैसे:
- उमानंद मंदिर Umananda Temple: ब्रह्मपुत्र नदी के छोटे से द्वीप पर स्थित यह मंदिर शिव को समर्पित है।
- नवग्रह मंदिर Navagraha Temple: यह मंदिर ज्योतिष और नवग्रहों की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
- अंबुबाची मेला Ambubachi Fair: अंबुबाची मेला मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो हर साल जून महीने में चार दिनों तक मनाया जाता है। इस मेले के दौरान, मंदिर के द्वार बंद रहते हैं और देवी के “रजस्वला” होने की मान्यता के कारण कोई पूजा-अर्चना नहीं होती। यह मेला तांत्रिक साधना का भी बड़ा केंद्र है, जहां साधु-संतों और तांत्रिकों का आगमन होता है। इस समय लाखों श्रद्धालु मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं।
कामाख्या मंदिर अपने आध्यात्मिक महत्व और धार्मिक मान्यताओं के कारण न केवल असम बल्कि पूरे भारत के भक्तों का ध्यान आकर्षित करता है।