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शुक्रवार, दिसम्बर 27, 2024

Govindashtakam श्री गोविन्दाष्टकम

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श्री गोविन्दाष्टकम एक प्रसिद्ध वैष्णव स्तोत्र है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के गोविन्द रूप की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। इसमें आठ श्लोकों के माध्यम से भगवान गोविन्द के गुण, महिमा और उनकी भक्ति का वर्णन किया गया है। गोविन्द का अर्थ है “गायों के संरक्षक” और “संसार के पालनकर्ता।”

श्री गोविन्दाष्टकम भगवान के उन गुणों को प्रकट करता है, जिनसे भक्त उनके प्रति प्रेम और समर्पण का अनुभव करता है। यह स्तोत्र भक्ति-योग का एक माध्यम है, जिससे भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

श्री गोविन्दाष्टकम का महत्व Importance of Govindashtakam

श्री गोविन्दाष्टकम न केवल भगवान की स्तुति करता है, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता को भी बढ़ावा देता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति, ईश्वर के प्रति प्रेम, और भक्ति मार्ग में प्रगति होती है। गोविन्दाष्टकम का पाठ व्यक्ति को सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर भगवान की शरण में लाता है।

श्री गोविन्दाष्टकम Govindashtakam

सत्यं ज्ञानमनन्तं नित्यमनाकाशं परमाकाशं
गोष्ठप्राङ्गणरिङ्खण-
लोलमनायासं परमायासम्।
मायाकल्पित-
नानाकारमनाकारं भुवनाकारं
क्ष्मामानाथमनाथं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

मृत्स्नामत्सीहेति यशोदाताडनशैशवसन्त्रासं
व्यादितवक्त्रालोकित-
लोकालोकचतुर्दशलोकालिम्।
लोकत्रयपुरमूलस्तम्भं लोकालोकमनालोकं
लोकेशं परमेशं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

त्रैविष्टपरिपुवीरघ्नं क्षितिभारघ्नं भवरोगघ्नं
कैवल्यं नवनीताहारमनाहारं भुवानाहारम्।
वैमल्यस्फुटचेतोवृत्ति-
विशेषाभासमनाभासं
शैवं केवलशान्तं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

गोपालं प्रभुलीलाविग्रहगोपालं कुलगोपालं
गोपीखेलनगोवर्धनधृति-
लीलालालितगोपालम्।
गोभिर्निगदितगोविन्द-
स्फुटनामानं बहुनामानं
गोधीगोचरदूरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

गोपीमण्डलगोष्ठीभेदं भेदावस्थमभेदाभं
शश्वद्गोखुरनिर्धूतोद्गत-
धूलीधूसरसौभाग्यम्।
श्रद्धाभक्तिगृहीतानन्द-
मचिन्त्यं चिन्तितसद्भावं
चिन्तामणिमहिमानं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

स्नानव्याकुलयोषिद्वस्त्र-
मुपादायागमुपारूढं
व्यादित्सन्तीरथ दिग्वस्त्रा दातुमुपाकर्षन्तं ताः।
निर्धूतद्वशोकविमोहं बुद्धं बुद्धेरन्तःस्थं
सत्तामात्रशरीरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

कान्तं कारणकारणमादिमनादिं कालघनाभासं
कालिन्दीगतकालियशिरसि सुनृत्यन्तं मुहुरत्यन्तम्।
कालं कालकलातीतं कलिताशेषं कलिदोषघ्नं
कालत्रयगतिहेतुं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

वृन्दावनभुवि वृन्दारकगणवृन्दाराधितवन्द्याया
कुन्दाभामलमन्द-
स्मेरसुधानन्दं सुमहानन्दम्।
वन्द्याशेषमहामुनिमानस-
वन्द्यानन्दपदद्वन्द्वं
नन्द्याशेषगुणाब्धिं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।

गोविन्दाष्टकमेतदधीते गोविन्दार्पितचेता यः
गोविन्दाच्युत माधव विष्णो गोकुलनायक कृष्णेति।
गोविन्दाङ्घ्रिसरोजध्यान-
सुधाजलधौतसमस्ताघो
गोविन्दं परमानन्दामृत-
मन्तःस्थं स तमभ्येति। 

श्री गोविन्दाष्टकम अर्थ सहित Meaning of Govindashtakam

सत्यं ज्ञानमनन्तं नित्यमनाकाशं परमाकाशं  

गोष्ठप्राङ्गणरिङ्खण-  

लोलमनायासं परमायासम्।  

मायाकल्पित-  

नानाकारमनाकारं भुवनाकारं  

क्ष्मामानाथमनाथं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : Govinda is the embodiment of eternal truth, infinite knowledge, and boundless space. He effortlessly moves through the courtyards of the cowherds, undertaking great tasks with ease. Though he manifests in various forms created by Maya (illusion), his true nature is formless and all-encompassing, being the support for the helpless. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

मृत्स्नामत्सीहेति यशोदाताडनशैशवसन्त्रासं  

व्यादितवक्त्रालोकित-  

लोकालोकचतुर्दशलोकालिम्।  

लोकत्रयपुरमूलस्तम्भं लोकालोकमनालोकं  

लोकेशं परमेशं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : This verse portrays the childhood of Govinda, where Yashoda, his mother, scolds and frightens him for eating mud. As he opens his mouth, she beholds the entire universe, revealing his divine nature. Govinda is the pillar of the three worlds, beyond sight, and the lord of the universe. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

त्रैविष्टपरिपुवीरघ्नं क्षितिभारघ्नं भवरोगघ्नं  

कैवल्यं नवनीताहारमनाहारं भुवानाहारम्।  

वैमल्यस्फुटचेतोवृत्ति-  

विशेषाभासमनाभासं  

शैवं केवलशान्तं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : Govinda is the destroyer of the enemies of the gods, the remover of the earth’s burden, and the healer of the disease of worldly existence. He is the embodiment of liberation, enjoys butter, yet is self-sustained and the sustainer of the universe. His pure consciousness shines without any distortions. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

गोपालं प्रभुलीलाविग्रहगोपालं कुलगोपालं  

गोपीखेलनगोवर्धनधृति-  

लीलालालितगोपालम्।  

गोभिर्निगदितगोविन्द-  

स्फुटनामानं बहुनामानं  

गोधीगोचरदूरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : Govinda, the protector of cows, is the playful embodiment of divine activities, the caretaker of the family, and the one who held up the Govardhana mountain. His names are chanted by the cows, and he is beyond the reach of worldly comprehension. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

गोपीमण्डलगोष्ठीभेदं भेदावस्थमभेदाभं  

शश्वद्गोखुरनिर्धूतोद्गत-  

धूलीधूसरसौभाग्यम्।  

श्रद्धाभक्तिगृहीतानन्द-  

मचिन्त्यं चिन्तितसद्भावं  

चिन्तामणिमहिमानं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : Govinda is the one who playfully mingles with the group of Gopis (cowherd women), maintaining unity despite apparent differences. He is always adorned with the dust raised by the hooves of cows, symbolizing his auspiciousness. He is incomprehensible, yet is the object of true devotion and faith. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

स्नानव्याकुलयोषिद्वस्त्र-  

मुपादायागमुपारूढं  

व्यादित्सन्तीरथ दिग्वस्त्रा दातुमुपाकर्षन्तं ताः।  

निर्धूतद्वशोकविमोहं बुद्धं बुद्धेरन्तःस्थं  

सत्तामात्रशरीरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : Govinda, who mischievously takes away the clothes of the women bathing in the river, is also the one who dispels sorrow and delusion. He is the embodiment of pure consciousness and resides within the intellect. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

कान्तं कारणकारणमादिमनादिं कालघनाभासं  

कालिन्दीगतकालियशिरसि सुनृत्यन्तं मुहुरत्यन्तम्।  

कालं कालकलातीतं कलिताशेषं कलिदोषघ्नं  

कालत्रयगतिहेतुं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : Govinda is the beloved, the cause of all causes, without beginning or end, appearing as the dark cloud of time. He danced triumphantly on the hoods of the serpent Kaliya in the Yamuna river. He transcends time and is the destroyer of all impurities in the age of Kali. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

वृन्दावनभुवि वृन्दारकगणवृन्दाराधितवन्द्याया  

कुन्दाभामलमन्द-  

स्मेरसुधानन्दं सुमहानन्दम्।  

वन्द्याशेषमहामुनिमानस-  

वन्द्यानन्दपदद्वन्द्वं  

नन्द्याशेषगुणाब्धिं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम्।   

Meaning : Govinda, who is worshipped by all the great sages and the groups of divine beings in Vrindavan, has a gentle, pure smile that radiates nectar-like bliss. He is the source of great joy and the ocean of infinite virtues. Bow down to Govinda, the supreme bliss. 

गोविन्दाष्टकमेतदधीते गोविन्दार्पितचेता यः  

गोविन्दाच्युत माधव विष्णो गोकुलनायक कृष्णेति।  

गोविन्दाङ्घ्रिसरोजध्यान-  

सुधाजलधौतसमस्ताघो  

गोविन्दं परमानन्दामृत-  

मन्तःस्थं स तमभ्येति।  

Meaning : Whoever reads this Govindashtakam with a mind dedicated to Govinda, calling upon his names like Achyuta, Madhava, Vishnu, and Krishna, will have all their sins washed away by the nectar of meditation on Govinda’s lotus feet. They will attain Govinda, the supreme bliss. 

Chanting the Govindashtakam allows the devotee to meditate on the various divine attributes and pastimes of Lord Govinda. This meditation purifies the mind, removing sins and bestowing inner peace, happiness, and ultimately, liberation. The regular recitation of this stotra helps in attaining Govinda’s divine grace and the supreme bliss of eternal joy and spiritual fulfillment.

श्री गोविन्दाष्टकम के लाभ Benifits of Govindashtakam

  1. आध्यात्मिक शांति: इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक अशांति दूर होती है और आत्मा को शांति मिलती है।
  2. भक्ति का विकास: भगवान के प्रति समर्पण और प्रेम बढ़ता है।
  3. सकारात्मक ऊर्जा: यह स्तोत्र पढ़ने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  4. कर्मबंधन से मुक्ति: गोविन्दाष्टकम के नियमित पाठ से सांसारिक कर्मबंधन से मुक्ति मिलती है।

श्री गोविन्दाष्टकम भगवान श्रीकृष्ण के गोविन्द रूप की महिमा का गान है। यह भक्तों के लिए एक ऐसा साधन है, जो उन्हें भक्ति के मार्ग पर प्रेरित करता है। यदि इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ा जाए, तो यह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और शांति प्रदान कर सकता है।

भगवान गोविन्द की कृपा से हर भक्त का जीवन मंगलमय हो।
गोविन्दं गोपिकानाथं भज!

श्री गोविन्दाष्टकम पर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs for Govindashtakam

  1. श्री गोविन्दाष्टकम क्या है?

    उत्तर:
    श्री गोविन्दाष्टकम एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसे आदिगुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित माना जाता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के गोविन्द रूप की महिमा का वर्णन किया गया है। यह आठ श्लोकों का संग्रह है, जो भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण की भावना को प्रकट करता है।

  2. श्री गोविन्दाष्टकम का पाठ कब और क्यों किया जाता है?

    उत्तर:
    श्री गोविन्दाष्टकम का पाठ प्रातःकाल और सायंकाल में किया जाता है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की कृपा पाने, मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए पढ़ा जाता है। विशेष रूप से कृष्ण जन्माष्टमी, गोवर्धन पूजा, और अन्य वैष्णव त्योहारों पर इसका पाठ शुभ माना जाता है।

  3. श्री गोविन्दाष्टकम का धार्मिक महत्व क्या है?

    श्री गोविन्दाष्टकम भगवान गोविन्द के विभिन्न गुणों, उनके स्वरूप और उनकी दिव्यता का गुणगान करता है। यह स्तोत्र आत्मा को भगवान से जोड़ने और भक्त को आध्यात्मिक शांति प्रदान करने में सहायक है। इसके नियमित पाठ से भक्ति भाव बढ़ता है और व्यक्ति को मोक्ष की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है।

  4. क्या श्री गोविन्दाष्टकम का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है?

    उत्तर:
    हाँ, श्री गोविन्दाष्टकम का पाठ करने से भक्त के जीवन में सकारात्मकता आती है। यह मानसिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्ति के भाव को जागृत करता है। इसके अलावा, भगवान गोविन्द का आशीर्वाद प्राप्त कर जीवन के संकटों और कठिनाइयों से मुक्ति पाई जा सकती है।

  5. श्री गोविन्दाष्टकम को कैसे याद किया जा सकता है?

    उत्तर:
    श्री गोविन्दाष्टकम को याद करने के लिए प्रतिदिन इसका पाठ करना चाहिए। इसे छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर नियमित अभ्यास से आसानी से याद किया जा सकता है। इसके साथ ही, स्तोत्र का अर्थ समझने और ध्यान के साथ पाठ करने से इसका प्रभाव गहराई तक अनुभव किया जा सकता है।

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